”तमाशबीन हूं मैं
नालंदा विश्वविधालय ,विक्रमशिला विश्वविद्यालय और आधुनिक भारत की बात करे तो पटना विश्वविधालय
देश का सातवां सबसे पुराना विश्वविद्यालय है और कभी इस विश्वविधालय को ऑक्सफोर्ड ऑफ द इस्ट कहा जाता था।
लेकिन कल राष्टीय स्तर पर उच्च शिक्षा पर नजर रखने वाली संस्थान ने देश के विश्वविधालय की जो रैंकिंग जारी किया है उस रैंकिंग में बिहार कही नहीं है ।
वो भी इस स्थिति में जब बिहार के अभिभावक का सबसे बड़ा निवेश बच्चों के शिक्षा पर ही हो रहा है ,इतना ही नहीं राज्य सरकार भी पढ़ाई करने वाले बच्चों को भोजन ,वस्त्र और स्कूल जाने में दिक्कत ना हो इसके लिए साइकिल तक दे रही है ।
10वीं की परीक्षा में फस्ट आने पर राज्य सरकार पैसा देती है टांप करने पर ढ़ेर सारी सुविधाए सरकार दे रही है और ये सारी सुविधाये राज्य सरकार ग्रेजुएशन तक मुहैया करती है इतना ही नहीं प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने से लेकर परीक्षा देने जाने तक के लिए राज्य सरकार खर्च वहन कर रही है।
लेकिन पिछले 10 वर्षो के दौरान बिहार बोर्ड से पढ़े बच्चे जो टाँप किये हैं इसकी पड़ताल जब शुरु किये तो हैरान रह गये बहुत मुश्किल से पांच दस को ढ़ूढ पाये जो बेहतर कर रहा है, जबकि इसी बिहार में 90 के दशक तक गांव के स्कूल का टाँपर भी सरकारी नौकरी सीमित होने के बावजूद कुछ ना कुछ बेहतर जरुर करता था।
मेरे बैंंच का टाँपर डीएसपी बना ,मेरे बैंच के बाद दो चार बैंच नीचे और तीन चार सीनियर बैंच के बारे में जो जानकारी है सारे टांपर कही ना कही उच्च पद पर कार्यरत हैं ।
जहां तक मैंने जो जानकारी इकट्ठा किया है आज नवोदय विधालय नहीं होता तो बिहार में पले बढ़े और सरकारी स्कूल से पढ़ा हुआ छात्र यूपीएससी ,आईआईटी और मेडिकल कांलेज में ढ़ूढने से नहीं मिलता यू कहिए तो नवोदय विधालय बिहार का लाज बचा कर रखा है।
क्या आपको लगता नहीं है कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था को लेकर नये सिरे से सोचने कि जरुरत है पिछले 15 वर्षो में बिहार सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत सारे प्रयोग किये हैं चाणक्य लाँ विश्वविधालय जैसे कई नये संस्थान राज्य सरकार द्वारा खोला गया लेकिन वो भी आज गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने में सफल नहीं है ।
कल ही एक लड़की नौकरी के लिए मुझसे मिलने आयी थी पटना कांलेज से पत्रकारिता से ग्रेजुएशन कि है मैंने उसे कहां तुम अपने गांव से पटना तक के सफर में एक लड़की के रुप में क्या परेशानी हुई उस पर एक रिपोर्ट लिख कर दिखाओं।
नहीं लिख पायी इसी तरह 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान सासाराम से पटना लौट रहे थे तो एक गांव में चुनावी चर्चा करने बैठ गये बातचीत चल ही रही थी उसी दौरान जिसके दरवाजे पर बैठ कर चर्चा कर रहे थे उस घर की पुतहू गेट के अंदर से ही बोली सर मुझे भी कुछ कहना है मैं हैरान रह गया और फिर वो जो बोली कह नहीं सकते सर मैं ग्रेजुएशन तक पढ़ी हूं मेरा मां पिता जी इसलिए पढ़ाएं की हमारी बेटी नौकरी करेगी हुआ क्या पांच वर्ष तक सरकारी नौकरी की वैकेंसी ही नहीं आयी ।
मेरी शादी हुई जमीन जायदाद वाले हैं लोग है हमारे ससुर पढ़ी लिखी पुतहू चाहते थे इसलिए यहां मेरी शादी हो गयी हाल क्या है सुबह मेरी सास मवेशी का चारा काटती है ,धान रोपनी कर लेती है ,मवेशी के लिए घास काट कर ले आती है ,खेत में निकौनी तक कर लेती है और मैं चुपचाप देखती रहती हूं और इस वजह से रोजोना घर में विवाद होता है और मैं चाह करके भी पांच वर्ष में खेती का काम नहीं सीख पायी।
जीविका से जुड़े 800 रुपया मिलता है सरी जी आज बिहार की लड़कियां कही कि नहीं रही ना पति मिला, ना ससुराल मिला सब कुछ अधकचरा रह गया खाना भी ठीक से नहीं बना पाते हैं नीतीश जी को कहिएगा रोजगार पैदा नहीं कर सकते तो लड़कियों को पढ़ाना बंद कर दे हलाकि मैं इनकी बातो से सहमत नहीं था लेकिन बातचीत के दौरान उसके सवालों को लेकर कई बार मैं खुद निरुत्तर हो जाता था ।
इस स्थिति में आपको लगता नहीं है कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था को नये सिरे से सोचने कि जरुरत है क्यों कि हमारा समाज अभी भी खेतिहर है और शिक्षा का मतलब सरकारी नौकरी मात्र से हैं ऐसे में सरकार पर सरकारी नौकरी देने को लेकर दबाव है और इस वजह से हर परीक्षा में पैसे का खेल चलता है ।