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2024 से पहले राजनाथ सिंह को निपटाने कि तैयारी तो नहीं है कुंवर सिह की जंयती से राजपूता नेताओं को अलग रखना

महात्मा गांधी को छोड़ दे तो देश के तमाम महापुरुषों को या तो राजनीतिक पार्टियां याद करती हैं या फिर उनके बिरादरी के लोग याद करते हैं। राजनीतिक दल के याद करने के पीछे भी कही ना कही महापुरुषों के सहारे उनके जाति को ही साधना रहता है।
बीजेपी भारतीय राजनीति में वर्षो ले चली आ रही इस नैरेटिव को अमृत महोत्सव कार्यक्रम के सहारे बदलना चाह रही है और प्रयोग के तौर पर बिहार में 23 अप्रैल को वीर कुंवर सिंह की जयंती के मौके पर उनके जन्मस्थली जगदीशपुर में भव्य कार्यक्रम का आयोजन करने जा रही है ।इस कार्यक्रम के संचालन की जिम्मेवारी नित्यानंद राय दो दी गयी है ।

कार्यक्रम सफल हो इसके लिए बीजेपी के तमाम विधायक और विधान पार्षद को दो सौ गांड़ी लाने की जिम्मेवारी दी गयी है वही सभी मंत्री को कार्यकर्ता के लाने ले जाने से लेकर ट्रैफिक व्यवस्था बहाल रखने तक की जिम्मेवारी दी गयी है कहा ये जा रहा है कि इस मौके पर तीन लाख तिरंगा फहराया जायेगा ताकी इस सभा का नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में दर्ज हो सके उसी स्तर की तैयारी भी चल रही है ।इस मौके पर खास तौर पर राजपूत नेता को अलग रखा गया है और इस कार्यक्रम में अमित शाह मुख्य अतिथि होंगे।

जानकारों का मानना है कि इसके पीछे दो वजह है एक तो बीजेपी जातिगत राजनीति को राष्ट्रवाद के सहारे साधना चाह रही है दूसरा राजनाथ सिंह को 2024 के चुनाव से पहले निष्प्रभावी बनाना

1—रणनीति के तहत राजपूत नेताओं को इस कार्यक्रम से दूर रखा गया है
बिहार में वीर कुंवर सिंह की जयंती राजद ,जदयू और भाजपा तीनों मनाती रही है और उन्हीं की जयंती के सहारे सभी राजनीतिक दल राजपूत वोट को साधने के कोशिश करते रहे हैं लेकिन बीजेपी ने इस पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा इस तरह से तैयार किया है कि वीर कुंवर सिंह की जयंती बीजेपी मना रही है राजपूत नहीं यह संदेश लोगों के बीच पहुंचे ताकी आने वाले समय में राजपूत के बड़े नेता को उसके अपने विरादरी में राष्ट्रवाद के सहारे नेपथ्य में पहुंचाया जा सके और यही वजह है कि राजनाथ सिंह को इस कार्यक्रम से पूरी तौर पर अलग रखा गया है ,

इतना ही नहीं आर0के0सिंह जो स्थानीय सांसद हैं उन्हें भी मुख्य जिम्मेवारी से दूर रखा गया है, कहा ये जा रहा है कि बीजेपी के इस रणनीति को भापते हुए ही औरंगाबाद सांसद सपरिवार होम कोरेन्टीन हो गये हैं ।कहां ये जा रहा है कि राज्यसभा सांसद गोपाल नारायण सिंह की सक्रियता को नियंत्रित करने के लिए अमित शाह खुद उनके मेडिकल में जाने कि स्वीकृति दिये हैं,इतना ही नहीं आरा ,सासाराम.औरंगाबाद जिले से जो राजपूत विधायक और विधान पार्षद है उन्हें भी इस कार्यक्रम से दूर रखा जा रहा है। भले ही मंच पर राजपूती शान दिखे लेकिन मंच पर राजपूत नेता कम से कम दिखे इसकी कोशिश अभी से ही चल रही है।

2–2024 से पहले राजनाथ सिंह को निपटाने की है तैयारी
बीजेपी की राजनीति पर नजर रखने वाले विद्वानों का मानना है कि भारतीय राजनीति में जाति को नकारा नहीं जा सकता है ,भ्रष्टाचार ,आतंकवाद,हिन्दू मुसलमान और भारत पाकिस्तान के सहारे मोदी और शाह 2014 और 2019 का चुनाव तो जीत लिये लेकिन 2024 में इन मुद्दों पर चुनाव जीतना सम्भव नहीं है ऐसा साफ दिख रहा है ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में जाति का नैरेटिव लौट सकता है जो मोदी और शाह को सूट नहीं करता है क्यों कि मोदी के साथ आक्रमक हिन्दू नेता की छवि है लेकिन शाह की ना तो ऐसी छवि है और ना ही वो हिन्दू हैं।

कहा जा रहा है कि एक बार संघ के बैठक में योगी इस मुद्दा को उठा भी चुके हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि देश का अगला पीएम तो अल्पसंख्यक ही बनेगा जिसको लेकर पूरे बैठक में मौजूद लोग योगी के तरफ देखने लगे थे और फिर योगी ने कहा था शाह तो जैन हैं और नरेंद्र भाई की इच्छा है कि शाह उनका उत्तराधिकारी बने ऐसे में देश का अलगा पीएम तो अल्पसंख्यक ही बनेगा ना।

कहा जाता है कि इस बैठक के बाद ही योगी और शाह के बीच दूरिया लगातार बढ़ती चली गयी और योगी के फिर से यूपी के मुख्यमंत्री बनने से शाह को कुछ ज्यादा ही परेशान है। यूपी की राजनीति को करीब से देखने वाले को पता है कि यूपी के चुनाव में किस तरह राजनाथ सिंह योगी के पीछे खड़े थे ।

ये सारा खेल राजनाथ सिंह की घेराबंदी के लिए खेला जा रहा है राजनाथ सिंह जिनके साथ बीजेपी के हिन्दी प्रदेश के अधिकांश बड़े नेता अभी भी खड़े हैं ऐसे में 2024 में गठबंधन की सरकार बनने कि स्थिति बनी तो राजनाथ सिंह मोदी और शाह दोनों के लिए परेशानी खड़े कर सकते हैं फिर राजनाथ सिंह 2024 के लोकसभा चुनाव में मार्गदर्शक मंडल वाली उम्र में भी नहीं पहुंच रहे हैं।

शाह और उनकी टीम राष्ट्रीय स्तर पर राजपूत की राजनीति को कैसे कमजोर किया जा सके इसकी कोशिश यूपी में भी किया और अब बिहार में वीर कुंवर सिंह की जयंती के सहारे करने कि है ऐसा राजनीति पर नजर रखने वाले जानकारों का मानना है ये कितना सफल होगा या फिर शाह की यह रणनीति बैक फायर करता है यह तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन इतना तय है कि 2024 का बिसात बिछ चुका है और अभी से ही बीजेपी के अंदर ही शह मात का खेल शुरू हो गया है ।

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