बिहार प्रदेश बीजेपी के संगठन महामंत्री नागेन्द्र जी का बिहार से छुट्टी बिहार बीजेपी में सुशील मोदी युग के समापन के रुप में देखा जा रहा है । 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद जिस तरीके से बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व ने नंद किशोर यादव, प्रेम कुमार और सुशील मोदी को मंत्री पद से बाहर का रास्ता दिखाया, उसी दिन से यह कयास लगाये जाने लगा था कि भाजपा अब बिहार में सुशील मोदी के प्रभा-मंडल से बाहर निकलना चाहता है। लेकिन सुशील मोदी की पार्टी ,संगठन और विधायक पर इतनी मजबूत पकड़ है कि चाह करके भी केन्द्रीय नेतृत्व बहुत कुछ नहीं कर पा रहा है।
इस बात को लेकर सुशील मोदी के खिलाफ जो एक गुट तैयार किया जा रहा है, वो नागेन्द्र जी से खासे नराज चल रहे थे क्योंकि नागेन्द्र जी संघ और बीजेपी के बीच सेतू के पद पर थे। इसलिए बिहार बीजेपी के नेता बहुत कुछ कर नहीं पा रहे थे क्योंकि नागेन्द्र जी 2011 से प्रदेश के संगठन महामंत्री हैं और आज बीजेपी की केन्द्रीय नेतृत्व पार्टी के जिस नेता को मोदी के खिलाफ खड़ा करना चाह रही है, वो नागेन्द्र जी के प्रभामंडल के सामने टिक नहीं पा रहे थे ।
ऐसे में केन्द्रीय नेतृत्व नागेन्द्र जी को बिहार से बाहर किये बगैर सुशील मोदी युग को खत्म नहीं कर पा रहा थे, वहीं नागेन्द्र जी की संघ के अंदर ऐसी छवि थी कि सीधे सीधे इनको हटाया भी नहीं जा सकता था। इसलिए इन्हें बिहार और झारखंड का क्षेत्रीय महामंत्री नियुक्त किया गया और इनका मुख्यालय पटना से रांची बना दिया गया। फिर इनके जगह पर जिन्हें लाया गया है, वो नरेन्द्र मोदी के करीबी हैं और गुजरात से हैं। ऐसे में नागेन्द्र जी उंचे ओहदे पर होने के बावजूद बहुत कुछ कर नहीं पायेंगे।
मतलब, बिहार में बीजेपी सभी स्तर पर ऐसे पदाधिकारी और नेता का कद छोटा करने में लगी है, जिनका रिश्ता सुशील मोदी और नीतीश कुमार से है। ऐसी स्थिति में सवाल यह है कि बीजेपी बिहार में चाहती क्या है? नीतीश के साथ सरकार में है और वहीं नीतीश सहजता से सरकार ना चला सकें, ये भी खेल हो रहा है। देखिए, आगे आगे होता है क्या, लेकिन इतना तय है कि अब बीजेपी नीतीश को शासन व्यवस्था चलाने में खुली छुट देने के मूड में नहीं है।