ताड़ के पत्तों से किसी तरह रहने लायक बनाया गया छत। घर के अंदर बुझा हुआ चूल्हा। मामला जहानाबाद के सुरूंगापुर गांव का है। जहां हर किसी की आंखों नम थी। ये सब एक अबोध बालक के सामने हो रहा था।
जिसकी दुख भरी दास्तां को सुनकर हर कोई गमगीन हो रहा था। एक के बाद एक मौत ने पूरे परिवार को झकझौर कर रख दिया। जिसमें पहले मां , उसके बाद पिता उपेंद्र रजक और 4 दिन बाद में दादा की आकस्मिक मौत से जहां एक परिवार से उसके जिम्मेदारों को साया उठाकर भगवान ने कहर ढाया। मां , पिता की मौत के बाद दादा देखभाल कर रहे थे। 5दिन पहले दादा की भी अचानक मौत से परिवार से जिम्मेदारों का पूरी तरह से साया उठ गया।
अब सिर्फ अबोध बालक और उसके विकलांग दादी परिवार में बचे है। मुखिया ने बताया कि वह जल्द ही पंचायत से मिलने वाली सहायता उपलब्ध करा देगा, लेकिन सच यह है कि अभी तक एक पैसे की मदद नहीं मिली।
मां पिता और दादा की मौत से बच्चा सदमे में है कुछ बोल नहीं पाता, विकलांग और बुजुर्ग दादी जरूर पूछती है कि पहाड़ सी जिंदगी आखिर किसके सहारे कटेगी?
गांव से लेकर परिवार के आसपास के लोग इसी उम्मीद में है कि प्रशासन कुछ मदद करें और और बच्चे का लालन पालन हो जाए ताकि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके।