पटना हाइकोर्ट ने चंदन कुमार यादव द्वारा औषधि निरीक्षक के पद पर नियुक्ति हेतु बी पी एस सी द्वारा जारी विज्ञापन मे अनुभव संबंधी प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की।जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने इस याचिका पर सुनवाई की।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि विज्ञापन में अनुभव से जुडा प्रावधान अनिवार्य योग्यता नही है। इसके लिए सरकार द्वारा वर्ष 2014 मे नियमावली बनाई गई थी,जिसमे औषधि एवं प्रसाधन नियमावली 1945 के नियम 49 मे प्रावधानित शैक्षणिक अर्हता को लागू करने की बात कही गई थी, न कि अनुभव को।
वही दूसरी इलाहाबाद हाईकोर्ट के फुल बेंच ने कुलदीप सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में यह तय किया है कि औषधि एवं प्रसाधन नियमावली 1945 की पारा 49 के अनुसार ये अनुभव औषधि निरीक्षक के पद हेतु अनिवार्य योग्यता नही है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका स्वीकार किए जाने का निर्देश दिया गया। परीक्षा 20 जून,2023 से होनी है।कोर्ट ने बी पी एस सी को जवाब देने का निर्देश दिया गया। मामले की अगली सुनवाई 19 जून,2023 को होगी।
पटना हाइकोर्ट में बिहार राज्य में मानसिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं से सम्बंधित मामलें पर सुनवाई 23 जून,2023 को होगी। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ आकांक्षा मालवीय की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।
राज्य सरकार ने रूल्स बनाने के कोर्ट से समय की याचना की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार करते हुए 23 जून,2023 की तिथि सुनवाई के लिए निर्धारित की।
पूर्व में हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को अबतक की गई कार्रवाई का ब्यौरा देने के लिए दिसंबर,2022 तक का मोहलत दिया था।
याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया था कि कोर्ट ने जो भी आदेश दिया,उस पर राज्य सरकार के द्वारा कोई प्रभावी और ठोस कार्रवाई अब तक नहीं किया गया है।
कोर्ट ने पिछली सुनवाई में इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को भी पूरी जानकारी देने को कहा था। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राज्य में मानसिक स्वास्थ्य सेवा में क्या क्या कमियों के सम्बन्ध में ब्यौरा देने को कहा था।
साथ ही कोर्ट ने इसमें सुधारने के उपाय पर सलाह देने को कहा था।याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने बताया था कि नेशनल मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम ही के अंतर्गत राज्य के 38 जिलों में डिस्ट्रिक्ट मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम चल रहा हैं।लेकिन इसमें स्टाफ की संख्या नाकाफी ही है। हर जिले में सात सात स्टाफ होने चाहिए, जबकि इनकी संख्या नाकाफी है।
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पूर्व की सुनवाई में उन्होंने बताया था कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट के तहत कानून बनाए।साथ ही इसके लिए मूलभूत सुविधाएं और फंड उपलब्ध कराए।लेकिन अबतक कोई ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है।
कोर्ट को ये भी बताया गया था कि सेन्टर ऑफ एक्सलेंस के तहत हर राज्य में मानसिक रोग के अध्ययन और ईलाज के लिए कॉलेज है।लेकिन बिहार ही एक ऐसा राज्य हैं,जहां मानसिक रोग के अध्ययन और ईलाज के लिए कोई कालेज नहीं है।जबकि प्रावधानों के तहत राज्य सरकार का ये दायित्व हैं।
पिछली सुनवाईयों में कोर्ट को बताया गया था कि केंद्र सरकार की ओर से दिए जाने वाले फंड में कमी आयी है,क्योंकि फंड का राज्य द्वारा पूरा उपयोग नहीं हो रहा था।पहले की सुनवाई में याचिकाकर्ता की अधिवक्ता आकांक्षा मालवीय ने कोर्ट को बताया कि बिहार की आबादी लगभग बारह करोड़ हैं।उसकी तुलना में राज्य में मानसिक स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएँ नहीं के बराबर है।
पटना हाइकोर्ट ने राज्य में बगैर निबंधन कराए कोचिंग संस्थान खोलने,मनमाने ढंग से छात्रों से फीस बसूलने और बुनियादी सुविधाओं के नहीं होने के मामलें पर सुनवाई की। वेटरन फोरम की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को चार सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया है।इस मामलें पर अगली सुनवाई 4 जुलाई,2023 को होगी।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने बिहार कोचिंग इंस्टिट्यूट(कन्ट्रोल एंड रेगुलेशन)एक्ट,2010 के section 9 के अंतर्गत नियम नहीं बने है।नियमों के बिना ही मनमाने तरीके से कुकुरमुत्ते की तरह पटना समेत राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में कोचिंग इंस्टिट्यूट खुल गए है।
कोर्ट ने इस तरह के जनहित याचिका की सराहना करते हुए आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि एक्ट 2010 में बनने के वाबजूद अबतक राज्य सरकार ने इस मामलें नियम क्यो नहीं बनायें।
उन्होंने कोर्ट को बताया बिना निबंधन के इस तरह के कोचिंग इंस्टिट्यूट खुल गए हैं।इनमें तो दावे बड़े बड़े किये जाते है,लेकिन इंस्टिट्यूट्स में न तो स्तरीय अध्यापन होता है और न ही योग्य शिक्षक होते है।
इन कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाई का स्तर भी सही नहीं है।कोचिंग के नाम पर ये कोचिंग इंस्टिट्यूट अभिभावकओ व छात्रों से मनमाना फीस बसूलते है।
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अधिवक्ता दीनू कुमार ने कोर्ट को बताया कि इन कोचिंग इंस्टिट्यूट में न तो कोई पाठ्यक्रम होता है और न ही ये पाठ्यक्रम पूरा करने की जिम्मेदारी लेते है।इन्होने कोर्ट को बताया कि अधिकांश कोचिंग इंस्टिट्यूट एक या दो रूम के कमरे में संचालित किये जाते है।छात्र व छात्राओं के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होती।
उन्होंने बताया कि इन कोचिंग इंस्टिट्यूट में न तो शुद्ध पेय जल की व्यवस्था है और न शौचालयों की।विशेषकर छात्राओं के लिए इन सुविधाओं का अभाव होता है।
उन्होंने कहा कि इन कोचिंग इंस्टिट्यूट को नियमानुसार और निबंधन होने के बाद ही इन्हें खोलने की अनुमति दी जानी चाहिए।साथ ही इन पर राज्य सरकार को अपनी निगरानी रखनी होगी।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार और रितिका रानी और राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता पी के वर्मा ने कोर्ट के समक्ष तथ्यों को प्रस्तुत किया।इस मामलें पर अगली सुनवाई 4जुलाई,2023 को होगी।
पटना हाइकोर्ट ने जबरन घर खाली कराने के मामले पर एसएसपी,पटना सहित बुद्धा कॉलोनी के थानेदार को लगाई कड़ी फटकार लगायी। कोर्ट ने कहा कि आखिर किस कानून के तहत पुलिस घर खाली कराई।यही नहीं ,उस घर में रह रही 25 लड़कियों को बाहर कर दिया गया।
जस्टिस मोहित शाह ने पटना डीएम और सदर एसडीएम को इस मामले में कानूनी कार्रवाई करने का आदेश दिया।साथ ही किरायेदार को घर पर कब्जा दिलाने के मामले पर कार्रवाई करने का आदेश दिया। कोर्ट ने रेणु कुमारी सिंह की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की।
आवेदिका के वकील शिव प्रताप ने कोर्ट को बताया कि गत सोमवार को सुंबह सुबह मकान मालिक पुलिस एव स्थानीय असामाजिक तत्वों के मिल कर जबरन किराये के घर से बेदखल कर दिया गया।
उनका कहना था कि इस घर में लड़कियों का छात्रावास था।कोर्ट ने पटना के एसएसपी सहित बुद्धा कॉलोनी के थानेदार को तलब किया।
कोर्ट आदेश के बाद पटना के एसएसपी और बुद्धा कॉलोनी के थानेदार कोर्ट में हाजिर हो कर बताया कि आवेदिका के शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई हैं।उनका कहना था कि जांच में जबरन बेदखल करने की बात सामने आई हैं।
जांच रिपोर्ट पटना सदर एसडीएम को भेज दी गई हैं।अब डीएम और एसडीएम ही घर का कब्जा दिलाने की कार्रवाई कर सकते हैं।कोर्ट ने पटना डीएम और एसडीएम को तलब किया।आला अधिकारी कोर्ट में उपस्थित हुये।
कोर्ट ने सोमवार तक कब्जा दिलाने के बारे में कानून के तहत कार्रवाई करने का आदेश दिया।साथ ही मामले पर अगली सुनवाई की तारीख 18 मई,2023 को तय किया गया है।
पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय से राज्य के सभी डीएम समेत केंद्र सरकार की एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को निर्देश दिया है कि बिहार में जितने भी हवाई पट्टियां, पुराने हवाई अड्डे और सिविल एनक्लेव हैं, उन सबों के भूमि को अतिक्रमण मुक्त करने का निर्देश दिया।साथ ही यह सुनिश्चित करें कि वे भविष्य में भी उपयोग आने हेतु सुरक्षित और संरक्षित रहें।
चीफ जस्टिस के.वी विनोद चंद्रन एवं जस्टिस मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने निखिल सिंह सहित अन्य 30 जनहित याचिकाकर्ताओं की अर्जियों को निष्पादित करते हुए यह निर्णय सुनाया।
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कोर्ट ने इस फैसले में यह भी स्पष्ट किया की राज्य में हवाई अड्डों का निर्माण या विकास हो या नही,यह एक नीतिगत मामला है।इसमें केंद्र और राज्य सरकार को निर्णय लेना है, न कि हाई कोर्ट को।
पटना हाइकोर्ट ने राज्य के पूर्व कैबिनेट मंत्री शंकर प्रसाद टेकरिवाल के निधन के 10 साल बाद सहरसा पुलिस ने उन्हें मिले सरकारी गार्ड और अंगरक्षक के एवज में 18 लाख रुपये से अधिक की राशि नीलाम पत्र के जरिये वसूलने की कार्रवाई पर रोक लगा दिया।जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने इस मामलें पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।
कोर्ट ने प्रभाकर टेकरीवाल की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिया।
याचिकाकर्ता के तरफ से वरीय अधिवक्ता रामाकांत शर्मा ने कोर्ट को बताया की यह मामला सरकारी अफसरशाही के मनमानापन दर्शाता है। एक दिवंगत कैबिनेट मिनिस्टर जिन्हें सरकार की तरफ से अंगरक्षक और हाउस गार्ड मिला , उसके बदले सरकारी राशि वसूलने की कार्रवाई एक मजाक नहीं बल्कि सरकारी अफसरों द्वारा निर्दोष नागरिकों से जबरन पैसे वसूलने अथवा उनकी संपत्ति को लूटने की कार्रवाई है ।
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शर्मा ने कोर्ट को बताया कि शंकर प्रसाद टेकारिवाल 1990 से लेकर फरवरी 2005 तक सहरसा से लगातार विधायक रहे और 12 वर्षों तक वित्त, खनन एवं अन्य विभाग के मंत्री रहे उनके मंत्रीमंडल में रहने के समय राज्य सरकार ने उन्हें तीन अंगरक्षक और हाउस गार्ड दिया था।
2002 में रावड़ी सरकार से उन्होंने इस्तीफा देने के बाद जब वह सहरसा अपने गृह क्षेत्र गए ,तो उन्होंने अपने हाउस गार्ड और दो अंग रक्षकों को सरकार को लौटा दिया और विधायकों को मिलने वाले एक बॉडीगार्ड को भी उन्होंने, फरवरी 2005 में विधायकी कार्य काल पूरा होने पर वापस भेज दिया था।
उनका निधन 2012 में हुआ और उसके 10 साल बाद सहरसा के तत्कालीन एसपी ने मनमाने तरीके से स्व. टेकरीवाल को1998 से 2005 तक दिए गए एक अंगरक्षक मुहैय्या कराने के लिए लगभग 18 लाख रुपये की राशि बकाया बताते हुए स्व शंकर प्रसाद टेकरीवाल के बेटे प्रभाकर टेकरीवाल से वसूलने की कार्रवाई नीलाम वाद के जरिये शुरू किया।
जस्टिस रंजन ने हैरानी जताते हुए पूरी नीलाम वाद पर रोक लगाने का आदेश दिया।मामलें पर आगे सुनवाई होगी।
राज्य सरकार ने पटना हाइकोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी,जिसमें कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई करने सम्बन्धी याचिका को रद्द कर दिया था।साथ ही राज्य सरकार ने पटना हाइकोर्ट द्वारा 4 मई, 2023को पारित अंतरिम आदेश को भी चुनौती दी गई है।
चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने राज्य सरकार के 3 जुलाई,2023 के पूर्व सुनवाई करने की याचिका को कोर्ट ने 9मई,2023 को सुनवाई करने के बाद खारिज कर दिया था।
इस आदेश विरुद्ध को राज्य सरकार ने एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर कर की है।पटना हाइकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही रखा। 9 मई, 2023 को सुनवाई करने के बाद हाईकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही निश्चित किया था।
गौरतलब कि पहले 4मई,2023 को कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।
पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया था कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।
साथ ही कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया था।
कोर्ट ने ये भी कहा था कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।
कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।
राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि इस सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य आम लोगों के लिए कल्याणकारी और विकास की योजना तैयार है।इसका किसी अन्य कार्य के लिए कोई उद्देश्य नहीं है।
पटना हाइकोर्ट में पटना गया डोभी राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के मामलें पर सुनवाई गर्मी की छुट्टी बाद की जाएगी।। चीफ जस्टिस के वी चंद्रन की खंडपीठ प्रतिज्ञा नामक संस्था द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने एन एच ए आई के क्षेत्रीय अधिकारी को हलफनामा दायर कर प्रगति रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने निर्माण कम्पनियों को बताने को कहा था कि निर्माण कार्य कब तक पूरा हो जाएगा।
पूर्व की सुनवाई में भी कोर्ट ने केंद्र,राज्य सरकार,एनएचएआई और अन्य सम्बंधित पक्षों को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था।
पटना गया डोभी राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण कार्य कर रही कम्पनियों ने कोर्ट को बताया था कि 31मार्च,2023 तक फेज एक का अधिकांश कार्य पूरा कर लिया जाएगा।साथ ही इस राजमार्ग के निर्माण कार्य को लगभग 30 जून, 2023 तक पूरा कर लिए जाने का अश्वासन दिया था।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता मनीष कुमार ने कोर्ट को बताया था कि जिस गति से काम किया जा रहा है, ऐसे में तय समय सीमा में निर्माण कार्य पूरा होना कठिन है।उन्होंने बताया था कि तय समय सीमा में कार्य पूरा करने के लिए संसाधनों और कार्य करने वाले लोगों की संख्या बढ़ाने की जरूरत होगी।
इससे पूर्व अधिवक्ताओं की टीम ने खंडपीठ के समक्ष पटना गया डोभी एनएच का निरीक्षण कर कोर्ट में रिपोर्ट प्रस्तुत किया था।पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने वकीलों की टीम को इस राजमार्ग के निर्माण कार्य का निरीक्षण कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था।
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पिछली सुनवाई में भी राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण करने वाली कंपनी ने इसका निर्माण कार्य 30 जून,2023 तक पूरा करने का अश्वासन कोर्ट को दिया था।साथ ही कोर्ट ने इस फेज के निर्माण में बाधा उत्पन्न होने वाले सभी अवरोधों को तत्काल हटाने का निर्देश सम्बंधित अधिकारियों को दिया था।
कोर्ट को पटना गया डोभी राष्ट्रीय राजमार्ग के फेज दो व तीन के निर्माण में लगी निर्माण कंपनी ने बताया था कि पटना गया डोभी एनएच के निर्माण में कई जगह बाधा उत्पन्न किया जा रहा है।
इस मामलें पर अगली सुनवाई गर्मी की छुट्टी के बाद की जाएगी।
पटना हाइकोर्ट ने राज्य में लोकायुक्त व अन्य सदस्यों के रिक्त पदों को भरने के दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की।विकास चन्द्र ऊर्फ गुड्डू बाबा की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने सुनवाई की।
राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल पी के शाही ने कोर्ट को बताया कि राज्य में लोकायुक्त व अन्य सदस्यों के रिक्त पदों को भरे जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।उन्होंने कहा कि शीघ्र ही इन पदों पर नियुक्ति कर ली जाएगी।
पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता विकास चंद्र ने कोर्ट को बताया था कि लोकायुक्त व सदस्यों के पद रिक्त होने के कारण लोकायुक्त कार्यालय में सुनवाई नहीं हो रही है।इससे आम आदमी को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
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उन्होंने कोर्ट को बताया था कि लोकायुक्त का पद 13 फरवरी,2022और दो सदस्यों का पद 17 मई,2021 से रिक्त पड़े है।
उन्होंने कोर्ट को बताया था कि राज्य सरकार द्वारा इन रिक्त पदों को इतने दिनों तक नहीं भरा जाना उनकी उपेक्षापूर्ण रवैया दिखाता है।प्रावधानों के अनुसार इन पदों को राज्य सरकार द्वारा शीघ्र भरा जाना चाहिए।
कोर्ट ने एडवोकेट जनरल पी के शाही के दिए गए आश्वासन के आलोक में इस जनहित याचिका को निष्पादित कर दिया।
पटना हाइकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही रखा।पूर्व में हाईकोर्ट ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि 3 जुलाई,2023 ही रखा था।
गौरतलब कि पहले 4मई,2023 को कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।
चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।
राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया है कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।
कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया है।
कोर्ट ने ये भी कहा कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।
कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।
राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर कोर्ट ने अपना निर्णय अंतिम रूप से दे दिया है।इस कारण इन याचिकाओं की सुनवाई 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही करके इनका निष्पादन कर दिया जाए।लेकिन कोर्ट ने राज्य सरकार की इस याचिका को रद्द करते हुए सुनवाई की तिथि 3मई, 2023 ही निश्चित किया है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता दीनू कुमार, रितिका रानी, अभिनव श्रीवास्तव और राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल पी के शाही ने पक्षों को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया
पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के लिए याचिका दायर की गई थी। पटना हाईकोर्ट इन मामलों कल 9 मई, 2023 को सुनवाई करेगी। गौरतलब कि पहले कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।
चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।
राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया है कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।
कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया है।
कोर्ट ने ये भी कहा कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।
कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।
राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर कोर्ट ने अपना निर्णय अंतिम रूप से दे दिया है।इस कारण इन याचिकाओं की सुनवाई 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही करके इनका निष्पादन कर दिया जाए।
अहमदाबाद/पटना। गुजरातियों को ठग कहने के मामले में बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ अहमदाबाद में दाखिल किए मानहानि के केस पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद 202 के तहत जांच का आदेश दिया। अगली सुनवाई की तारीख 20 मई तय की है।
तेजस्वी यादव के खिलाफ सोमवार को अहमदाबाद की मेट्रो कोर्ट में सुनवाई हुई। अदालत ने मामले के परिवादी को सबूत पेश करने का आदेश दिया है। मामले में गवाहों को हाजिर करने का आदेश भी कोर्ट में दिया गया है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि इस सुनवाई के दौरान तेजस्वी यादवको सशरीर हाजिर होना होगा।
अहमदाबाद की मेट्रोपॉलिटन कोर्ट में एडीशिनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट डी जे परमार ने सुनवाई की और फिर इंक्वायरी का आदेश जारी किया। पिछले महीने की 26 तारीख को अहमदाबाद में रहने वाले पेशे से व्यापारी हरेश मेहता ने तेजस्वी यादव के खिलाफ मानहानि का केस दाखिल किया था।
इसमें मेहता ने आरोप लगाया है कि तेजस्वी यादव ने मार्च महीने के आखिर में विधानसभा परिसर में एक बयान दिया था। इसमें उन्होंने कहा था देश की वर्तमान परिस्थिति में सिर्फ गुजराती ठग हो सकते हैं और उन्हें माफ भी कर दिया जाएगा। मेहता की मांग है कि इससे गुजरात के लोगों की मानहानि हुई है। इसलिए तेजस्वी यादव पर मानहानि का केस चलाया जाए। कोर्ट ने सोमवार को इसमामले में सुनवाई करते हुए तेजस्वी यादव को धारा 202 के तहत समन जारी किया है।
आनंद मोहन की जेल से रिहाई के खिलाफ जी. कृष्णैया की पत्नी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस, बिहार सरकार और आनंद मोहन को सर्वोच्च अदालत ने जारी किया नोटिस।
दिवंगत IAS अधिकारी जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया, बिहार के जेल नियमों में संशोधन के बाद आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई को चुनौती देते हुए SC का रुख किया था।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को भी नोटिस जारी किया है और दो सप्ताह में जवाब तलब किया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने नियमों में बदलाव से संबंधित सभी रिकॉर्ड भी बिहार सरकार से मांगे हैं।
पूर्व आईएएस अधिकारी जी कृष्णय्या की पत्नी उमा देवी ने कहा- “हमें खुशी है कि सुप्रीम कोर्ट ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है और बिहार सरकार और इसमें शामिल अन्य लोगों को नोटिस जारी किया है। उन्हें 2 सप्ताह के भीतर जवाब देना है। हमें SC में न्याय मिलेगा।”
बिहार सरकार ने आनंद मोहन सिंह की रिहाई के लिए जेल मैन्यूअल में बदलाव किया था और लोकसेवक की हत्या को अपवाद से हटाकर सामान्य कर दिया था जिसके बाद आनंद मोहन सिंह की जेल से रिहाई हुई है। आनंद मोहन सिंह के साथ 26 और कैदियों की रिहाई हुई थी।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने YouTube मनीष कश्यप की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया है, जिसमें दक्षिणी राज्य में बिहार के प्रवासियों पर हमलों पर फर्जी खबरें फैलाने में उनकी भूमिका को लेकर बिहार और तमिलनाडु में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की पीठ ने, हालांकि, कश्यप को एक उपयुक्त न्यायिक मंच पर एनएसए के आह्वान को चुनौती देने की स्वतंत्रता दी। इसने उनके खिलाफ सभी 19 प्राथमिकी और उनके बिहार स्थानांतरित करने की याचिका को भी खारिज कर दिया।
इस समय तमिलनाडु की मदुरै जेल में बंद कश्यप की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह की जोरदार दलीलों को खारिज करते हुए पीठ ने कहा, ”हम याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं।”
गिरफ्तार यूट्यूबर पर कई प्राथमिकी दर्ज हैं और उनमें से तीन बिहार में दर्ज हैं। प्राथमिकी के अलावा, कश्यप पर तमिलनाडु पुलिस द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत भी आरोप लगाए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच के पास कश्यप के लिए कड़े शब्द थे…
“आपके पास एक स्थिर राज्य है, तमिलनाडु राज्य। आप बेचैनी पैदा करने के लिए कुछ भी प्रसारित करते हैं, ”पीठ ने मौखिक रूप से कहा।
बाद में, इसने पूछा, “क्या किया जाना है? आप ये फर्जी वीडियो बनाते हैं… ”
पीठ ने कश्यप को अपनी याचिका के साथ उच्च न्यायालय जाने की अनुमति दी।
कश्यप के वकील सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने कहा कि क्योंकि उन्होंने अपने वीडियो दैनिक भास्कर जैसे मुख्यधारा के अखबारों की मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित किए थे, अगर उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार किया जाना है तो अन्य अखबारों के पत्रकारों को भी इसी तरह हिरासत में लेने की जरूरत है। उन्होंने एनएसए के तहत आरोपित मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा का उदाहरण भी दिया।
Bihar News: पूर्व सांसद आनंद मोहन की जेल से रिहाई पर बिहार सरकार और अन्य को SC का नोटिस।
‘गुजराती ठग’ मामले में तेजस्वी यादव को समन, 20 मई को अहमदाबाद कोर्ट में पेश होने का आदेश।
पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई, 2023 के पूर्व ही कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के लिए याचिका दायर की गई है।
तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस अन्नीरेड्डी अभिषेक रेड्डी का स्थानांतरण पटना हाईकोर्ट हुआ।
Corona in Bihar: बिहार में फिर तेजी से बढ़ा कोरोना, बीते 24 घंटे में 92 नए मामले आये सामने, एक्टिव मरीजों की संख्या बढ़कर 825 हो गई हैं। राजधानी पटना में 378 संक्रमित हैं।
पंचायत उपचुनाव 2023: राज्य निर्वाचन आयोग ने बिहार में पंचायत उपचुनाव का किया ऐलान। बिहार में 25 मई को कुल 3,522 पदों के लिए पंचायत उपचुनाव होंगे। 27 मई को नतीजे सामने आ जाएंगे।
NGT ने बिहार पर 4,000 करोड़ रुपये का पर्यावरणीय जुरमाना लगाया । नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने प्रदूषक भुगतान सिद्धांत के अनुसार वैज्ञानिक रूप से ठोस और तरल कचरे का प्रबंधन करने में विफल रहने के लिए बिहार पर 4,000 करोड़ रुपये का पर्यावरणीय मुआवजा लगाया है।
पटना हाइकोर्ट ने एससी/ एसटी छात्रवृत्ति घोटाले के आरोपी आईएएस एस . एम. राजू की नियमित जमानत याचिका पर सुनवाई पूरी कर आदेश सुरक्षित कर लिया है। राजेश कुमार वर्मा ने राजू की जमानत याचिका पर सभी पक्षों को सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित रखा।
गौरतलब है कि 2017 में निगरानी ब्यूरो द्वारा दर्ज हुए इस घोटाले के मुकदमे में राजू 20 जनवरी 2023 से जेल में बंद है।राजू के वकील आशीष गिरी ने कोर्ट को बताया कि इस मामले के मुख्य आरोपी एवं पूर्व आईएएस परशुराम कड़ा रमैया को जमानत मिल चुकी है। याचिकाकर्ता भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी है और उन्होंने अपने समय में इस छात्रवृत्ति घोटाले का उजागर भी किया।
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वही निगरानी ब्यूरो की तरफ से एडवोकेट अरविंद कुमार ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कोर्ट को बताया कि जब राजू एससी/ एसटी कल्याण विभाग में थे, तो उनके ही समय में कई ऐसे छात्र छात्राओं का विवरण केस डायरी में मिला है ,जो दाखिला तो लिए लेकिन एक भी दिन बिना क्लास किए परीक्षा दी है। फिर भी उन्हे छात्रवृत्ति की राशि का भुगतान हुआ है।उनके विरुद्ध घोटाले में शामिल होने के ठोस के सबूत है।
पटना हाइकोर्ट ने बिहार कारागार नियमावली में की गई संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को 12 मई, 2023 तक जबाब दायर करने का निर्देश दिया हैं। अनुपम कुमार सुमन ओर से दायर याचिका पर चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन विनोद चन्द्रन की खंडपीठ ने सुनवाई की।
कोर्ट को बताया गया कि राज्य सरकार ने गत 10 अप्रैल,2023 को बिहार कारागार नियमावली, 2012 के नियम 481(i)(क) में संशोधन करते हुए “ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक की हत्या” शब्द को हटाने के लिए संशोधन कर दिया।इस कारण गोपालगंज डीएम हत्या कांड के दोषी पूर्व सांसद आनंद मोहन सहित 26 सजायाफ्ता बंदियों को जेल से छोड़ दिया गया।
उन्होंने बिहार कारागार नियमावली के नियम 481(i)(क) में किए गए संशोधन को गैरकानूनी करार देने और संशोधन अधिसूचना को निरस्त करने की मांग कोर्ट से की।कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को जबाब दायर करने का निर्देश दिया।इस मामलें पर अगली सुनवाई 12 मई, 2023 को होगी।
पूर्व मंत्री नरेन्द्र बाबू अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन जब भी मुलाकात होती थी तो मांझी के मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश के खिलाफ मोर्चा खोलने को लेकर बहस हो ही जाती थी ।
मैं कहता था आप लोग सही नहीं किए बिहार की राजनीति का एक चक्र पूरा हो रहा था उसको आप लोगों ने बीच रास्ते में ही ब्रेक लगा दिया। जिस वजह से बिहार की राजनीति फिर उसी चक्र में वापस आ गया जिससे नीतीश कुमार थोड़ा बाहर निकाले थे। मतलब सत्ता की मलाई खाते खाते समाज में जो नये सामंती वर्ग पैदा लिये हैं उसके शोषण और अत्याचार के खिलाफ जैसे जैसे आक्रोश बढ़ा अन्य पिछड़ी जातियों उनके खिलाफ गोलबंद होने लगे इसी का लाभ नीतीश उठा रहे थे वही मांझी मुख्यमंत्री बने रह जाते तो बिहार की राजनीति से हमेशा हमेशा के लिए दबंग पिछड़ी जातियां राजनीति से बाहर हो जाती लेकिन आप लोग इस चक्र को पूरा नहीं होने दिए हालांकि नरेंद्र बाबू का कुछ और तर्क था लेकिन अंत में वो कहते थे संतोष जो बात गयी वो बीत गयी आगे फिर मौका आयेगा मिल बैठ कर बात करेंगे।
शायद आज वो जिंदा होते तो जातीय जनगणना को लेकर मेरे विचार से सहमत होते, बिहार में प्रभावशाली दबंग पिछड़ी जाति और दबंग दलित की कितनी संख्या है और उसका व्यापार ,संसाधन,नौकरी और जमीन पर उसका कितना कब्जा है यह डाटा जिस दिन सामने आ जाता बिहार की राजनीति दस वर्षो में पूरी तरह से बदल जाता। क्यों कि समाज में सवर्णो को लेकर जो घृणा था आक्रोश था वह अब दबंग पिछड़ी और दलित जाति में शिफ्ट कर गया है । वही पंचायत चुनाव इस प्रक्रिया को और तेज कर दिया जिस वजह से गांव का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तौर पर बदल गया है ।
जातीय जनगणना जैसे ही प्रकाशित होता तीन चार पिछड़ी जाति और एक दो दलित जाति जिसका 90 प्रतिशत हिस्सेदारी व्यापार,नौकरी .जमीन और राजनीति में है वो सामने आ जाता । और जैसे ही सामने आता उसके खिलाफ एक अलग तरह का माहौल तैयार होने लगता जैसे किसी दौर में सवर्ण को लेकर था जिसके पास व्यापार नौकरी,जमीन और सत्ता सब कुछ था । उसी को दिखा दिखा कर लोहिया जैसे नेता पिछड़ा पावे सौ में साठ जैसे नारे का ईजाद किये थे ।
आज साठ क्या 90 प्रतिशत हिस्सेदारी जो सवर्ण से ट्रांसफर हुआ है उस पर चार पाच पिछड़ी और एक दो दलित जाति का आज कब्जा है। ये डाटा जैसे ही सामने आता वैसे ही पूरे बिहार का नैरेटिव ही बदल जाता ।सच यही है जातीय जनगणना के पक्ष में ना नीतीश हैं ना लालू हैं ना बीजेपी है। क्यों कि उन्हें पता है जैसे ही जाति जनगणना प्रकाशित होता बिहार की राजनीति से दबंग पिछड़ी जाति की पकड़ उसी दिन से कमजोर होनी शुरु हो जायेंगी । ये लोग सिर्फ नैरेटिव बनाये रखना चाहते हैं जैसे बीजेपी को हिन्दू के उत्थान से कोई लेना देना नहीं है बस हिन्दू मुस्लिम नैरेटिव कैसे बना रहे इसके जुगत में लगा रहता है ।
पटना हाइकोर्ट ने बिहारशरीफ में इस वर्ष रामनवमी की शोभायात्रा के दौरान हुई हिंसा की निष्पक्ष जांच कराने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अमरेन्द्र कुमार सिन्हा की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को इस सम्बन्ध में की गई कार्रवाई का ब्यौरा अगली सुनवाई में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट के समक्ष पक्ष प्रस्तुत करते हुए वरीय अधिवक्ता एस डी संजय ने कहा कि बिहारशरीफ में रामनवमी शोभायात्रा के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई।उन्होंने कहा कि इससे बड़े पैमाने पर जान माल की हानि और व्यवसाई वर्ग को नुकसान झेलना पड़ा।
उन्होंने कोर्ट के समक्ष पक्षों को रखते हुए कहा कि इस मामलें की जांच हाईकोर्ट के अवकाशप्राप्त जज कराई जाए या सीबीआई या एनआईए से कराई जाए।इस जांच से निष्पक्ष और वास्तविक परिस्थिति सामने आ सकेगी।
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इस जनहित याचिका में ये भी अनुरोध किया गया है कि जिनके जान माल की क्षति और व्यावासायिक हानि हुई हो,उन्हें राज्य सरकार की ओर से क्षतिपूर्ति दिलाई जाए।
सभी सम्बंधित पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस मामलें में उठाए गए क़दमों और प्रशासन द्वारा की गई कार्रवाई का पूरा ब्यौरा कोर्ट के समक्ष अगली सुनवाई में प्रस्तुत करें।
याचिकाकर्ता की ओर से वरीय अधिवक्ता एस डी संजय और राज्य सरकार की ओर एडवोकेट जनरल पी के शाही ने कोर्ट के समक्ष पक्षों को रखा।इस मामलें पर अगली सुनवाई गर्मी की छुट्टी के बाद की जाएगी।
पटना हाइकोर्ट में राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही कोर्ट द्वारा सुनवाई करने के लिए याचिका दायर की गई है। गौरतलब कि कल कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय जनगणना पर रोक लगा दी थी।
चीफ जस्टिस के वी चन्द्रन की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि राज्य सरकार इस दौरान इक्कठी की गई आंकड़ों को शेयर व उपयोग फिलहाल नहीं करेगी।
राज्य सरकार द्वारा दायर याचिका में ये कहा गया है कि क्योंकि पटना हाइकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य सरकार के पास जातीय जनगणना कराने का वैधानिक अधिकार नहीं है,इसीलिए इन याचिकाओं पर 3 जुलाई,2023 को सुनवाई करने का कोई कारण नहीं है।
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कार्यपालिका के पास जातीय जनगणना कराने का क्षेत्राधिकार नहीं है।इसे कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में स्पष्ट कर दिया है।
कोर्ट ने ये भी कहा कि जातीय जनगणना से जनता की निजता का उल्लंघन होता है।इस सम्बन्ध में विधायिका द्वारा कोई कानून भी नहीं बनाया गया है।
कोर्ट ने अपने 4 मई, 2023 के अंतरिम आदेश में जो निर्णय दिया है,उसमें सभी मुद्दों पर अंतिम निर्णय दिया गया।कोर्ट ने इन याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर अंतिम रूप से निर्णय दे दिया है।
राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि इन जनहित याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर कोर्ट ने अपना निर्णय अंतिम रूप से दे दिया है।इस कारण इन याचिकाओं की सुनवाई 3 जुलाई,2023 के पूर्व ही करके इनका निष्पादन कर दिया जाए।