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सरकार को गरीबी से नहीं गरीबों से नफरत है

कल मुजफ्फरपुर में युवा संकल्प सम्मेलन का आयोजन किया गया था उस सम्मेलन में एक वक्ता के रूप में मुझे भी बुलाया गया था। इस सम्मेलन में ऐसे लोग शामिल हुए थे जो मुजफ्फरपुर और उसके आसपास के इलाकों में सामाजिक सरोकार के मुद्दों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं या वैसे युवा शामिल हुए थे जो पंचायती राज व्यवस्था में चुनाव जीत कर आये हैं और उसी माध्यम से आज की राजनीति में कैसे जगह मिले इसके जुगत में हैं।

सम्मेलन का विषय था राजनीति में युवाओं की भूमिका एवं बिहार में बढ़ते अराजकता ।आयोजक ने सम्मेलन के दौरान अलग अलग फील्ड में काम रह रहे युवा को अपना अनुभव शेयर करने के लिए मंच पर बुलाया था, इस दौरान एलएस कॉलेज छात्रसंघ के एक पूर्व अध्यक्ष को भी मंच पर बोलने के लिए बुलाया गया जिस दौरान वो बताया कि एलएस कॉलेज का जो छात्रावास है उस छात्रावास को कॉलेज ने एसटीएफ को ट्रेनिंग सेंटर के लिए दे दिया है और सभी छात्रों को एक सप्ताह पहले हॉस्टल खाली करा दिया गया है ।

एलएस कॉलेज और ड्यूक हॉस्टल से मेरा भावनात्मक रिश्ता रहा है मैं यही का छात्र रहा हूं और इस हॉस्टल में ना जाने कितनी रातें गुजारी होगी।

मैं मंच पर बैठे बैठे कॉलेज के उस दौर में खो गये और आंखों के सामने वो सारा दृश्य घूमने लगा कैसे बंदूक के साये में भी छात्र मेडिकल ,इंजीनियरिंग आईआईटी और बीपीएससी निकाल रहा था ।

जी है वो दौर था मिनी नरेश बनाम छोटन शुक्ला का जिस दौरान आये दिन हत्या हुआ करता था अपराध का हाल था कि उत्तर भारत में पहली बार AK46 का इस्तेमाल यही हुआ था ।एलएस कॉलेज से लेकर पीजी हॉस्टल तक में बेगूसराय का अपराधी रहा करता था लेकिन पढ़ने वाले छात्रों को कभी परेशान नहीं करता था यह सब मेरे आंखों के सामने चल ही रहा था कि मंच संचालक की और से घोषणा हुआ कि मैं अब संतोष सिंह कशिश न्यूज के संपादक को अपनी बात रखने के लिए आमंत्रित करता हूं नाम सुनते ही एलएस कॉलेज की दुनिया में जो खो गये थे उससे वापस आते हुए डेस्क की तरफ बढ़ने लगे मेरे अंदर में एक क्रोध था कैसे सुनियोजित तरीके से बिहार के शिक्षण संस्थानों को खत्म कर दिया ।

1— देश के युवा राजनीतिक वीर बनो

मैं अपने स्पीच की शुरुआत एक अनुभव के साथ किया मेरी एक फेसबुक फ्रेंड है जो दिल्ली में सरकारी नौकरी कर रही थी उसके पति भी सरकारी नौकरी में ही है दोनों मियां बीवी दिल्ली में साथ साथ रह रहे थे ।

पत्नी राजनीतिज्ञ शास्त्र की छात्रा रही है और उनका सक्रिय राजनीति में आने की बड़ी इच्छा थी इसी को लेकर वो पहले वाली नौकरी छोड़ कर तीन चार वर्ष पहले बिहार में लेक्चरर की जो वैकेंसी आई थी उसमें शामिल हुई और पास होने के बाद बिहार के एक विश्वविद्यालय के पीजी डिपार्टमेंट में ज्वाइन की ।

ज्वाइन करने के पहले दिन से ही वो बिहार की राजनीति में कैसे प्रवेश करें इसके जुगत में लग गयी इसी दौरान हमारी उससे मुलाकात हो गयी और एक माह के क्लास में वो राजनीति से इतनी दूर हो गयी कि अब राजनीति में आने को लेकर सोचती भी नहीं है ।

उसका पति आज भी कहता है कि संतोष जी से एक बार मैं भी मिलना चाहता हूं जिसने तुझे ऐसा क्या समझाया जो तुम राजनीति में आने का सपना त्याग दी जबकि राजनीति में आने के लिए दिल्ली की नौकरी छोड़ दी खैर आज मुझे लगता है कि मैं गलत था मुझे उस लड़की को राजनीति में आने से नहीं रोकना चाहिए था।

2—राजनीतिक वीर बनने की जरूरत क्यों है

मेरा मानना था कि राजनीति में आये बगैर भी देश के सकारात्मक बदलाव में बहुत कुछ करने कि गुनजाइस है वही राजनीति में आने की जो प्रक्रिया है उसमें अपने विचार और सोच को बचाये रखना बहुत मुश्किल है जबकि एक पत्रकार के रुप में, एक समाजिक कार्यकर्ता के रुप में ,एक ब्यूरोक्रेट के रुप में या फिर भी न्याययिक अधिकारी के रुप में आप एक विधायक सांसद और मंत्री से बेहतर समाज और देश को दे सकते हैं ।

लेकिन 2014 के बाद जिस तरीके से संवैधानिक संस्थान और लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने वाले दबाव समूह को एक रणनीति के तहत इतना कमजोर किया गया कि आज सत्ता में बैठे लोग हिटलर से भी ज्यादा तानाशाह हो गया है ।

ऐसे में बदलाव की बात सोचने वाले लोग राजनीति में आये ऐसा मेरा मानना है लेकिन मेरी इक्छा है कि देश की एक पूरी पीढ़ी को जनता को यह समझाने में लगानी चाहिए कि एक वोट से ही अस्पताल में आपको डाँक्टर और दवा मिलेगा यह तय होता है, एक वोट ही से आपके बच्चे को स्कूल में बेहतर शिक्षा मिलेगा की नहीं यह तय होता है ।आपका अनाज जो डीलर खा जाता है या फिर हर काम के लिए आपको जो घूस देना पड़ता है प्रखंड और सीओ के साथ साथ थाने का चक्कर लगाना पड़ता है उस व्यवस्था को भी एक वोट से बदला जा सकता है ।

वोटर को आपको समझाना पड़ेगा कि नेता का चुनाव वैसे ही करे जैसे आप दमाद को चुनने के दौरान करते हैं तभी आप बेहतर भारत की बात कर सकते हैं इसलिए राजनीति में युवा आये ।

3—बात अग्निवीर की भी हो ही जाये
मेरे आने से पूर्व कई वक्ताओं ने अग्निवीर के विरोध में जो हिंसक आंदोलन चल रहा है उसको लेकर बड़ी बड़ी बातें कर गये थे गांधी के देश में ये नहीं चलेगा ये छात्र नहीं गुंडा है जिसको जो मन आया इस आंदोलन को लेकर कह गया था ।

अग्निवीर को लेकर जो चल रहा है उस संदर्भ में मेरा बस इतना ही कहना है कि ये जो हिंसा हो रहा है ना इसके लिए छात्र नहीं हम सब जिम्मेवार है और छात्रों पर हिंसा करने का आरोप लगा कर हम आप अपने जिम्मेवारी से नहीं भाग सकते ।

सवाल अग्निवीर का नहीं है सवाल यह है कि इस देश में गरीबों को रहने का अधिकार है कि नहीं मंच पर विधान पार्षद सच्चिदानंद राय बैठे है आप छपरा के जिस प्राथमिक विधालय या फिर हाई स्कूल से पढ़ कर आईआईटी पहुंचे और आज आप जैसे ही मेधावी छात्र उस स्कूल से पढ़ कर चपरासी भी बनने कि स्थिति में है। आप जिस जगदम कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई की वहां आज उस स्तर की पढ़ाई है। नीतीश कुमार जिस बख्तियारपुर हाई स्कूल से पढ़कर इंजीनियर बने उस स्कूल से पढ़ कर बच्चे चपरासी भी बनने की स्थिति में है। दिल पर हाथ रख कर सोचिए आप लोगों ने बिहार के बच्चों से पहले गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा को छीन लिया ,बिहार के बच्चों से सीएम साइंस कॉलेज दरभंगा को छीन लिया ,टीएनबी कॉलेज भागलपुर को छीन लिया, साइंस कॉलेज पटना को छीना ,गया कॉलेज गया जो छीना ,एलएस कॉलेज मुजफ्फरपुर को छीना इससे भी जी नहीं भरा तो आप लोगों ने बिहार के बच्चों से जेएनयू और दिल्ली विश्वविद्यालय भी छीन लिया ।

मंच और सामने बैठे युवा से मेरा आग्रह है पता करिए जेएनयू में कौन पढ़ता था बिहार के किसी भी बड़े शहर और बड़े बाप का बेटा जेएनयू छाकने भी नहीं जाता था हमारे आपके गांव का वह मेधावी बच्चा जिसके परिवार को दिल्ली जैसे जगह पर पढ़ाने का पैसा नहीं था उसका बच्चा वहां पढ़ता था।

ठीक है आपको लगता होगा की जेएनयू में पढ़ने वाला छात्र एक खास विचारधारा का बन जाता है अभी बिहार कैडर में बड़ी संख्या में आईएएस और आईपीएस जेएनयू से पढ़े है उसकी कार्यशैली को देखिए समझ में आ जायेगा जेएनयू ने इस देश को क्या दिया है उस जेएनयू को ऐसा बदनाम इन लोगों ने किया जैसे वह राष्ट्र को तोड़ने और बेचने वालो को पैदा कर रहा है ।
ऐसा नहीं है इन लोगों के एक साजिश के तहत गरीबों को बेहतर शिक्षा से वंचित करने के लिए ऐसा किया है गरीब पढ़े नहीं ये यही चाहते हैं ।

कारगिल युद्ध के बाद हम लोगों में सेना को लेकर एक अलग तरह का प्रेम जागृत हुआ और जब से देश में राष्ट्रवादी सरकार बनी है सेना और राष्ट्र को लेकर एक अलग तरह की फिजा बनाने कि कोशिश चल रही है।

मंच और सामने जितने मेरे युवा साथी बैठे हैं कारगिल से लेकर गलवान घाटी तक में हमारे जो सेना शहीद हुए हैं या फिर बीच बीच में आतंकी कार्यवाही के दौरान हमारे जो सेना शहीद हुए हैं कोई बता दे शहीद सेना किसी अधिकारी, नेता ,व्यापारी या सरकारी नौकरी वाले का बेटा रहा हो ।

ऐसे सैनिकों के सम्मान में आयोजित अंतिम यात्रा को कई बार कवर करने का मुझे मौका मिला है मेरा अनुभव यही है कि देश की सीमा की सुरक्षा की रक्षा में शहीद हुए मेरे अधिकांश जवानों के घर पर फूस और खपरैल का घर भी बा मुश्किल था ।
कई शहीद जवान के गांव तक पहुंचने का रास्ता तक नहीं था शहादत की खबर मिली तो प्रशासन रातो रात रास्ता बनाने पहुंचा।

ये लोग अग्निवीर के सहारे उस गरीब से देश की रक्षा में शहीद होने का हक भी छीन लिया है ताली बजाने की जरूरत नहीं है दोस्त इस सच्चाई को समझिए ये लोग गरीबी नहीं गरीब को ही खत्म करने पर लगे हैं ऐसे में ये सवाल पूरी तौर पर बेमानी है कि हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है हिंसा करने वाले अराजक तत्व है ।

आप वैसे छात्रों को अराजक कहे या देशद्रोही कहे जो नाम देना है दे दीजिए लेकिन यह तो बता दीजिए गरीबों से इतना नफरत क्यों है धन्यवाद कुछ ज्यादा समय आपका ले लिया इसके लिए माफी चाहता हूं पत्रकार हूँ ना इन नेताओं की चालबाजी को बहुत जल्द समझ जाता हूं धन्यवाद ।

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