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शिवानंद तिवारी का बड़ा बयान लालू को तेजस्वी को गद्दी सौप देना चाहिए

जब लालू यादव ने अपने राजनीतिक वारिस के रूप में तेजस्वी यादव को चुना तो राष्ट्रीय जनता दल ने संपूर्ण हृदय से इसको स्वीकार किया. यह जरूरी भी था. इसलिए भी कि बिहार देश का सबसे युवा प्रदेश है. बिहार की पूरी आबादी में 58 फीसद आबादी 25 बरस से नीचे वालों की है. इस आबादी के सपनों और आकांक्षाओं को लालू यादव सहित हम पुरानी पीढ़ी के लोग नहीं समझते हैं, वक्त बदला है. यह आबादी गांवों के उन पुराने मुहावरों और कहावतों को नहीं समझती है जिसके महारथी लालू जी हैं. लेकिन इस युवा आबादी ने तेजस्वी यादव को स्वीकार किया है. इसका आकलन दो चुनाव के परिणामों से समझा जा सकता है. 2010 का विधानसभा चुनाव राजद ने लालू जी के नेतृत्व में लड़ा था. उस चुनाव में राजद के महज 22 विधायक जीत पाये थे.

उसके बाद विधानसभा का दूसरा चुनाव 2015 में हुआ. उस चुनाव में लालू ज़ी और नीतीश कुमार एक साथ हो गये थे. महागठबंधन की सरकार बन गई थी. उस चुनाव नतीजे से लालू यादव और नीतीश कुमार के संयुक्त ताकत का आकलन किया जा सकता है लेकिन स्वतंत्र रूप से राजद की ताकत का आकलन का वह नतीजा आधार नहीं हो सकता है। इसलिए उस चुनाव के परिणाम को यहां नजीर के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. लेकिन उसके बाद 2020 के चुनाव में गठबंधन बनाने से लेकर नेतृत्व तक शुद्ध रूप से तेजस्वी यादव ने किया था. उस चुनाव में राजद विधानसभा में न सिर्फ सबसे बड़े दल के रुप में उभरा बल्कि प्राप्त वोटों के प्रतिशत के हिसाब से भी सबसे बड़ा दल बना. वह चुनाव एक मामले में अनूठा था. देश के राजनीतिक क्षितिज पर नरेंद्र मोदी के उभार के बाद बिहार के विधानसभा का 2020 का चुनाव ऐसा पहला चुनाव था जिस के चुनाव अभियान में भाजपा सांप्रदायिकता को मुद्दा नहीं बना पाई. बल्कि तेजस्वी यादव ने रोजगार के सवाल को 2020 के चुनाव अभियान का प्रमुख मुद्दा बना दिया और नरेंद्र मोदी सहित तमाम पार्टियों को उसी मुद्दे पर चुनाव लड़ने के लिए बाद्धय किया. युवा तेजस्वी की यह बहुत बड़ी उपलब्धि थी. इस प्रकार वे देश की नजर में आ गये.

इसलिये उम्मीद की जा रही थी कि लालू जी तेजस्वी के हाथों में दल का संपूर्ण दायित्व सौंप देंगे. विधानपरिषद हो या राज्य सभा, इन सदनों में कौन जाएगा यह तय करने की छूट तेजस्वी को देंगे ताकि वे भविष्य के लिये अपनी टीम का निर्माण कर सकें लेकिन ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है.

इसलिए एक वरीय साथी होने के नाते मैं लालू जी को सलाह देना चाहूंगा के राज्यसभा के इसी चुनाव में वे तेजस्वी के हाथ में दल की संपूर्ण कमान सौंप दें. लालू जी को स्मरण होगा कि पूर्व में भी अनेक अवसरों पर एक से अधिक मर्तबा मैंने उनको सलाह दी होगी. लेकिन उन्होंने उनकी अनदेखी की. उसके फलस्वरूप उनका तो नुकसान हुआ ही, सामाजिक न्याय आंदोलन को भी नुकसान पहुंचा है. मैं उम्मीद करता हूं कि लालू जी मेरी सलाह का आदर करेंगे.

शिवानन्द
24 मई

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