कोई 1 वर्ष पहले मैंने अपने फेसबुक वॉल पर मोदी जी की तुलना औरंगजेब से की थी.
इस संदर्भ में कि शताब्दियों बाद भारत में औरंगजेब की तरह काम करने वाला कोई शासक फिर से आया है .
औरंगजेब में बहुत सारी खूबियां थीं , अच्छाइयां भी थी। परंतु लोगों को धार्मिक चश्मे से बांटकर देखने वाली बुराई ऐसी थी जो उसके तमाम गुणों पर भारी पड़ गई ।
यही बात मोदी जी के साथ भी है। उनमें कई गुण और अच्छाइयां मिल जाएंगी। परन्तु इन सब पर समाज को कई भागों में बांट कर देखने वाली उनकी नजर , इस कदर हावी है ,कि उनके प्रभाव से एक राष्ट्र के रुप में भारत की बुनियाद ही टूट और बिखर रही है।
वास्तव में सत्ता का नजरिया बहुत ही ताकतवर होता है। और होता है तो बहुत खतरनाक भी।
असल में समाज ही तो सत्ता का निर्माता है , आधार है। समाज ही टूट गया तो सत्ता का बिखर जाना तय है ।
दूसरे ही क्षण वह लोगों के सर को तोड़ती हुई गिरेगी, और अराजकता के धुंध में लोग लापता होने लगेंगे ।
आज हमारा संविधान उपेक्षित है हमारी संसद श्रीहिन हो चुकी है । सांसद महत्वहीन है । चुनाव आयोग ,आदेश पालक हो गया है । सीएजी अपनी सार्थकता बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है ।मानवाधिकार आयोगअपमानित है। दिशाहीन शिक्षा जगत अधोगति कीतरफ़ जा रहा है । सर्वोच्च न्यायालय पूरी तरह मुख्य न्यायाधीश के व्यक्तिगत चरित्र की दृढ़ता पर आधारित है।
लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए बनाई गई प्रत्येक संवैधानिक संस्था का मनोबल तोड़ दिया गया है। आखिर ये ही तो वे ईंटें हैं जिन्होंने हमारे राष्ट्र राज्य की बुनियाद को बनाया है।
इधर हमारे एक अनजान मित्र प्रियदर्शन ने नए औरंगजेबों की चर्चा की है। हजारों की संख्या में ये नए औरंगजेब पुराने औरंगजेब से बदला लेने निकल पड़े हैं। बहुत अच्छा आलेख है ।
मेरे लिए यह संदर्भ जयप्रकाश जी से जुड़ा हुआ है । जेपी ने कहा था कि भ्रष्टाचार की गंगोत्री ऊपर होती है ।
यानी सत्ता का शीर्ष जब भ्रष्ट होता है तो भ्रष्टाचार वहीं से नीचे उतरता हुआ समाज में फैल जाता है ।
यही बात समाज तोड़क नजरिये वाली सत्ता पर भी लागू है । नफरत का जहर सत्ता के शीर्ष से ही बहता हुआ नीचे आता है। हजारों औरंगजेब पैदा हो जाते हैं। हम नीचे रिहायशी समाज मे आपसी नफरत से भर जाते हैं । मारते हैं और मरते हैं ।
ऊपर की सत्ता शांति से नफरत की बंसी बजाती है ।
लेखक–कुमार शुभमर्ति