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प्रजातंत्र क़ा आधार है मतदाता सूची की शुद्वाता

वर्ष 2005 में, बिहार में दो बार विधानसभा के चुनाव हुए। एक फरवरी और दूसरा अक्टूबर में। बीच में राष्ट्रपति शासन का दौर रहा। केंद्रीय चुनाव आयोग ने बिहार के दुसरे चुनाव को बहुत गंभीरता से लिया था। पिछले करीब एक दशक से बिहार के चुनावी परिणामों पर आम आदमी का भरोसा उठ सा गया था जिस वजह से हर चुनाव के समाप्त होते ही आरोप-प्रत्यारोप के दौर शुरू हो जाते थे। किसी भी प्रजातंत्रीय व्यवस्था की सेहत के लिए यह स्थिति अनुकूल नहीं होती है।

तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त अत्यंत गंभीर स्वभाव के व्यक्ति थे। यद्यपि कि मैं मात्र IG रैंक का पदाधिकारी था और उनसे मेरा कोई व्यक्तिगत सम्बन्ध भी नहीं था, तथापि उन्होंने मुझे अलग से अपने कार्यालय में तलब किया यह समझने के लिए कि बिहार में स्वच्छ चुनाव कैसे कराया जा सकता है? उनके समक्ष बैठते ही उनका यह सीधा और स्पष्ट प्रश्न मेरे कानों में पड़ा। मैंने उत्तर दिया , “श्रीमान, कोई भी चुनाव उतना ही स्वच्छ होगा जितना कि उसका वोटर लिस्ट। अगर वोटर लिस्ट भ्रष्ट हुआ तो चुनाव स्वच्छ हो ही नहीं सकता।”

अक्टूबर 2005 के बिहार चुनाव का मूल मन्त्र मानो वोटर लिस्ट की शुद्धता बन गया था। एक विधानसभा क्षेत्र में जहाँ गंगा नदी के कटाव के कारण कई पंचायत लाचीरगी हो गए थे, वहाँ के लोगों का नाम विस्थापित होने के बाद भी वोटर लिस्ट में रखा जा रहा था। इसका चुनाव परिणाम पर अस्वस्थ प्रभाव पड़ता था। उस चुनाव में वोटर लिस्ट को “साफ़” करने के अभियान में बड़ी संख्या में बोगस वोटर्स को लिस्ट से निकाला गया।

चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले आए। जो पार्टी हारी वह भी अपनी हार स्वीकार कर रही थी।

लम्बे समय तक किसी एक राजनीतिक व्यवस्था का रहना चुनावी प्रक्रिया को “सब्वर्ट” अर्थात विकृत कर देता है। “सबवर्ज़न” की शुरुआत होती है वोटर लिस्ट को भ्रष्ट कर देने से और फ़िर हर कदम पर भ्रष्ट तरीका अपनाया जाता है। इस चुनाव ने दिखा दिया था कि सिर्फ़ एक वोटर लिस्ट को ठीक करने से ही सबवर्ज़न का प्रायः पूरा विष निष्क्रीय हो जाता है।

वोटर लिस्ट की व्यापकता और शुद्धता, दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं।

लेखक — अभयानंद पूर्व आईपीएस अधिकारी

गाँधी को कोई मार नहीं सकता है

मैं इतिहास का छात्र रहा हूँ और साहित्य में मेरी स्वाभाविक रूचि रही है। इस नाते इतिहास ने वस्तुनिष्ठता दी, तो साहित्य ने विषयनिष्ठ बनाया। इन सबके बीच मेरी संवेदनशील आलोचना-दृष्टि आकार ग्रहण करती चली गयी, और व्यावहारिक तक़ाज़ों के दबावों के बावजूद आज यही ‘संवेदनशील आलोचना-दृष्टि’ मेरे व्यक्तित्व की पहचान बन चुकी है।

मुझे लगता है कि इस ‘संवेदनशील आलोचना-दृष्टि’ के बिना गाँधी को जानना और समझना मुश्किल है। जब में इतिहास ऑनर्स का छात्र था, तो ग्रेजुएशन के उन दिनों गाँधी और गाँधीवाद की समझ न होने के कारण उसकी नकारात्मक आलोचना ऊर्जा और उत्साह का संचार करती रही, पर जैसे-जैसे गाँधी को जाना-समझा, उनसे प्यार होता चला गया। और अब तो इस प्यार का यह आलम है कि मेरी नज़रों में गाँधी और गाँधीवाद भारतीयता का पर्याय है।

गाँधी होने के मायने:
गाँधी से प्रेम का मतलब है भारत से प्रेम करना, भारतीयता से प्रेम करना। गाँधी से प्रेम किए बिना भारत से प्रेम नहीं किया जा सकता है और गाँधीवाद की समझ के बिना भारतीयता की समझ मुश्किल है। और, गाँधी से नफ़रत करके तो भारत से प्रेम किया ही नहीं जा सकता है। ऐसा कोई भी दावा ढ़कोसला है और ऐसा दावा करने वाले देश को खोखला कर रहे हैं।

इसलिए गोडसेवादियों को मेरा दो-टूक सन्देश है: “गाँधी को तुम मार न सकोगे, और गोडसे को तुम जिला न सकोगे। मारा व्यक्ति को जा सकता है, विचार को नहीं; और तुमने ‘गाँधी’ नाम के व्यक्ति को मारकर यह सुनिश्चित कर दिया कि विचार के रूप में गाँधी मरेगा नहीं, मर ही नहीं सकता, क्योंकि यह रामत्व और रावणत्व के प्रश्न से जाकर सम्बद्ध हो गया।

तुमने रावणत्व का पक्ष लेकर गाँधी को मजबूती से राम के पाले में ले जाकर खड़ा कर दिया। अगर गाँधी को मारना सम्भव होता, तो 30 जनवरी,1948 को गाँधी की हत्या के बावजूद गाँधी का भूत तुम्हें इस कदर डरा नहीं रहा होता और गाँधी तुम्हारी छाती पर चढ़कर मूँग नहीं दल रहे होते।”  

गाँधी भारतीयता के पर्याय:
गाँधी और गाँधीवाद को लेकर मेरी इस समझ को विकसित करने में इतिहास की भूमिका नहीं रही, ऐसा तो मैं नहीं कहूँगा क्योंकि गाँधी को समझने की यात्रा ही इतिहास से शुरू हुई; पर यह ज़रूर कहूँगा कि इस समझ को विकसित करने में साहित्य ने कहीं अधिक एवं निर्णायक भूमिका निभायी। मैंने गौतम बुद्ध, कबीर और तुलसी से लेकर मैथिली शरण गुप्त, प्रेमचन्द, प्रसाद, निराला, दिनकर, नागार्जुन और रेणु के साहित्य के ज़रिए भारतीय परम्परा, भारतीय समाज और भारतीय संस्कृति को भी समझने की कोशिश की तथा इसके सापेक्ष गाँधी और गाँधीवाद को रखकर देखा।

मुझे इनके बीच का फर्क मिटता हुआ दिखा, और फिर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि इन सारे चिन्तकों ने युगीन चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में भारतीय सांस्कृतिक चिंतन परम्परा की पुनर्व्याख्या की। बुद्ध ने ‘मध्यमा प्रतिपदा’ के ज़रिये अपनी युगीन चिंताओं का समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया, तो तुलसी ने समन्वयवादी चेतना के धरातल पर।

गाँधी ने यही काम सर्वधर्मसमभाव और अहिंसक सत्याग्रह के ज़रिये किया। इसने मुझे इस निष्कर्ष पर पहुँचाया कि भारत की सामासिक संस्कृति के केन्द्र में वैष्णव धर्म और वैष्णव संस्कार मौजूद है, सहिष्णुता एवं समन्वय जिसके प्राण-तत्व हैं, लेकिन इसका दायरा यहीं तक सीमित नहीं है। इसीलिए न तो वैष्णव धर्म और वैष्णव संस्कारों तक सीमित रहकर भारत और भारतीयता को समझा जा सकता है और न ही इसको नकार कर।

द्वंद्व और तनाव:
न तो भारतीय समाज कोई समरूप समाज रहा हो और न ही भारतीय संस्कृति समरूप संस्कृति। विविधता से भरे समाज और संस्कृति में में समरूपता सम्भव भी नहीं है। स्वाभाविक है कि यह विविधता विभिन्न सामाजिक एवं सांस्कृतिक समूहों के बीच हितों के टकराव को जन्म दे।

निश्चय ही यह स्थिति भारतीय समाज और संस्कृति में द्वंद्व एवं तनाव को जन्म देती है, और इस द्वंद्व एवं तनाव का लम्बा इतिहास रहा है। लेकिन, यह द्वंद्व और तनाव भारतीय समाज और संस्कृति का अंतिम सत्य कभी नहीं रहा।


द्वंद्व और तनाव: अंतिम सत्य नहीं:

कबीर ने इस बात को समझा, इसीलिए वे असहमति एवं विरोध तक ही सीमित नहीं रहे, वरन् उन्होंने अपने असहमति एवं विरोध को एक न्यायपूर्ण मानवीय समाज के निर्माण के साधन में तब्दील कर दिया। इसीलिए वे घृणा और विध्वंस तक नहीं रुके, वरन् प्रेम की बात करते हुए समन्वय के ज़रिये सृजन की प्रस्तावना की और इसी के कारण दुनिया ने उन्हें युगान्तर की क्षमता से लैस युग-प्रवर्तक एवं क्रान्तिकारी के रूप में सैल्यूट किया।

तुलसी ने तो उनकी इसी समन्वयवादी चेतना को अपनी रचना-दृष्टि के केन्द्र में रखा। इस बात को गाँधी ने भी समझा, और उनके युग के साहित्यकारों ने भी। इसी समझ ने उन्हें तुलसी के करीब लाने का काम किया, और इसी समझ के कारण रूसी क्रान्ति, मार्क्स और मार्क्सवाद के प्रति तमाम आकर्षण के बावजूद प्रेमचन्द गाँधी और गाँधीवाद के प्रति अपने मोह को अन्त-अन्त तक छोड़ नहीं पाए।

इसी मोह ने साम्यवाद के प्रति आकर्षण के बावजूद प्रसाद को भारतीय परम्परा एवं संस्कृति से दृढ़तापूर्वक जोड़े रखा। इसी मोह के कारण रेणु को भी समाजवाद और साम्यवाद भारतीय मसलों का हल दे पाने में असमर्थ लगा और इसकी क्रान्तिधर्मी चेतना के प्रति तमाम आकर्षण के बावजूद इसके लिए उन्हें गाँधी और गाँधीवाद की शरण लेनी पड़ी। और, इसी मोह के कारण राष्ट्रकवि दिनकर को यह कहना पड़ा:

अच्छे लगते हैं मार्क्स, किन्तु प्रेम अधिक है गाँधी से!
दरअसल गाँधी को कहावतों में तब्दील करते हुए भले ही हम कहते रहे हों कि ‘मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी’, पर वास्तविकता यह है कि गाँधी हमारी मजबूरी भी हैं और मजबूती भी।

यह गाँधी और गाँधीवाद की मजबूती है जो उन्हें हमारी मजबूरी में तब्दील कर देती है और इसी मजबूती के कारण दक्षिणपंथियों के खिलाफ अपनी लड़ाई में वामपंथ भी गाँधी की शरण में जाने के लिए विवश होता है, और दक्षिणपंथियों को भी भारत के भीतर से लेकर भारत के बाहर तक अपनी स्वीकार्यता सुनिश्चित करने के लिए गाँधी के दरवाज़े पर मत्थे टेकने होते हैं। पर, गाँधी और गाँधीवाद की विडंबना यह है कि उनके समर्थकों से लेकर उनके विरोधियों तक में उन्हें भुनाने और बेचने की होड़ लगी हुई है, और यही उसकी त्रासदी है।


गाँधीवाद: अपार धैर्य की माँग:
दरअसल गाँधी में कुछ ऐसा है जो हमें गाँधी से पूरी तरह से जुड़ने नहीं देता है। मार्क्स और मार्क्सवाद में जो क्षणिक आकर्षण है, उस क्षणिक आकर्षण का गाँधी और गाँधीवाद में अभाव है। कारण यह कि गाँधीवाद बदलाव की जिस प्रक्रिया की प्रस्तावना करता है, बदलाव की वह प्रक्रिया अत्यन्त धीमी एवं क्रमिक है, और इसीलिए थकाऊ एवं उबाऊ भी। और, उसकी यह कमी कई बार हमें विचलित करती है क्योंकि हममें इतना धैर्य नहीं होता है, बदलाव के लिए जितने धैर्य की अपेक्षा गाँधी और गाँधीवाद हमसे करता है।

यह स्थिति हमें मोहभंग की ओर ले जाती है और यह मोहभंग वैकल्पिक संभावनाओं की तलाश की ओर। इसके विपरीत, मार्क्सवाद में गजब का आकर्षण है। यह क्रान्ति के ज़रिये त्वरित बदलाव की बात करता है जिसकी परिकल्पना मात्र हमें रोमांचित करती है। इसीलिए गाँधी एवं गाँधीवाद से मोहभंग ने अक्सर भारतीय साहित्यकारों एवं चिन्तकों को मार्क्सवाद की ओर धकेलने का काम किया।

मार्क्सवाद की खामियाँ:
तमाम खूबियों के बावजूद मार्क्सवाद के प्रति आकर्षण टिक नहीं पाया। दरअसल, मार्क्स से भारतीय समाज एवं संस्कृति, या फिर भारतीय की सोच एवं मानसिकता को समझने की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। तब तो और भी नहीं, जब एशियाई समाज को लेकर मार्क्स के अपने पूर्वाग्रह हैं, और अधिकांश भारतीय वामपन्थी तक इसे समझ पाने में असफल रहे।

राम विलास शर्मा, नामवर सिंह से लेकर मुक्तिबोध और बाबा नागार्जुन तक जिन वामपंथियों ने इसे समझने की कोशिश की, उन्हें ‘अपनों’ के बीच ही उपेक्षा एवं तिरस्कार का सामना करना पड़ा। कभी उन्हें समग्रता में नहीं अपनाया गया, अपनी सुविधा के हिसाब से उन्हें टुकड़ों में लेने और समझने की कोशिश की गयी।

इसीलिये मार्क्सवाद का भारतीय परम्परा और संस्कृति से मेल नहीं है। इसके विपरीत, गाँधी का शनै:-शनै बदलाव परम्परा और संस्कृति की अवहेलना नहीं करता, वरन् उसके दायरे में रहते हुए ही बदलाव की प्रस्तावना करता है और व्यवस्था को मानवीय रूप प्रदान करता हुआ उन तमाम मसलों का हल सुझाता है जिनसे हमारा युग, समय, समाज और परिवेश जूझ रहा है।

इसके विपरीत, मार्क्स और मार्क्सवाद आमूलचूल बदलाव की बात करता है और बदलाव की इस प्रक्रिया में समाज एवं संस्कृति की अवहेलना छुपी हुई है। साथ ही, गाँधी और गाँधीवाद समझने की ज़रूरत पर बल देता है, जबकि मार्क्स एवं मार्क्सवाद समझाने की ज़रूरत पर बल। एक स्वत:स्फूर्त चेतना की परिस्थितियों को निर्मित करने में विश्वास करता है, तो दूसरा उस चेतना को आरोपित करने में।

यही वह पृष्ठभूमि है जिसमें इसीलिये मैं यह महसूस करता हूँ कि गाँधी को तुम मार नहीं सकोगे:

लेखक– सर्वेश कुमार

सारे जहां के गाँधी

सारे जहां के गाँधी –ओम थानवी

आज की राजनीति में अमेरिका गोया भगवान बन गया है। वाइट हाउस में पाँव धरना, आने-जाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति से झूठे-सच्चे संबंधों पर इतराना, बार-बार उस दूरी को नापना।

गाँधीजी कभी अमेरिका नहीं गए। लेकिन अमेरिका में छाए रहे। कई सुविख्यात पत्रिकाओं में गाँधीजी छवि को आवरण पर दिया गया। बारम्बार।

अपनी अटलांटा यात्रा में मैंने मार्टिन लूथर किंग जू. गाँधी स्मृति घर में गाँधीजी की अनेक तसवीरें और किताबें देखीं, जो किंग ने ख़ुद जमा की थीं। बाद में तो ख़ुद किंग “अमेरिकी गाँधी” कहलाए।

उनकी हत्या भी किसी सिरफिरे ने उसी घृणा के चलते की, जो हमारे यहाँ गोडसे और उसके आराध्य संगठनों में गहरे पैठी हुई थी।

पुण्यतिथि पर याद किए गए दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह

आज कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो० शशिनाथ झा जी की अध्यक्षता में उनके द्वारा प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। उन्हें याद करते हुए शशिनाथ झा ने कहा कि लक्ष्मीश्वर विलास पैलेस वह पुण्य स्थान है जहां महाराज ने जन्म लिया। शिक्षा ग्रहण किया,यज्ञोपवीत का संस्कार से लेकर विवाह संस्कार तक इसी भवन में हुआ। यह मनोरम स्थल बहुत ही महत्वपूर्ण है ।

1952 में जमींदारी प्रथा खत्म होने के बाद भी दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह द्वारा लोगों की भलाई के लिए यह भवन शैक्षणिक कार्यों के लिए आमजनमानस को दिया गया। इसी परिप्रेक्ष्य में 1960 संस्कृत विश्वविद्यालय के रूप में यह भवन महाराज के द्वारा स्थापित किया गया। संस्कृत शिक्षा के सर्वांगीण विकास हेतु उनके द्वारा यह कदम उठाया गया था।

संस्कृत के प्रति उनका समपर्ण इस बात का गवाह है कि लक्ष्मीश्वर विलास पैलेस जैसे भवन में आज संस्कृत विश्वविद्यालय संचालित है।ऐसे दानवीर, दूरगामी, सामाजिक अध्येयता, समाज के हितैषी जनमानस में इन्ही कारणों से सर्वदा लोकप्रिय थे और आज भी उनके विचार और कार्य लोगों के लिए कल्याणकारी और प्रेणादायक है।

सर कामेश्वर सिंह को याद करते हुए इसमाद के राहुल कुमार ने कहा कि कामेश्वर सिंह ने हमेशा लोगों के जीवनयापन को सुलभ बनाने के लिए समर्पित रहते थे।और यही वजह के इनके जीवन काल में मिथिला एक सम्पन्न क्षेत्र हुआ करता था।

इसमाद के न्यासी संतोष कुमार ने कहा सर कामेश्वर सिंह ने दरभंगा समेत मिथिला को विकसित करने के लिए सभी आधुनिक सुविधाओं से तराशा,जिसका सुख आज आमजनमानस को प्राप्त हो रहा है। लेकिन उनकी असमय मृत्यु से उनके कई कार्य निर्माणधीन ही रह गए जिसे पूरा करने में मिथिला के लोगों को मशक्कत करनी पड़ी।

इस अवसर पर उनसे स्नेह रखने वाले ने संतोष चौधरी, अभिनव सिन्हा, रवि प्रकाश,राजीव कुमार झा, सौरभ आदि ने भी अपने विचार रखे। और आज उनकी पुण्यतिथि पर सबने उन्हें याद कर नमन किया।

कन्हैया को लेकर राजद असहज कहां कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दे कन्हैया को

कन्हैया को लेकर असहज राजद की और से शिवानंद तिवारी ने आखिरकार मौर्चा खोल ही दिया ,कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने पर शिवानंद तिवारी ने कहा है कि कन्हैया कुमार भाषण देने की कला में माहिर है उनके जैसा भाषण कोई नहीं दे सकता।

कांग्रेस जॉइन करते समय कन्हैया कुमार ने कहा था कि कांग्रेस एक डूबता हुआ जहाज है, जिसे बचाना है। अगर बड़ा जहाज नहीं बचेगा तो छोटी-छोटी कश्तियों का क्या होगा? इस बयान को उन्होंने ऐतिहासिक करार दिया है।

शिवानंद तिवारी ने कहा कि एक समय वामपंथी कन्हैया कुमार में अपना भविष्य देख रहे थे। अब कांग्रेस उनमें अपना भविष्य देख रही है। कन्हैया कुमार को ही कांग्रेस अपना अध्यक्ष बना दे। पिछले दो साल से ऐसे भी वहां कोई स्थायी अध्यक्ष नहीं है।

शिवानंद तिवारी यही नहीं रुके कांग्रेस पर चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा कि राहुल गांधी के साथ मेरी पूरी सहानुभूति है। उन्होंने पंजाब का जिक्र करते हुए सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह की लड़ाई की बात कही शिवानंद तिवारी के इस बयान के बाद कांग्रेस भी शिवानंद तिवारी के सहारे राजद पर सीधे सीधे हमला शुरु कर दिया

कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अनिल शर्मा ने कहा राष्ट्रीय जनता दल का भविष्य ही इस बात पर निर्भर करता है कि कांग्रेस सहित तमाम सेकुलर पार्टियां कितना अधिक से अधिक कमजोर रहती हैं और खास तौर से कांग्रेस जैसी धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्ध पार्टी की मजबूती से राष्ट्रीय जनता दल ज्यादा भयभीत रहती है।

कन्हैया कुमार एक राजनीतिक रूप से समझदार नौजवान हैं और उसके कांग्रेस में आने से बिहार कांग्रेस और मजबूत हुआ है,कांग्रेस नेता आनंद माधव ने शिवानंद तिवारी के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि शिवानंद जी सठिया गए हैं। कन्हैया के बारे में निर्णय कांग्रेस को लेना है, वे अपना खून क्यों जला रहे हैं।

हलाकि इस तरह का बयावबाजी आने वाले समय में और तेज होगी क्यों कि कन्हैया को लेकर राजद का जो कोर ग्रुप है वो सहज नहीं है और उस ग्रुप का मानना है कि कन्हैया के मजबूत होने से राजद और तेजस्वी के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है ।

केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री भारत व पाकिस्तान सीमा के लाइन ऑफ कंट्रोल का किया दौरा

देश के जवानों का साहस और मनोबल काफी ऊँचा है – नित्यानंद राय

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री श्री नित्यानंद राय जम्मू और कश्मीर के तीन दिवसीय प्रवास के क्रम में भारत-पाकिस्तान सीमा अर्थात लाइन ऑफ कंट्रोल का दौरा किया ।

एलओसी पर स्थित भारतीय सेना एवं सीमा सुरक्षा बल की फारकियन टॉप , पात्रा बेस कैंप , गुर्जरडोर एवं सुंदरमाली स्थित अलग-अलग चौकियों का दौरा कर केंद्रीय मंत्री श्री राय ने अधिकारियों और सैनिकों से संवाद किया तथा उनका मनोबल बढ़ाया ।

मंत्री श्री नित्यानंद राय ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में देश की सीमा और संप्रभुता पूरी तरह सुरक्षित है । देश के जवानों का साहस और मनोबल काफी ऊँचा है ।

उन्होंने कहा कि सीमा पर -30 से -35 डिग्री तापमान तक से लेकर किसी भी परिस्थिति से विजय पाने में देश के जवान सबल और सक्षम है । मंत्री श्री राय ने कठिन इलाकों में भी उच्च मनोबल और प्रेरणा बनाए रखने के लिए सैनिकों की सराहना किया ।

एलओसी के दौरा में मंत्री श्री नित्यानंद राय के साथ बीएसएफ के आईजी डॉ राजेश मिश्रा , डीआईजी एक के विद्यार्थी तथा कमांडेंट श्री संजय शर्मा सहित अन्य अधिकारी गण शामिल रहे ।

छपरा नगर निगम द्वारा आवंटित दुकानों को खाली करने के आदेश पर हाई कोर्ट ने जारी किया नोटिस

पटना हाई कोर्ट ने छपरा नगर निगम द्वारा आवंटित दुकानों के एग्रीमेंट को रद्द करने व दुकानों को खाली करने के निगम आयुक्त के आदेश को रद्द करने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई की। जस्टिस अनिल कुमार सिन्हा ने छपरा के डी एम व निगम आयुक्त को नोटिस जारी किया। जिलाधिकारी और निगम के कमिश्नर को नोटिस जारी किया है।

साथ ही कोर्ट ने यथास्थिति बनाये रखने का आदेश देते हुए राज्य सरकार, निगम और जिलाधिकारी से जवाब तलब किया है। छपरा निगम क्षेत्र स्थित खनुआ ड्रेनेज को स्थानीय लोगों द्वारा ढकने का अनुरोध किया गया था।

उसके बाद ढके गए ड्रेनेज पर वर्ष 1997 में दुकान का निर्माण प्रारंभ किया गया, जो वर्ष 2000 में पूरा हुआ। याचिकाकर्ताओं को दुकान आवंटित किया गया और उनके साथ करार भी हुआ।

छपरा के नगरपालिका द्वारा द्वारा वर्ष 2011 में अखबार में यह समाचार प्रकाशित करवाया गया कि ड्रेनेज पर किये गए अवैध अतिक्रमण को हटाया जाएगा। इसके बाद वर्ष 2011 में ही पटना हाई कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया। याचिका के निष्पादित होने की तिथि पांच दिन के भीतर दुकानदारों के अभ्यावेदन को निष्पादित करने का आदेश दिया।

वर्ष 2017 में फिर से दुकानों को खाली करने को लेकर समाचार प्रकाशित किया गया।
वर्ष 2017 में कुछ याचिकाकर्ताओं समेत अन्य लोगों ने पटना हाई कोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर किया, जोकि अभी भी लंबित है। याचिका के लंबित रहने के दौरान याचिकाकर्ताओं को परेशान नहीं किया गया।

वरीय अधिवक्ता योगेश चंद्र वर्मा ने कोर्ट को बताया कि निगम आयुक्त के हस्ताक्षर से 25 अगस्त, 2021 को आवंटित किये गए दुकानों का करार को रद्द करते हुए नोटिस जारी कर एक सप्ताह के भीतर दुकानों खाली करने का आदेश दिया गया।
इसी मामले में कोर्ट ने आदेश पारित करते हुए अधिकारियों को नोटिस जारी जवाब माँगा गया। इस मामले पर अब तीन सप्ताह बाद सुनवाई की जाएगी।

15 वर्षो के सुशासन में बिहर का स्वास्थ्य व्यवस्था देश में सबसे फिसड्डी– नीति आयोग

कोरोना काल के दौरान एक एक बेड और एक एक बूंद आक्सीजन के लिए जिस तरीके से तरप तरप कर लोगों की मौत हुई थी सारी दुनिया ने देखा ।लेकिन बाद में इसको लेकर सरकार के अलग अलग राय आने लगे और जिस मौत को नंगी आंखों पूरी दुनिया ने देखा उस सवाल खड़े होने लगे लेकिन नीति आयोग की रिपोर्ट ने देश की पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल करके रख दिया है ।

देश में एक लाख की आबादी में सबसे अधिक 20 बेड मध्यप्रदेश में है और सबसे कम बिहार में एक लाख आबादी में मात्र 06 है मतलब अस्पताल में बेड के मामले में बिहार देश का सबसे फिसड्डी राज्य है जब बेड नहीं है तो आप डाँ और अन्य संशाधनों के बारे में सहज अंदाजा लगाया जा सकता है हलाकि नीति आयोग के रिपोर्ट को लेकर जब स्वास्थ्यमंत्री से सवाल किया गया तो जबाव देना तो दूर मीडिया से बचते बचाते भागते दिखे।

हलाकि इसको लेकर नेता प्रतिपंक्ष तेजस्वी ने ट्वीट करते हुए लिखा, 16 वर्षों के थकाऊ परिश्रम के बूते बिहार को नीचे से नंबर-1 बनाने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी को बधाई. 40 में से 39 लोकसभा MP और डबल इंजन सरकार का बिहार को अद्भुत फ़ायदा मिल रहा है. नीति आयोग की रिपोर्ट अनुसार देश के जिला अस्पतालों में सबसे कम बेड बिहार में हैं, 1 लाख की आबादी पर मात्र 6 बेड।

हलाकि नीति आयोग के रिपोर्ट को लेकर सरकार रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से पहले से ही सवाल खड़े कर रहे थे राज्य के योजना एंव विकास मंत्री विजेन्द्र यादव चार दिन पहले पीसी करके नीति आयोग के कार्यशैली पर जमकर भड़ास निकाला था ।

नीति आयोग देश के स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर जो रिपोर्ट जारी किया है उसके अनुसार नीति देश के जिला अस्पतालों में सबसे कम बेड बिहार में हैं, 1 लाख की आबादी पर मात्र 6 बेड.” जिला स्तर पर प्रति लाख आबादी अस्पतालों में बेड की उपलब्धता के मामले में सभी राज्यों से बिहार के सबसे खराब प्रदर्शन गुरुवार को जारी नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार जिला अस्पतालों में प्रति लाख आबादी बेड की संख्या के मामले में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सबसे ऊपर है. यहां प्रति लाख आबादी 20 बेड हैं. जबकि पश्चिम बंगाल, राजस्थान और गुजरात में 19, पंजाब, आंध्रप्रदेश और असम में 18, जम्मू कश्मीर में 17, महाराष्ट्र में 14, हरयाणा और उत्तरप्रदेश में 13, तेलंगाना में 10, झारखंड में नौ और बिहार में केवल छह बेड प्रति लाख आबादी उपलब्ध हैं.

भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (आईपीएचएस) 2012 के दिशानिर्देश के अनुसार जिला अस्पतालों को प्रति 1 लाख आबादी (2001 की जनगणना के जिला जनसंख्या औसत के आधार पर) कम से कम 22 बिस्तर बनाए रखने की सलाह दिया गया है. लेकिन गुरुवार नीति आयोग की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार कई राज्य ऐसे हैं जहां मानकों का पालन नहीं किया जा रहा. खासकर बिहार की स्थित बदतर है।
हलाकि यह रिपोर्ट काफी कुछ हकीकत बया कर रहा है बिहार के जिला अस्पताल का हाल सच में काफी बूरा है ।

पूर्णिया में खुलेगा बल्ड बैंक, चार जिलों के बल्ड बैंक के लाइसेंस का नवीनीकरणः मंगल पांडेय

पटना। स्वास्थ्य मंत्री श्री मंगल पांडेय ने कहा कि पूर्णिया में सरकारी ब्लड बैंक खोलने के लिये लाइसेंस जारी कर दिया है। साथ ही मुंगेर, मधेपुरा, श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और दरभंगा मेडिकल कॉलेज के ब्लड बैंक के लाइसेंस का नवीनीकरण किया गया है। पूर्णिया और मुंगेर के लिए बल्ड कंपोनेंट सेपरेशन का भी लाइसेंस निर्गत किया गया है। शेष बचे जिलों में भी स्वास्थ्य विभाग बल्ड बैंक खोलने की दिशा में प्रयासरत है।

श्री पांडेय ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग जरूरतमंदों को समय पर रक्त उपलब्ध कराने को लेकर निरंतर प्रयास कर रहा है। राज्य के सभी मरीजों को बल्ड की उपलब्घता सुनिश्चित कराने को लेकर हर जिला में सरकारी ब्लड बैंक खोलने की प्रक्रिया चल रही है। पूर्णिया में बल्ड बैंक खुलने के बाद अब प्रदेश में सरकारी ब्लड बैंक की संख्या 41 हो जायेगी, वहीं मुंगेर 12वां बल्ड कंपानेंट सेपरेशन यूनिट होगा। उन्होंने कहा कि हर साल समय पर रक्त नहीं मिलने के कारण जरूरतमंद लोगों की असमय मौत हो जाती है। कोई भी स्वस्थ पुरुष तीन माह के बाद यानी साल में चार बार और कोई भी स्वस्थ महिला चार माह के बाद यानी साल में तीन बार रक्तदान कर सकती हैं।

बिहार सरकार न्यूनतम मजदूरी दर में की वृद्धि

बिहार राज्य में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के अंतर्गत सभी 88 अधिसूचित नियोजनों में दिनांक 01.10.2021 से प्रभावी न्यूनतम मजदूरी की दरों हेतु अतिरिक्त परिवर्तनशील महंगाई भत्ता निर्धारित की गयी है|

प्रत्येक वर्ष अनुसूचित नियोजनों में नियोजित विभिन्न श्रेणियों के कर्मचारियों के लिए निर्धारित / पुनरीक्षित न्यूनतम मजदूरी के दरों पर परिवर्तनशील महंगाई भत्ता लागू करने हेतु श्रम संसाधन विभाग द्वारा वर्ष में 02 बार अर्थात 01अप्रैल एवं 01अक्टूबर से न्यूनतम मजदूरी के दरों को पुनरीक्षण किया जाता है|

न्यूनतम मजदूरी की दरों के निर्धारण/ पुनरीक्षण हेतु न्यूनतन मजदूरी अधिनियम, 1948 के अंतर्गत अधिसूचित बिहार न्यूनतम मजदूरी परामर्शदात्रि पर्षद की बैठक में अनुशंसित किया गया है|

उक्त अनुशंसाओं के आलोक में सामान्य नियोजनों में कार्यरत अकुशल, अर्धकुशल, कुशल, अतिकुशल एवं पर्यवेक्षीय एवं लिपिकीय कामगारों को लाभ होगा एवं उन्हें देय मजदूरी क्रमश: 02 रूपया, 02 रूपया, 03 रूपया, 04 रुपया एवं 68 रूपया की बढ़ोतरी होगी| उक्त निर्णय से घरेलु कामगार नियोजन, कृषि नियोजन के कामगारों को भी लाभ होगा|

हाईकोर्ट के जज जस्टिस राजेन्द्र कुमार मिश्रा के सेवा काल का कल होगा आखरी दिन

पटना हाईकोर्ट के जज जस्टिस राजेंद्र कुमार मिश्रा सेवानिवृत हो रहे हैं।इनके सेवानिवृत होने पर पटना हाईकोर्ट में विदाई समारोह आयोजित किया गया।इस अवसर पर चीफ जस्टिस व अन्य जज उपस्थित रहे।

इनके सेवानिवृत होने की बाद पटना हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस समेत कुल जजों की अठारह रह जाएगी।पटना हाईकोर्ट में जजों के स्वीकृत पदों की संख्या 53 है,लेकिन अब तक इस संख्या तक जजों के पद नहीं भरे जा सके है।

बिहार के जनसंख्या के अनुपात में जजों की वर्तमान जजों की स्वीकृत संख्या 53 की जगह कम से कम 75 जज होने चाहिए थे,परंतु अभी वर्तमान स्वीकृत जजों की संख्या के एक तिहाई जज ही कार्यरत हैं।

सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने अभी हाल में पटना हाईकोर्ट के जज जस्टिस ए अमानुल्लाह को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट स्थानांतरित करने की अनुशंसा की हैं।दूसरी ओर दूसरे हाईकोर्ट से चार जजों के पटना हाईकोर्ट स्थानांतरित करने की भी अनुशंसा सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कर दी है।

इनमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस राजन गुप्ता,कर्नाटक हाईकोर्ट से जस्टिस पी बी बजनथ्री,राजस्थान हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और केरल हाईकोर्ट से जस्टिस ए एम बदर के नाम शामिल हैं।

इनके अतिरिक्त पटना हाईकोर्ट के वकील कोटा से 6 वकीलों के नाम और बिहार न्यायिक सेवा से दो लोगों के नाम जज की बहाली के सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम अनुशंसित किया है।

वकील कोटा से पटना हाईकोर्ट के जज नियुक्त करने के लिए जिनकी अनुशंसा की गई है,उनके नाम खातीम रजा, संदीप कुमार,अंशुमान पांडे,पूर्णेंदु कुमार सिंह,सत्यव्रत वर्मा और राजेश कुमार वर्मा है।न्यायिक सेवा से पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल नवनीत कुमार पांडे और सुनील कुमार पंवार के नाम की अनुशंसा की गई है।

अगर ये सभी जज के रूप में अपना योगदान दे देते हैं, तो जजों की संख्या निश्चित रूप से बढ़ेगी,लेकिन फिर भी जजों के स्वीकृत पदों की संख्या के लगभग आधे पद रिक्त पड़े रहेंगे।

प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में जम्मू और कश्मीर विकास पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है – नित्यानन्द राय

माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में जम्मू और कश्मीर विकास पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है – नित्यानन्द राय

केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्री नित्यानन्द राय तीन दिवसीय दौरा पर 29 सितंबर को जम्मू और कश्मीर पहुँचे । कुपवाड़ा जिले में में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों को संबोधित करते हुए मंत्री श्री राय ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में जम्मू और कश्मीर विकास पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है ।

श्री राय ने कहा कि
कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य सहित अनेक क्षेत्रों में आधारभूत संरचना के विकास का काम भी गतिशील है। कुपवाड़ा जिले के खहिपोरा जाचलदरा में गृह राज्यमंत्री श्री राय ने मॉडल एग्रीकल्चर फार्म का शिलान्यास किया एवं फार्म में मटर के बीज बोए ।

इस क्रम में केन्द्रीय मंत्री श्री राय DDC/BDC/PRI प्रतिनिधिमंडल, पहाड़ी स्पीकिंग लोगों के एडवाइजरी बोर्ड के प्रतिनिधियों, स्वंय सहायता समूह के इंजीनियर्स से मुलाकात की एवं सभी से सरकार द्वारा चलाये जा रहे विकास की नई पहलों का लाभ उठाने को कहा ।

इस अवसर पर मंत्री श्री राय कुपवाड़ा के सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा पार्टी कार्यसमिति के कार्यकर्ताओं से भी मुलाकात किये एवं विभिन्न विषयों पर उनसे बातचीत की ।

पटना में कोरोना की फर्जी जांच में लगे एक बड़े रेकेट का हुआ खुलासा एक दर्जन से अधिक डायग्रोस्टिक सेंटर जांच के दायरे

ये बिहार है भाई यहां सब कुछ चलता है नया मामला कोरोना टेस्ट के फर्जी रिपोर्ट से जुड़ा हुआ है यह खुलासा तब हुआ जब पटना एयरपोर्ट पर एक ही लैब से रोजाना कोरोना से जुड़ी रिपोर्ट आने लगा जांच हुई तो पता चला सारे रिपोर्ट फर्जी तरीके से बनाया जा रहा है।

राजा बाजार स्थित प्लाज्मा डायग्नोस्टिक को लेकर यह सूचना मिली कि मात्र 1200 रुपया लेकर कोरोना पॉजिटिव को निगेटिव की RT-PCR रिपोर्ट बनाकर देती थी। यह लैब संक्रमित लोगों को भी कोरोना की निगेटिव RT-PCR जांच रिपोर्ट देता था, जिसे दिखाकर लोगों ने हवाई यात्रा भी की।

पटना की एयरलाइंस कंपनियों ने बड़े पैमाने पर चल रहे इस खेल को पकड़ा और फिर निदेशक को सूचना दी। उन्ही के सूचना के आधार पर कल देर शाम शास्त्रीनगर थाने कि पुलिस ने छापा मारा जिस दौरान फर्जीवाड़े से जुड़े कई साक्ष्य बरामद हुए है ।पुलिस लैब के कर्मचारी और मालिक पर FIR दर्ज किया है।

राजा बाजार के प्लाज्मा डायग्नोस्टिक में खेल
जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि राजा बाजार स्थित प्लाज्मा डायग्नोस्टिक में फर्जी जांच रिपोर्ट का बड़ा खेल चल रहा था और इसका नेटवर्क एयरपोर्ट से लेकर कई इलाकों में फैला था। पटना एयरपोर्ट पर एयरलाइंस कंपनियों ने इस खेल को पकड़ा और गोपनीय तरीके से इसकी लिखित जानकारी एयरपोर्ट डायरेक्टर को दी।

डायरेक्टर ने डीएम को पत्र लिखकर कोरोना फैलाने के इस खतरे को तत्काल बंद कराने की मांग की थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए जिलाधिकारी ने जांच टीम का गठन किया था जिसमें खुलासा हुआ।

ऐसे हुआ खुलासा
डीएम डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने पटना एयरपोर्ट पर फर्जी RTPCR परीक्षण रिपोर्ट रैकेट की जांच के लिए टीम का गठन किया था। इसमें नगर दंडाधिकारी जिला नियंत्रण कक्ष, नयाचार पदाधिकारी पटना, जिला कार्यक्रम प्रबंधक डीएचएस, डॉ प्रशांत और थानाध्यक्ष पटना एयरपोर्ट को लगाया गया था।

विभिन्न सूत्रों से जानकारी के आधार पर जांच टीम ने राजाबाजार के प्लाज्मा डायग्नोस्टिक में छापेमारी कराई। जांच में पाया गया कि फर्जी जांच रिपोर्ट की जड़ प्लाज्मा डायग्नोस्टिक से जुड़ी है।

बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहा था लैब, जांच में पाया गया कि प्लाज्मा डायग्नोस्टिक क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत नहीं है। डायग्नोस्टिक सेंटर की जांच में चार लैब का रिपोर्ट एवं पैसे का रसीद पाया गया।

यह पुष्टि हुई कि सेंटर द्वारा अवैध टेस्ट किए जाते थे तथा फर्जी रिपोर्ट जारी किया जाता था। साथ ही कोरोना के मानक का पालन नहीं किया जाता था। जांच में चार विभिन्न लैब का रिपोर्ट एवं पैसे का रसीद बरामद किया गया।
सवालों के घेरे में कई लैब, छापेमारी में पटना के चार लैब सवालों के घेरे में हैं।

इसमें सरल पैथ लैब, जेनरल डायग्नोस्टिक इंटरनेशनल, हिंद लैब्स डायग्नोस्टिक सेंटर शामिल हैं। छापेमारी के बाद अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ अविनाश कुमार सिंह के आवेदन के आधार पर शास्त्री नगर थाने में प्लाज्मा डायग्नोस्टिक पिलर नंबर 83 के सामने राजा बाजार पटना के संबंधित मालिक और कर्मियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कराया गया है।

गंगा नदी के कारण विस्थापित महादलित परिवारों के पुनर्वास को लेकर हाईकोर्ट ने दिया आदेश

पटना हाईकोर्ट ने पटना के पानापुर दियारा की ज़मीन गंगा के बढ़े जलस्तर कारण बेघर हुए महादलित परिवारों का जल्द पुनर्वास कराने का राज्य सरकार को प्रभावी कार्रवाई करने का निर्देश दिया । रंजीत राम की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने सुनवाई की।

कोर्ट ने इस मामले पर कड़ा रुख अपनाते से हुए आपदा प्रबंधन के विशेष सचिव व पटना के जिलाधिकारी को संयुक्त बैठक करने का निर्देश दिया।

गंगा नदी के बाढ़ से विस्थापित हुए 159 महादलित परिवारों के प्रतिनिधियों से बातचीत कर उन्हें प्रति परिवार चार डिसमल भूमि पुनर्वास हेतु मुहैय्या कराने का निर्देश दिया है ।

याचिकाकर्ता के वकील डॉ रंजीत कुमार ने कोर्ट को बताया कि प्राकृतिक आपदा से विस्थापित या बेघर हुए महादलितों के पुनर्वास हेतु राज्य सरकार खुद की बनाई नीति पर अमल नही कर रही है । राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को आश्वास्त किया गया कि इस मामले पर प्रभावी कार्रवाई की जाएगी।

बिहार विधानसभा उपचुनाव में कुशेश्वरस्थान से कांग्रेस की ओर से अशोक राम का लड़ना तय

बिहार विधानसभा उपचुनाव में कुशेश्वरस्थान से कांग्रेस पार्टी का चुनाव लड़ना तय हो गया है हलाकि पार्टी की ओर से अशोक राम का टिकट तय माना जा रहा है फिर भी कांग्रेस आलाकमान ने पार्टी प्रत्याशी के चयन के लिए कांग्रेस(Congress) ने पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया है।

कमेटी से चयनित उम्मीदवार के नामों की सूची दो अक्टूबर तक मांगी गई है। कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्तचरण दास ने इस विधानसभा क्षेत्र की अद्यतन स्थिति की जानकारी देने और उम्मीदवारों के चयन के लिए जो कमेटी बनाई है उसमें आनंद माधव, कपिल देव प्रसाद यादव, कैसर खान, आइपी गुप्ता और अजय पासवान को शामिल किया है।पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष समीर कुमार सिंह द्वारा जारी आदेश के मुताबिक कमेटी को अगले दो दिन के अंदर अपनी रिपोर्ट सौपनी होगी।

2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट से डा. अशोक कुमार को अपना प्रत्याशी बनाया था। यहां से जदयू ने शशिभूषण हजारी को सिंबल दिया था।

शशिभूषण हजारी ने मुकाबले में उतरे कांग्रेस उम्मीदवार डा. अशोक कुमार को 7222 वोट से पराजित किया। शशिभूषण का इस वर्ष जुलाई महीने में निधन हो गया। जिसके बाद से कुशेश्वरस्थान की यह सीट खाली है।

देश में बिहार महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित राज्य अश्लील हड़कत में बिहार एक नम्बर पर।

बिहार में महिला सशक्तिकरण को लेकर भले ही बड़ी बड़ी बाते हो रही है लेकिन एनसीआरबी का आकड़ा कह रहा है कि महिलाये देश में सबसे अधिक असुरक्षित बिहार में है । वर्ष 2020 की एनसीआरबी (National Crime Record Bureau) की रिपोर्ट के अनुसार बिहार अश्‍लीलता संबंधी अपराध में देश में नंबर वन पर है।

वहीं दहेज प्रताड़ना और जबरन शादी के मामले भी बढ़े हैं। साथ ही छोटी उम्र की बच्चियों के साथ हिंसा के मामले में भी इजाफा हुआ है।

अश्‍लीलता संबंधी अपराध में एक वर्ष में दौरान पूरे देश में 553 मामले दर्ज हुआ जिनमें केवल बिहार में 106 घटनाएं हुईं। जबकि, 83 मामलों के साथ केरल दूसरे नंबर पर रहा। तीसरे स्थान पर बिहार का ही पड़ोसी राज्‍य झारखंड रहा, जहां 71 मामले दर्ज हुए।

चौथे नंबर पर कनार्टक और तमिलनाडु रहा। वहां क्रमश: 54 और 53 मामने दर्ज किए गए।हलाकि इस तरह के मामलो में महिलाएं या लड़कियां अभी भी शिकायत करने से बचती है लेकिन जिस तरीके के आकड़े सामने आये हैं वो चौकाने वाला है ।

महिलाओं के प्रति हिंसा के आंकड़े, एक नजर
व‍र्ष 2018 2019 2020
कुल 16920 185687 15359
वर्ष 2020 में महिलाओं के साथ हुए अपराध
दुष्कर्म के बाद हत्या : 03
दहेज के लिए हत्या : 1046
आत्महत्या का प्रयास : 21
एसिड अटैक : 01
पति से प्रताड़‍ित : 1935
अपहरण : 6671
शादी के लिए अपहरण : 5308
अपहरण के बाद हत्या : 11
जबरन शादी : 2688
मानव तस्करी : 24
दुष्कर्म : 806
दहेज हत्या : 24
पति से प्रताड़ना : 101
महिलाओं का अपहरण : 187
18 साल की कम उम्र की लड़की का अपहरण : 61
18 साल से अधिक लड़की से दुष्कर्म का प्रयास : 8
दहेज प्रताड़ना : 105
यौन उत्पीड़न : 3

परीक्षा में केवल कड़ाई ही या सरकारी स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई भी अभयानंद

परीक्षा में केवल कड़ाई ही या सरकारी स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई भी —अभयानंद
वर्ष 1989 की बात है। मैं नालंदा का पुलिस अधीक्षक हुआ करता था। बोर्ड की परीक्षा होने वाली थी। जिले के जिला पदाधिकारी बहुत ही गंभीर और संजीदा व्यक्ति हुआ करते थे। उन्होंने मेरे समक्ष प्रस्ताव रखा कि इस वर्ष परीक्षा में नकल नहीं होने देना है। चूंकि नीयत नेक थी इसलिए मैंने पुलिस विभाग की पूरी शक्ति को इस दिशा में लगा देने का आश्वासन दे डाला।
उस वर्ष परीक्षाओं में नकल बिलकुल नहीं हुई। चारों ओर प्रशंसा हुई।

कॉलेजों में नामांकरण हुआ। एक दिन, हम दोनों पदाधिकारी कार्यालय में एक साथ बैठ कर मंथन कर रहे थे। अचानक विद्यार्थियों का एक बड़ा समूह सामने आ गया। शांत भाव से उन्होंने प्रश्न किया, “केवल कड़ाई ही या पढ़ाई भी?” प्रश्न वाजिब था। हम दोनों ने कार्यवाई करने का आश्वासन दिया और बच्चे चले गए।

हमने निर्णय लिया कि हम स्वयं कॉलेज में जा कर देखेंगे। अगले ही दिन हम जिला मुख्यालय के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में पहुँचे, बिना किसी पूर्व सूचना के। फ़िज़िक्स के प्रैक्टिकल का क्लास था। हम सीधे प्रयोगशाला में पहुँचे। सभी विद्यार्थी आए हुए थे। वर्नियर कैलिपर से लम्बाई निकालने की क्लास थी। सब उपलब्ध थे केवल शिक्षक नहीं थे।

सूचना मिलते ही, प्रधानाचार्य आ गए। उन्होंने बताया कि शिक्षक बिना सूचना के अनुपस्थित हैं। तब तक पुलिस इंस्पेक्टर साहब को भी सूचना मिल गई थी। वे भी थाने की जीप पर सवार होकर कॉलेज आ गए थे। इंस्पेक्टर साहब से मैंने अनुरोध किया कि वे शिक्षक मोहदय के आवास पर जा कर उनको स्मरण कराएँ कि बच्चे आ गए हैं और उनका इंतज़ार कर रहे हैं।

उतनी देर में, हम दोनों पदाधिकारियों ने बच्चों की वर्नियर कैलिपर की क्लास लेनी शुरू कर दी। मनोरम दृश्य था। पूरा कॉलेज इस दृश्य को रुचि से देख रहा था। आधे घंटे के बाद पुलिस जीप पर शिक्षक महोदय पधारे। हम दोनों ने उनका दायित्व उनको सौंपा और अपना दायित्व निभाने निकल पड़े।

चलते समय शिक्षक महोदय ने धीरे से मेरे बगल में आ कर कहा कि आपको पुलिस की गाड़ी घर पर नहीं भेजनी चाहिए थी, बेइज़्ज़ती हुई है। मैंने मात्र मुस्करा कर प्रणाम करते हुए अलविदा कहा।
पढ़ाई की स्थिति में गिरावट उसके 30 वर्षों के बाद आज कहाँ तक पहुँच चुकी है, इसका अंदाजा अब मैं लगाने में सक्षम नहीं हूँ।

कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने से क्या बिहार की राजनीति बदलेगी

कांग्रेस का मिशन पंजाब जिस तरीके उलझ गया है उसको लेकर भले ही निशाने पर राहुल और प्रियंका है लेकिन कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने के बाद बिहार की राजनीति में जो खामोशी देखी जा रही है वह चौंकाने वाला है। बिहार के कांग्रेसी चुप हैं ,राजद कन्हैया को लेकर सहज नहीं है, चिराग से भी सवाल किये गये तो वो भी टाल गये ,बिहार के वामपंथी भी खुलकर बोलने से बच रहे हैं ।

लेकिन इस तरह के सवाल को नजरअंदाज करने वाले नीतीश कुमार की प्रतिक्रिया आयी है और कहां कि हमारे रिश्ते भी रहे हैं कहां आते जाते हैं वो उनका फैसला।वही बीजेपी नेता सुशील मोदी जो आजकल छोटी बात पर भी प्रतिक्रिया देने से परहेज नहीं करते हैं उनका बयान सिर्फ इतना ही आया है कि कांग्रेस सत्ता के लिए देश विरोधी ताकतों के साथ।मतलब बिहार की जो वर्तमान राजनीतिक सेटअप है उसमें कन्हैया को लेकर मंथन जरूर चल रहा है ।

1—– क्या कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने से बिहार की ठहरी हुई सियासत में बदलाव आ सकती है
मंडल आयोग के लागू होने के बाद बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार जिस सामाजिक समीकरण के आधार पर सियासत कर रहे हैं उससे यही लग रहा था कि बिहार फिलहाल मंडल ऐरा से बाहर निकल नहीं पायेंगा।

15 वर्षों तक पिछड़ा,दलित और मुस्लिम गठजोड़ से सहारे लालू प्रसाद के नेतृत्व में बिहार की राजनीति चलती रही, फिर नीतीश आये उन्होंने पिछड़ा को अतिपिछड़ा ,दलित को महादलित और मुस्लिम को पसमांदा मुस्लिम में बांट दिया और सवर्ण को साथ लेकर 15 वर्षो से बिहार पर राज कर रहे हैं । हालांकि 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान जिस तरीके से जनता का मोहभंग नीतीश से हुआ उससे लगा कि बिहार की सियासत एक बार फिर से लालू प्रसाद के परिवार के हाथों में चली जायेगी लेकिन अंतिम चरण के चुनाव में बदलाव के लिए जो वोटर घर से निकले वो मतदान केन्द्र पर पहुंचते पहुंचते रुक गया वजह नीतीश के शासन व्यवस्था से जो वोटर ऊब गया था वो लालू के 15 वर्षो के कार्यकाल को याद करके ठहर गया।

कन्हैया के कांग्रेस में आने से बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि कन्हैया के आने से बिहार की सियासत में बड़ा बदलाव आ सकता है।हलाकि यह सोचना जल्दबाजी होगा क्यों कि जिस कांग्रेस पार्टी में कन्हैया शामिल हुआ है उसकी बिहार में हैसियत क्या है 1990 के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं हुई है धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जिस तरीके से राजद के कुशासन के साथ कांग्रेस खड़ी रही उसका नुकसान यह हुआ कि कांग्रेस का परंपरागत वोटर सवर्ण ,दलित और मुसलमान एक एक कर साथ छोड़ते चले गये और आज कांग्रेस के पास कोई जमा पूंजी नहीं बचा है जिसके सहारे कन्हैया बहुत कुछ कर सकता है ।

हालांकि कन्हैया को लेकर इस तरह की राय रखने वाले जानकार का कहना है कि बिहार की सियासत में मुस्लिम वोटर कभी भी पूरी तौर पर राजद के साथ खड़ा नहीं रहा है ,कांग्रेस के साथ भी था ,कुछ हिस्सेदारी रामविलास पासवान की भी रही ,जदयू ने पसमांदा के सहारे मुस्लिम वोटर में बड़ी सेंधमारी की।लेकिन फिलहाल स्थिति यह है कि राजद के पास ना शहाबुद्दीन है, ना तस्लीमुद्दीन है ,ना फातमी है और अब्दुल बारी सिद्दीकी चुनाव हार चुके हैं ऐसे में राजद के पास फिलहाल कोई बड़ा मुस्लिम चेहरा नहीं है।

वहीं जदयू और लोजपा मुस्लिम को लेकर सिम्बॉलिक पॉलिटिक्स में भरोसा करता रहा है ऐसे में कन्हैया के कांग्रेस में आने से बिहार के जो मुस्लिम वोटर का जो वोटिंग ट्रेंड रहा है उसमें बड़ा बदलाव आ सकता है क्योंकि एक तो कन्हैया की छवि मोदी विरोध को लेकर मुस्लिम यूथ में ओवैसी से भी बड़ा है। दूसरा एनआरसी को लेकर कन्हैया खुलकर मुस्लिम के साथ खड़े हुए थे ,गांव गांव में रैली किया था और फिर पटना के गांधी मैदान में रैली करके अपनी ताकत का एहसास भी कराया था ।

वही दूसरी और कन्हैया के वामपंथी होने की वजह से कमजोर ,दलित और गरीबों के बीच इसका सहज प्रवेश रहा है ।साथ ही कन्हैया की भाषण शैली और युवा पीढ़ी के बीच जिस तरह का नेटवर्क सोशल मीडिया से लेकर गांव स्तर तक विकसित किया है इसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है ।अगर ऐसा हुआ तो फिर कन्हैया कांग्रेस का जो पुराना फॉर्मूला रहा है सवर्ण ,दलित और मुसलमानों को जोड़ने में कामयाब हो सकता है क्यों कि बिहार के 30 वर्षों की जो राजनीति रही है उसमें जिस तरीके सवर्ण राजनीति को लालू प्रसाद हो या फिर नीतीश कुमार हो जिस तरीके से समाप्त करने की सियासत को बढ़ाया है उससे सवर्ण मतदाता खासे नाराज हैं वही बिहार भाजपा में भी फिलहाल सवर्ण राजनीति हाशिए पर हैं।

ऐसे में जैसे ही कोई तीसरा विकल्प दिखेगा तो सवर्ण मतदाता रातो रात बदल जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में पहले और दूसरे फेज के चुनाव में ये देखने को भी मिला जहां चिराग के प्रत्याशी मजबूत सवर्ण नेता था वहां जदयू के उम्मीदवार को वोट नहीं किया।

2–कन्हैया के सामने चुनौती भी कम बड़ी नहीं है कागज पर भले ही कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने से बड़े बदलाव की बात चल रही है लेकिन जमीन पर कन्हैया के सामने कम बड़ी चुनौती नहीं है। जिस वामपंथ के सहारे कन्हैया यहां तक पहुंचा है उस विचारधारा से जुड़े ऐसे लोग जो कन्हैया के साथ पूरी मजबूती के साथ खड़ा था उसको कन्हैया अपने साथ कैसे जोड़े रख सकता है यह पहली चुनौती है।

क्यों कि वामपंथ की वजह से ही इनका प्रवेश गरीब.दलित और कमजोर वर्ग में हो सका है । साथ ही वामपंथी इंटेलीजेंसिया जो इसके साथ खड़ा रहा है और इस वजह से मीडिया और बौद्धिक जगत में कन्हैया की पकड़ मजबूत हुई वो वर्ग कन्हैया के साथ जुड़ा रहे ये भी बड़ी चुनौती कन्हैया के सामने हैं हालांकि बिहार कांग्रेस में अब कोई ऐसा नेता नहीं रहा जिससे कन्हैया को आमने सामने की टक्कर दे सके लेकिन ऐसे नेता का अभी भी भरमार है जो इसका खेल बिगाड़ सकता है ।

छिटपुट हिस्सा को छोड़कर मतदान शांतिपूर्ण, 15 से अधिक उपद्रवी गिरफ्तार

पंचायत चुनाव के दूसरे चरण में आज सुबह से ही हिंसा, तोड़फोड़ और मारपीट की खबरे आ रही है वही EVM में खराबी बायोमेट्रिक सिस्टम फेल होने से कई जगहों पर मतदान कार्यप्रभावित हुआ है। फिर मतदाता घर से बाहर निकल रहा है आज भी महिला वोटर पुरुष की तुलना में ज्यादा वोटिंग कर रही है दोपहर 1 बजे तक 35 से 40 प्रतिशत वोटिंग हुई है।

1–छिटपुट हिंसा और मतदान केन्द्रों पर कुव्यवस्था के लिए याद किया जायेंगा यह चरण
आज बिहार सभी 34 जिलों के 48 प्रखंडों में पंचायत चुनाव के 23,161 पदों के लिए वोटिंग चल रहा है ।बेतिया के फेनहारा की बूथ संख्या 48 पर बोगस वोटिंग रोकने के दौरान पुलिस और स्थानीय दबंगों में हाथपाई हो गई। दबंगों ने ASI की पिटाई कर दी। इधर, भोजपुर के कटरिया पंचायत के छछूडिह गांव में बूथ संख्या -158 के पीठासीन पदाधिकारी को पुलिस ने हिरासत में लिया है। बुजुर्ग महिला को मतदान कराने के लिए साथ में वोटिंग रूम पहुंच गए थे।

मुजफ्फरपुर जिले के सरैया प्रखंड अंतर्गत रामपुर विश्वनाथ पंचायत के निवर्तमान पंचायत समिति एवं उम्मीदवार राजन चौधरी के ऊपर हमला किया गया। वे क्षेत्र में निकले थे। इसी क्रम में बाइक सवार अपराधियों ने फायरिंग की। गोली बाइक पर लगी है। उम्मीदवार बाल बाल बच गए हैं। SDPO समेत कई अफसर मौके पर पहुंच गए हैं।

मतदान को लेकर देखे उत्साह

​​​​​​​नालंदा के प्यारेपुर पंचायत के दुर्गापुर गांव में निवर्तमान दुबरापुर पंचायत के मुखिया राकेश कुमार के घर में एसडीओ और डीएसपी के नेतृत्व में छापेमारी की गई, जहां खाना बनाकर वोटरों के बीच पर वितरण करने की तैयारी चल रही थी। सामान सहित निवर्तमान मुखिया राकेश कुमार को हिरासत में लिया गया है।

पश्चिम चंपारण के चनपटिया प्रखंड के उत्तरी घोघा पंचायत के बूथ नंबर 146 पर दो गुटों विवाद के बाद पत्थरबाजी हुई। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए लाठियां भांजी। डीएम कुंदन कुमार और एसपी उपेंद्र नाथ वर्मा मौके पर पहुंचे। डीएम ने कहा, मतदान शांतिपूर्ण चल रहा है।

सुबह-सुबह भोजपुर में दो मुखिया प्रत्‍याशियों में भिड़त के कारण एक बूथ पर जबरदस्‍त हंगामा हो गया। मधेपुरा में एक महिला वोटर लाइन में खड़े-खड़े हीं बेहोश हो गई तो । भोजपुर के पीरो के लहठान पंचायत के पिटरों गांव में बूथ संख्या 170 पर लाइन में खड़े मतदाता की हार्ट अटैक से मौत हो गई। मृतक पिटरों गांव के वार्ड नम्बर नौ के निवासी रामेश्वर महतो थे।

लोकतंत्र के इस महापूर्व में शामिल होने के लिए पहुंची बिमार महिला

मोतिहारी के धारा प्रखंड के रूपौलिया पंचायत के बूथ संख्या 46 पर बोगस वोटिंग कर रहे युवक को रोकने पर पुलिस के साथ मारपीट की गई। इसमें एएसआई अजय कुमार घायल हो गए हैं। मौके पर पहुंचे एसपी नवीन चंद्र झा ने एक युवक को गिरफ्तार कर लिया है। एसपी ने इस मामले में केस दर्ज करने का आदेश दिया है।

वही इस बार कई जिलों से ये खबर आ रही है कि मतदान केन्द्रों पर बेसिक सुविधा भी उपलब्ध नहीं था कई जगहों पर मतदानकर्मी जमीन पर बैठकर वोटिंग कराते हुए देखे गये हैं ।

2–जितिया पर्व के बीच भी बड़ी संख्या में पहुंच रही महिलाएं
जितिया पर्व के कारण महिलाएं सुबह से ही मतदान केंद्र पर पहुंचने लगी हैं। भोजपुर, रोहतास, मुजफ्फरपुर, नालंदा समेत बिहार के 34 जिलों में व्रती महिलाएं भी वोट देने के लिए पहुंची हैं। वे सुबह 6 बजे से ही पहुंचने लगी और लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार कर रही हैं।

वोटिंग को लेकर जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है ।

वहीं भोजपुर के ही तिलाठ पंचायत के मोहन टोला बूथ पर ईवीएम खराब रहने के कारण एक घंटे से मतदान बाधित है। इससे आक्रोशित होकर लाइन में खड़ी करीब 70 महिलाएं बिना वोट दिए ही वापस घर लौट गईं। उनका कहना था कि वे निर्जला व्रत में हैं। आज सुबह 6 बजे ही बूथ पर आई थी। हलाकि दस बजे के बाद महिला वोटर मतदान केन्द्रों पर कम दिखने लगी थी ।

3—मां बेटी और भाई आमने सामने चुनाव मैंदान में है
इस बार के चुनाव में इस तरह कि दिलजस्प खबरे कई जिलों से आ रही है जहां सीतामढ़ी के चोरौत प्रखंड में मुखिया के लिए मां शकीला हुसैन व बेटी अनीसा हुसैन आमने-सामने हैं। चोरौत पूर्वी पंचायत में 20 साल से दो भाई राम प्रवेश चौधरी और राम नरेश चौधरी आमने-सामने हो रहे हैं।

मां बेटी आमने सामने चुनाव में

कोरोना के तीसरी लहर को देखते हुए अस्पतालों में बच्चों के लिये बनेंगे 1516 कोविड डेडिकेटेड बेडः मंगल पांडेय

स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि कोरोना की तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए बच्चों के लिए बिहार में करीब 1516 कोविड डेडिकेटेड बेड बनाये जाएंगे। इस संदर्भ में केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।

केंद्र से मंजूरी मिलने के बाद राज्य स्वास्थ्य समिति ने बीएमआईसीएल को निविदा निकाल आगे की कार्रवाई करने को कहा है, ताकि तय समय पर राज्य के सभी सरकारी अस्पतालों में बेड अधिष्ठापित हो सके। अगले मार्च माह तक कार्य के पूर्ण होने की संभावना है।

श्री पांडेय ने कहा कि कोरोना पीड़ित बच्चों को त्वरित एवं बेहतर इलाज उपलब्ध हो सके इसे ध्यान में रख कर बेड की व्यवस्था की जा रही है। राज्य के सभी जिलों में कोविड डेडिकेटेड बेड लग जाने से आपात स्थिति में कोरोना से ग्रामीण क्षेत्रों के पीड़ित बच्चों का इलाज अपने नजदीकी जिलों में संभव हो सकेगा और आर्थिक बोझ से भी मुक्ति मिलेगी।

माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देश पर कोरोना की रोकथाम और संभावित तीसरी लहर से सामना करने लिए राज्य में सभी आवश्यक तैयारियां पुख्ता करने का निर्देश दिया है, ताकि सही समय पर स्थितियों से निपटा जा सके। इसके लिए हर स्तर पर प्रयास जारी है।

श्री पांडेय ने कहा कि 30 जिलों में 42-42 बेड और 8 जिलों में 32-32 बेड की व्यवस्था की जाएगी। कुल 1516 बेड में 456 हाइब्रिड आईसीयू बेड होंगे एवं 1060 ऑक्सीजनयुक्त बेड रहेंगे। इनमें कुछ बेड हाई डिपेंडेंसी होंगे।

विभाग संभावित तीसरी लहर के अलावे राज्य के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने को लेकर प्रखंड, अनुमंडल और सदर अस्पताल से लेकर मेडिकल कॉलेजों में संसाधनों को बढ़ाने का लगातार कार्य कर रहा है।

कोविड डेडिकेटेड बेड के क्रियाशील होने के बाद इसके संचालन को लेकर भी अस्पताल प्रबंधन को आवश्यक दिशा-निर्देश दिये जाएंगे, ताकि मरीजों को परेशानी न हो ।