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ये तस्वीर जता रहा है कि बिहार की राजनीति किस दिशा की ओर बढ़ रहा है

राजनीति में बयान और तस्वीर बेमतलब कभी नहीं होता हर बयान और तस्वीर के पीछे कोई ना कोई संदेश जरुर छिपा रहता है । मुख्यमंत्री के आधिकारिक ग्रुप से कल एक तस्वीर जारी हुई है मौका था इन्वेस्टर्स मीट सह वस्त्र एवं चर्म नीति 2022 के लोकार्पण समारोह का जहां नीतीश कुमार उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन का पीठ थपथपा रहे हैं बिहार में मेरी जानकारी में ये पहली ऐसी तस्वीर है जिसमें नीतीश कुमार किसी मंत्री के काम की तारीफ इस तरह से सार्वजनिक रूप से किये हो।

वैसे शाहनवाज हुसैन जब से उद्योग मंत्री बने हैं विभाग की सक्रियता बढ़ी है इसमें भी कोई शक नहीं है लेकिन नीतीश कुमार कुछ दिन पहले तक शाहनवाज को लेकर सहज नहीं थे ये भी सार्वजनिक रूप से कई मौके पर देखने का मिला है तो फिर ऐसा क्या हुआ जो नीतीश के इतने चहेते बन गये ।

नीतीश के निशाने पर हैं अमित शाह
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग के सहारे जो कुछ भी हुआ उसको लेकर नीतीश अभी भी सहज नहीं है जिस वजह से बीजेपी के साथ रहने के बावजूद भी हमेशा दाव लगाते रहते हैं ।

एक बड़ी चर्चित गीत है ना कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना बस इसी अंदाज में नीतीश बिहार की राजनीति का साध रहे हैं और इसके लिए जब जब दिल्ली बीजेपी नीतीश कुमार पर दबाव बनाने कि कोशिश करता है लालू प्रसाद के परिवार से नजदीकी बढ़ाने का प्रयास ये तेज कर देते हैं ।

वही बीजेपी के अंदर मोदी और शाह के खिलाफ जो गोलबंदी शुरू हुई है उसका लाभ कैसे मिले इस पर नीतीश काम शुरु कर दिये हैं और यही वजह है कि नीतीश का रिश्ता कभी भी शाहनवाज और गडकरी से अच्छा नहीं रहा है क्यों कि दोनों नेता नीतीश की आलोचना कई मौके पर मुखर होकर कर चुके हैं ।

गांधी सेतु के दूसरे लेन के उद्घाटन समारोह के दौरान नीतीश और गडकरी की जो मुलाकात हुई देखने से ऐसा ही लग रहा था कि जैसे की वर्षो बाद बिछड़ा हुआ भाई मिल रहा हो।

इतना ही नहीं इस पूरे कार्यक्रम के दौरान मंत्री नित्यानंद राय बिहार विधानसभा की घटना के बाद कार्यक्रम के दौरान दूरी बनाते हुए दिखे क्यों कि राज्यसभा चुनाव के दौरान जिस अंदाज में उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने नित्यानंद को झिड़की लगाये थे उससे साफ हो गया था कि फिलहाल बिहार में शाह की नुमाइंदगी को तवज्जो मिलने वाली नहीं है और इस राजनीति को नीतीश का भी समर्थन प्राप्त है।

वैसे दिल्ली से होने वाले निर्णय में अभी भी टीम शाह भारी है लेकिन नहीं चाहते हुए भी नीतीश इसी रणनीति के सहारे पहले भूपेन्द्र यादव को बिहार से बाहर का रास्ता दिखाया दिया और फिर बिहार विधान परिषद में संख्या बल नहीं होने के बावजूद दो सीट देने पर बीजेपी को मजबूर कर दिये।

शाहनवाज और गडकरी

आने वाले समय में इस तरह की चौकाने वाली तस्वीरे और देखने को मिले तो कोई बड़ी बात नहीं होगी क्यों लम्बें वक्त के बाद बीजेपी के केन्द्रीय टीम में नीतीश की पहुंच मजबूत होते दिख रही है।

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