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आपातकाल से जुड़ी भूली विसरी यादें (भाग -1)

जेपी के जयंती के मौके पर आज से जेपी आंदोलन से जुड़ी ऐसी दास्तान से आपको रूबरू कराएंगे जिसनें इंदिरा जैसी मजबूत शासक को धूल चटा दिया था ।

लेखक — फूलेन्द्र कुमार सिंह आंसू
(जेपी आंदोलन के अग्रगी छात्र नेता थे)

आपातकाल के जमाने की भूली विसरी यादें (भाग -1)
आपातकाल( २६ जून)
26 जून 1975 ,याद करके रोंगटे खड़े हो रहे हैं,एक दिन पहले शाम में आंदोलन के साथियों के साथ बैठकर दिल्ली में हुए जे पी के सभा के संभावित नतीजों पर चर्चा की थी ।इस बात की संभावना तो बिलकुल नहीं थी की इंदिरा जी जे पी के मांग पर इस्तीफा देंगी लेकिन बदले राजनैतिक हालात में इंदिरा जी ,आंदोलन के हक़ में कुछ राजनैतिक फैसला करेंगी ।

अहले सुबह हमारे आंदोलन के साथी स्वर्गीय कुमार प्रियदर्शी हमारे हॉस्टल( एम आई टी ,मुज़फ्फर पुर ) आये ।प्रिय दर्शी हमारे छोटे भाई सदृश्य थे ,मालीघाट (मुज़फ्फर पुर जेल के पास ) रहते थे ,सायकिल से आये थे ।सुबह- सुबह वे कभी मिलने नहीं आते थे ,मैं कुछ पूछता ,उन्हों ने जे पी की गिरफ्तारी की सुचना देकर धमाका कर दिया ,मैं सकते में था ,थोड़ा नर्भस भी हुआ ,अपने को सम्हाल नहीं पा रहा था ,आपातकाल घोषित होना ,बिपक्ष के सभी बड़े नेताओं की गिरफ़्तारी ,अखबारों के सेंशरशिप की बातें धीरे -धीरे उनहोंने मुझे बताई ।

धीरे -धीरे अपने भावनाओं पर काबू पाने की कोशिश की ।कालेज के कुछेक
विश्वशनीय आंदोलन के साथियों की बैठक बुलाई और तुरंत की प्रतिक्रिया स्वरुप शहर में मौन जुलुश (मूँह पर काला पट्टी बांधकर ) निकालने का निर्णय लिया ।मै खुद इंजिनीरिंग के अंतिम वर्ष का छात्र था ,कालेज के सभी आंदोलन के साथयों को गुप्त सुचना (समय और स्थान के साथ ) भिजवा दी । प्रकाश (मेरा बैचमेट और अभिन्न मित्र ) और प्रियदर्शी ने लगभग दो घंटे के अंदर काली पट्टी और स्टिकर( इमरजेंसी वापस लो ,जे पी को रिहा करो जैसे नारे लिखवाकर ) कालेज केम्पस आ गए ।

हमारे कुछ अन्य अभिन्न मित्र जी आंदोलन का नैतिक समर्थन करते थे लेकिन आंदोलन में सक्रिय नहीं थे ,उन्हें किसी प्रकार मेरी योजना की भनक लग गयी मुझे समझाने आ गए ,मुझे गिरफ्तार होने का भय दिखाया , अपने समेत बांकी छात्रों के कैरियर ख़राब हो जाने का भय दिखाया गया ।

एक पल के लिए मुझे लगा की कालेज छात्र संघ के महासचिव के हैसियत से अपने समर्थक छात्रों के गिरफ्तार होने और कैरियर से खिलवाड़ करने का ख़तरा मुझे उठाना चाहिए था या नहीं । Instant reaction देने के पक्ष में
अपने निर्णय पर अडिग रहा चाहे खतरा जो भी हो ।

प्रकाश और प्रियदर्शी के आने तक हमने प्रशाशन को देने हेतु एक मेमोरंडम भी तैयार कर लिया ।
हमें उम्मीद नहीं थी कि मेरी सुचना पर 150से 200 छात्र बताएं स्थान,लक्ष्मी चौक पर आ जायेंगे ,मूँह पर काली पट्टी बांध कर और हांथों में नारे वाले स्टिकर लेकर ,मेरे पीछे निकल पड़ेंगे ।

संभव है उन्हें मौन जुलुश, सामान्य जुलुश लगा हो ,गिरफ्तारी भी हो सकती है जिसपर उनहोंने सोचा ही ना हो या फिर अपने प्रिय एवम सम्मानित नेता जे पी की गिरफ्तारी की अप्रत्याशित सुचना उनके अंदर भी गुस्सा भर दिया हो ,एक तथ्य यह भी था कि उसके पहले पुलिश ,आंदोलन के क्रम में अन्य कालेज या उसके छात्रावाश से छात्रों को गिरफ्तार किया करती थी लेकिन एम आई टी या इसके किसी छात्रावास से किसी छात्र की गिरफ्ता7री नहीं की थी ,एक तरह से एम आई टी छात्र अपनेआपको privileged समझते थे ।

हमलोग 11 बजे निकल पड़े ,ब्रह्मपुरा चौक -जुरंनछपडा -सरैयागंज टावर -गरीब स्थान -प्रभात टाकीज –दीपक टाकीज -छोटी कल्याणी -कल्याणी चौक -मोतीझील होते हुए हमलोग बी बी कॉलेजिएट के गेट पर जुलुश रोक दिए ।
मैं आश्चर्यचकित था कि कहीं से पुलिश का हस्तक्षेप नहीं हुआ ,जुलुश के रास्ते शहर के लोग हमारे पास आते थे ,हमारे स्टिकर पर लगे नारों को पढ़ते थे ,आँखों में आश्चर्य ,भय लेकिन अपनापन का भाव दिखता था ,कुछ बोलते नहीं थे क्योंकि हमारे मूँह पर पट्टी बंधी थी लेकिन चेहरे के भाव स्पष्ट थे कि हमारी गिरफ्तारी निश्चित थी ।

बी बी कॉलेजिएट गेट पर हमने आपसी विमर्श से यह निर्णय लिया कि, इतने छात्रों के गिरफ्तारी का खतरा अब ना उठाया जाए ,मैं खुद ,प्रकाश और प्रियदर्शी सामने टाउन थाना जाकर डी एस पी से मिलकर अपना मेमोरंडम सौंपें अगर गिरफ्तारी हुई ,सभी छात्र अपने -अपने हॉस्टल लौट जायेंगे ,अन्यथा वहीँ पर इन्तजार करेंगे ।

हमलोग डी एस पी से उनके कार्यालय कक्ष में मिले ,वे हमें देखकर भौचक हो गए , उन्हें सूझ नहीं रहा था कि हमारे साथ क्या व्यवहार किया जाय ,हमने उन्हें बताया था हमलोग करीब 200 छात्र इमरजेंसी का और जे पी के गिरफ्तारी का विरोध स्वरूप मूँह पर पट्टी बांधकर अपना मेमोरंडम सौंपने आये हैं ताकि आपके माध्यम से अपना विरोध सरकार को बता सकें ,उन्होंने हमें हड़काया ,गिरफ्तारी की धमकी दी लेकिन हमलोग अपना मेमोरंडम उन्हें प्राप्त कराकर ही माना ,मुझे लगा कि इतने छात्रों की गिरफ्तारी से उत्पन्न संभावित प्रतिक्रिया से वे घबरा गए थे
या शायद बड़े नेताओं के गिरफ्तारी का ही आदेश उन्हें प्राप्त हो ,हमें टालना ही उन्हें भला लगा हो ।
हमलोग वहां से शहीद खुदीराम बोस स्मारक आ गए ,आपातकाल और जे पी के गिरफ्तारी के विरोध में अपनी बातें रखी, वहां से अपने अपने हॉस्टल वापस हो गए ।

लगभग 3 बजे दिन में मेरे रूम को नोक किया गया ,मैं खाना खाकर सो गया था ,मैंने गेट खोला तो पाया कि हमारे प्राचार्य श्री एस प्रसाद ,हमारे टीचर श्री एम ऍन पि वर्मा और डी एस पी साहेब गेट पर थे ,मुझे लगा कि मेरी गिरफ्तारी तय है ,लेकिन ऐसा नहीं हुआ ,वे हमें समझाने आये थे ,हमसे आश्वासन चाहते थे कि केम्पस में ऐसी गतिविधि फिर से ना हो ,हम अपना और लड़कों के भविष्य से ना खेलें ।काफी बातें हुई ,हम इतना आश्वासन अवश्य दिए कि मेरे निजी तौर पर सक्रीय नहीं होने का आश्वासन मैं नहीं दे पाऊंगा लेकिन अन्य छात्रों की सक्रियता में मेरी कोई भूमिका नहीं होगी ।मैंने यह भी स्पष्ट किया कि जे पी की गिरफ्तारी जैसी बड़ी सुचना मिलने की स्थिति में मेरी क्या प्रतिक्रया होगी ,इस संबंध में आज कोई आश्वासन नहीं दे पाऊंगा ।

लेखक — फूलेन्द्र कुमार सिंह आंसू
(जेपी आंदोलन के अग्रगी छात्र नेता थे)

केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग को लेकर पटना की सड़क पर उतरे लोग

लखीमपुर खीरी जनसंहार के खिलाफ विरोध मार्च

जेपी जंयती के मौके पर आज अखिल भारतीय किसान महासभा और भाकपा माले की ओर केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग को लेकर कारगिल चौक से जे. पी. गोलम्बर तक विरोध मार्च निकाला इस मौके पर आन्दोलन कर रहे किसानों का समर्थन करते हुए घोषणा किया कि ।

12 अक्टूबर को देशभर में लखीमपुर खीरी में शहीद किसानों के अरदास के दिन मोमबत्ती मार्च व घरों के सामने किसानों के याद में पांच मोमबत्ती जलाने का घोषणा की गई इसमें बिहार के भी किसान शामिल होगे और किसान आन्दोलन से जुड़े संगठन पटना जंक्शन से बुध्दा स्मृति पार्क तक मोमबत्ती मार्च और पटना सिटी में गुरुद्वारा के निकट मोमबत्ती जलायेगा । .

बाढ़ प्रभालित इलाकों में दिसम्बर तक स्थिति समान्य हो जायेंगी

बिहार के बाढ़ प्रभावित इलकों में जन जीवन जल्द जल्द से बहाल हो सके इसके लिए सीएम खुद मॉनिटरिंग कर रहे हैं,मीडिया से बात करते हुए सीएम ने कहा कि बाढ़ से राज्य में क्या नुकासान हुआ है

उसका मूल्यांकन चल रहा है जिले के सारे अधिकारी इस काम में लगे हुए हैं जल्द ही केंद्र को रिपोर्ट भेजी जाएगी कि कितना नुकसान हुआ है कल तक रिपोर्ट आ जानी चाहिए और हम जिले के अधिकारियों से लगातार सम्पर्क में हैं ।दिसम्बर तक स्थिति समान्य हो जायेंगी ।

बिहार बिजली संकट से निपटने के लिए बाजार से किसी भी किमत पर बिजली खरीदने का लिया निर्णय

देश में जारी बिजली संकट का असर बिहार में भी देखने को मिल रहा है खास करके ग्रामीण इलाकों में बिजली आपूर्ति प्रभावित हुई है हलाकि सरकार ने दुर्गा पूजा को देखते हुए निर्णय लिया है कि जिस भी रेट में बिजली उपलब्ध है खरीदारी करना है ।

मीडिया से बात करते हुए सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार को जो कोटा निर्धारित है उतनी आपूर्ति नहीं हो पा रही है इसलिए समस्या हो रही है हम ज्यादा दाम पर बिजली खरीद करके लोगों को दे रहे हैं ।

5 दिनों में 570 लाख यूनिट बिजली की खरीद की गई है बिजली खरीदने में पैसा ज्यादा लग रहा है फिलहाल हम लोग नजर बनाये हुए हैं वैसे ये समस्या पूरे देश का है फिर भी राज्य सरकार बिजली व्यवस्था बने रहे इसके लिए सजग है ।

जेपी की 119 जयंती आज पूरे राज्य में राजकीय सम्मान के साथ मनायी जा रही है जयंती

जेपी के 119वीं जयंती के मौके पर आज पूरे राज्य में अलग अलग तरीके से बिहारवासी जेपी को याद कर रहे हैं इस मौके पर चरखा समिति पटना में मुख्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया ।

कार्यक्रम शामिल होने के बाद मीडिया से बात करते हुए सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि जेपी आंदोलन सारी तैयारियां यहीं पर हुई थी।मेरा सौभाग्य था मैं उनसे जुड़ा था मुझे बहुत मानते थे।जयप्रकाश जी से जो सीखा उसी के आधार पर काम कर रहा हूं।

गांधी जेपी लोहिया के आदर्श को मानते हुए समाज को आगे बढ़ाना है आपस में भाईचारा कायम रखना है।
जेपी आवास पर मैं नहीं आता तो मुझे संतोष नहीं होता है,जेपी के विचार को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

मुख्यमंत्री ने पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की समीक्षा की

मुख्यमंत्री ने पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की समीक्षा की

मुख्य बिन्दु

• सभी जिलों में अन्य पिछड़ा वर्ग कन्या आवासीय प्लस टू उच्च विद्यालय खोलें।

• अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण छात्रावासों, जननायक कर्पूरी ठाकुर कल्याण छात्रावासों, प्राक् परीक्षा प्रशिक्षण केंद्रों, अन्य पिछड़ा वर्ग कन्या आवासीय प्लस टू उच्च विद्यालयों, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति छात्रावासों के साथ-साथ सभी अल्पसंख्यक छात्रावासों में प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी हेतु ऑन लाइन क्लास / कोचिंग की सुविधा प्रारंभ की जायेगी।

• जिन जिलों में जननायक कर्पूरी ठाकुर कल्याण छात्रावास निर्माणाधीन हैं, उनका निर्माण कार्य तेजी से पूर्ण करें।
• अन्य पिछड़ा वर्ग प्रवेशिकोत्तर छात्रवृत्ति योजना, मुख्यमंत्री अत्यंत पिछड़ा वर्ग मेधावृत्ति योजना एवं मुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग मेघावृत्ति योजनाओं के अंतर्गत छात्र/छात्राओं के बकाये छात्रवृत्ति / प्रोत्साहन राशि का भुगतान शीघ्र करें।

पटना, 09 अक्टूबर 2021 :- मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने 1 अणे मार्ग स्थित संकल्प में पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की समीक्षा की। बैठक में पिछड़ा एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के सचिव श्री पंकज कुमार ने विभाग द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं की अद्यतन जानकारी दी।

उन्होंने मुख्यमंत्री अत्यंत पिछड़ा वर्ग मेधा वृत्ति योजना, मुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग मेधा वृत्ति योजना, अन्य पिछड़ा वर्ग प्रवेशिकोत्तर छात्रवृत्ति योजना, अन्य पिछड़ा वर्ग प्री मैट्रिक छात्र योजना, मुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग प्रेवेशिकोत्तर योजना, अन्य पिछड़ा वर्ग कन्या आवासीय प्लस टू उच्च विद्यालय, जननायक कर्पूरी ठाकुर कल्याण छात्रावास योजना, अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण छात्रावास योजना, प्राक् परीक्षा प्रशिक्षण केंद्र योजना, मुख्यमंत्री अत्यंत पिछड़ा वर्ग सिविल

सेवा प्रोत्साहन योजना, मुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग छात्रावास अनुदान योजना तथा छात्रावासों में खाद्यान आपूर्ति योजना के संबंध में विस्तृत जानकारी दी। समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री ने निर्देश देते हुए कहा कि सभी जिलों में अन्य पिछड़ा वर्ग कन्या आवासीय प्लस टू उच्च विद्यालय खोलें। जिन जिलों में जननायक कर्पूरी ठाकुर कल्याण छात्रावास निर्माणाधीन हैं, उनका निर्माण कार्य तेजी से पूर्ण करें।

उन्होंने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग प्रवेशिकोत्तर छात्रवृत्ति योजना, मुख्यमंत्री अत्यंत पिछड़ा वर्ग मेधावृत्ति योजना एवं मुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग मेधावृत्ति योजनाओं के अंतर्गत छात्र / छात्राओं के बकाये

छात्रवृत्ति / प्रोत्साहन राशि का भुगतान शीघ्र करें। मुख्यमंत्री ने कहा कि अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण छात्रावासों, जननायक कर्पूरी ठाकुर कल्याण छात्रावासों, प्राक् परीक्षा प्रशिक्षण केंद्रों, अन्य पिछड़ा वर्ग कन्या आवासीय प्लस टू

उच्च विद्यालयों, अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति छात्रावासों के साथ-साथ सभी अल्पसंख्यक छात्रावासों में प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी हेतु ऑन लाइन क्लास / कोचिंग की सुविधा प्रारंभ की जायेगी इस हेतू सभी व्यवस्था सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि जानकारी दी गई है कि मुख्यमंत्री अत्यंत पिछड़ा वर्ग सिविल सेवा प्रोत्साहन योजना से छात्र / छात्राएं काफी लाभान्वित हो रहे हैं, यह खुशी की बात है।

राज्य के सभी जिलों में इंजीनियरिंग कॉलेज खोले जा रहे हैं, कई मेडिकल कॉलेज भी खोले जा रहे हैं ताकि यहां के छात्र/छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सहूलियत हो ।

बैठक में उप मुख्यमंत्री-सह-पिछड़ा एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की मंत्री श्रीमती रेणु देवी, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री दीपक कुमार, मुख्य सचिव श्री त्रिपुरारी शरण, विकास आयुक्त श्री आमिर सुबहानी, अपर मुख्य सचिव शिक्षा श्री संजय कुमार, अपर मुख्य सचिव वित्त श्री एस० सिद्धार्थ, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव श्री चंचल कुमार, पिछड़ा एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के सचिव श्री पंकज कुमार, बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्री पंकज कुमार पाल, मुख्यमंत्री के सचिव श्री अनुपम कुमार, पिछड़ा एवं अति पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के विशेष सचिव श्री वीरेन्द्र प्रसाद यादव एवं मुख्यमंत्री के विशेष कार्य पदाधिकारी श्री गोपाल सिंह उपस्थित थे।

कोठे की तवायफ़ और एक बिका हुआ पत्रकार , दोनों एक ही श्रेणी में आते हैं।

जिस दौर में सुनील दत्त अपने बेटे संजय दत्त के लिए लड़ाई लड़ रहे थे उस समय बाल मन बार बार सोचता था सुनील दत्त जैसा व्यक्तित्व के साथ कांग्रेस को खड़े रहना चाहिए था।

गुस्सा आता था कांग्रेस पर, मुंबई पुलिस पर सुनवाई कर रहे जज पर ।आखिर संजय दत्त ने ऐसा क्या अपराध कर दिया जो सारे लोग उससे मुख मोड़ लिया, ना उसके पास से कोई हथियार बरामद हुआ था और ना ही उस हथियार से किसी की हत्या हुई थी फिर भी पूरा सिस्टम सुनील दत्त के साथ ऐसा व्यवहार कर रहा था जैसे वो दाऊद का पिता हो।

बाल मन था उस समय सोचने का नजरिया कुछ ऐसा ही था ।दिल्ली जब पढ़ाई के लिए पहुंचे तो उसी दौरान 1996 में लॉ फैकल्टी में पढ़ाई कर रही छात्रा प्रियदर्शिनी मट्टू की हत्या कर दी गयी थी उस हत्या के आरोप में लाॅ फैकल्टी के ही सीनियर संतोष सिंह पर बलात्कार करके हत्या करने का आरोप लगा संतोष सिंह के पिता उस समय दिल्ली पुलिस में डीसीपी थे संतोष सिंह की गिरफ्तारी ही नहीं हुई बाद में सजा भी हुआ ।

बाद में दिल्ली में ही 1999 में हरियाणा के नेता और बड़े कारोबारी का बेटा मनु शर्मा ने जेसिका लाल का मर्डर कर दिया था इस केस में भी बस उसकी बहन खड़ी हो गयी तो सिस्टम चाह करके भी कुछ नहीं कर पाया। इसी तरह याद करिए नीतीश कटारा हत्याकांड मामला नीलम कटारा खड़ी हो गयी तो बाहुबली डीपी यादव अपने बेटे को बचा नहीं पाया याद करिए प्रमोद महाजन के बेटे राहुल महाजन का मामला सत्ता का कोई लाभ मिलता हुआ नहीं दिखा।

याद करिए वो दौर जब प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव के लिए विज्ञान भवन में अस्थायीजेल बनाया गया था क्यों पीएम पर भ्रष्टाचार से जुड़े एक मामले की सुनवाई चल रही थी और हो सकता है पीएम को सजा हो जाये मतलब ऐसा हो सकता है इसको देखते हुए अस्थायी जेल उसी अधिकारी ने बनवाया जो दिन रात पीएम को सैल्यूट मारता था ।

और आज इसी देश में एक मंत्री के बेटे पर हत्या का आरोप है पुलिस गिरफ्तार करने के बजाय सम्मन जारी कर रहा है लेकिन वो पुलिस के सामने उपस्थित नहीं होता है ।आज दूसरे दिन भी पुलिस मंत्री के आवास पर सम्मन चिपका कर लौट आया है लेकिन अभी तक हाजिर नहीं हुआ है ।

सुप्रीम कोर्ट सवाल कर रही है हत्या के आरोपी के घर सम्मन क्यों अभी तक गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई है लेकिन सरकार और सिस्टम को सुप्रीम कोर्ट के इस टिप्पणी का कोई असर होता नहीं दिख रहा है। याद करिए ये वही देश है ना जहां निर्भया रेप मामले में पूरा देश सड़क पर आ गया था ये वही देश है ना जहां सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसा हुंकार भरा की अन्ना रातो रात देश की दूसरा गांधी बन गये ,सब कुछ तो वैसा ही है वही दिल्ली पुलिस है, वही सुप्रीम कोर्ट है, वही पीएम हाउस है, वही राष्ट्रपति भवन है ,वही राजपथ है फिर ऐसा क्या बदला जो पूरी व्यवस्था बाहुबलियों, मंत्री और दुराचारी के सामने घुटने के बल पर रेंगने लगा इतने सारे उदाहरण के बाद यह मत पूछिए सीता किसकी जोड़ी मतलब यह सब इसलिए हो रहा है कि मीडिया अपना काम कर छोड़ दिया है।

मंटो ने सही ही कहां था कि कोठे की तवायफ़ और एक बिका हुआ पत्रकार , दोनों एक ही श्रेणी में आते हैं।लेकिन इनमें तवायफ़ की इज्जत ज्यादा होती है। इसी तरह गांधी ने कहा था “मैं कहूंगा कि ऐसे निकम्मे अख़बारों को आप फेंक दें जो आपकी बात नहीं करता है सरकार से सवाल नहीं कर सकता है ।

चलिए निराशा के बीच एक अच्छी खबर भी है दुनिया ने पहली बार पत्रकारों को नये आयाम से देखना शुरु किया और पहली बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए जूरी ने इस बार दो पत्रकार को चुना है।समस्या ये नहीं है हम भारतीय में क्षमता नहीं है समस्या यह है कि हमने लड़ना छोड़ दिया है सुविधाभोगी हो गये हैं परिवार और बच्चों के भविष्य को लेकर इस तरह उलझ गये हैं कि आज सब कुछ दाव पर लग गया है ।

ऐसा नहीं है मीडिया हाउस चलाने वाले पहले दबाव नहीं बनाते थे फिर भी पत्रकारिता को बचाये रखने की जिम्मेवारी संपादक और पत्रकारों के हाथ में था आज हम ही विचारधारा के नाम पर तो चंद पैसे और सुविधा के नाम पर अपना सब कुछ दाव पर लगा दिये है।

मुझे समझ में नहीं आता है सिस्टम बचेगा तब ना हम आप बचेंगे ये अलग बात है कि अभी तक वो आग हमारे आपके घर तक नहीं पहुंचा है इस खुशफहमी में मत रहिए देर सबेर मेरे आपके घर भी जरूर पहुंचेगा कोरोना काल में महसूस हो ही गया होगा इसलिए देश रहेगा तो हम आप भी रहेंगे आपका विचारधारा भी रहेगा देश ही नहीं रहेगा तो फिर हम आप कहां रहेंगे ।

हाईकोर्ट ने टीईटी एसटीईटी उतीर्ण नियोजित शिक्षकों को प्रधान शिक्षक की परीक्षा में शामिल होने कि दी अनुमति

टीईटी /एसटीईटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षको को अंतरिम राहत देते हुए पटना हाईकोर्ट ने उन्हें शर्तो के साथ प्रधान शिक्षक की परीक्षा देने की अनुमति दे दी है | टीईटी /एसटीईटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक संघ की याचिका पर चीफ जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया |

याचिकाकर्ता संघ द्वारा प्रधान शिक्षक नियुक्ति नियमावली को भ्रामक बता कर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। साथ ही इस नियमावली में सुधार की मांग की है |

याचिकाकर्ता संघ ने प्रधान शिक्षक की नियुक्ति के लिए टीईटी को अनिवार्य करने की मांग करते हुए कहा है कि जब शिक्षक बनने के लिए भी टीईटी अनिवार्य है, तो देश के अन्य राज्यों की भांति प्रधान शिक्षक बनने के लिए भी टीईटी लागू करना चाहिए ।

मामले पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट की खंडपीठ ने टीईटी एसटीईटी उतीर्ण नियोजित शिक्षकों संघ को अंतरिम राहत देते हुए याचिकाकर्ताओं को प्रधान शिक्षक की परीक्षा देने की इस शर्त के साथ अनुमति दे दी है कि परीक्षा का परिणाम इस याचिका पर कोर्ट के अंतिम फैसले पर लागू होगा। याचिकाकर्ता कोर्ट के फैसले से पहले किसी भी अधिकार का दावा नहीं कर सकेंगे।

कोर्ट ने राज्य सरकार को।तीन सप्ताह मे हलफनामा दायर कर जवाब देने का निर्देश दिया है। इस मामले।पर 2 नवंबर,2021 को फिर सुनवाई की जाएगी।

छिटपुट घटनाओं को छोड़ कर तीसरे चरण का चुनाव शांतिपूर्ण सम्पन्न लगभग 60 प्रतिशत हुई है वोटिंग

छिटपुट घटनाओं को छोड़ दे तो बिहार पंचायत चुनाव का तीसरा चरण शांतिपूर्ण ढ़ग से सम्पन्न हो गया ।हालांकि कई जिलों में मतगणना केंद्रों पर अभी वोटिंग चल रही है। लाइन में लगे सभी मतदाता वोटिंग कर रहे हैं। दो जगह पुनर्मतदान होगा और 200 सौ से अधिक उपद्रवियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है

हलाकि तीसरे चरण की वोटिंग के दौरान कई जिलों में हल्की झड़प हुई। भोजपुर के जंगल महाल पंचायत के बूथ नंबर 112 पर दो प्रत्याशियों के समर्थकों के बीच झड़प हो गई। विवाद के बाद हुई मारपीट में 2 लोगों का सिर फटा गया। इसके बाद बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को तैनात कर दिया गया था। वहीं, नालंदा के नगरनौसा प्रखंड के खजुरा पंचायत के बूथ नंबर 19 पर थानाध्यक्ष नारद मुनी की गाड़ी पर ही लोगों ने पथराव कर दिया। इस मामले में पुलिस ने 4 लोगों को गिरफ्तार किया।दरभंगा जिले के बहेड़ी प्रखंड की हावीडीह उत्तरी पंचायत के बसकट्टी गांव में बूथ संख्या 233 पर गड़बड़ी फैलाने के आरोप में पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया।

पंचायत चुनाव बिमार काका जी वोट देने पहुंचे हैं आक्सीजन सिलेंडर

इस बीच मीडिया से बात करते हुए राज्य निर्वाचन आयुक्त ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि समस्तीपुर के उजियारपुर के वार्ड नंबर 8 में फिर से वोटिंग होगी आज 200 लोगों को गिरफ्तार किया गया इस बार भी महिलाओं ने पुरुष से ज्यादा वोट डालें कुछ स्थानों पर अभी भी मतदान चल रहा है ।बायोमेट्रिक की व्यवस्था सफल हुई मुजफ्फरपुर के मुरौल में वार्ड नंबर 4 में दोबारा मतदान होगा और राज्य निर्वाचन आयुक्त ने मतदान केंद्रों पर कोविड-प्रोटोकॉल का पालन नहीं होने मामले में कहा कि इस मामले को मैं खुद अपने स्तर से देख लूंगा और आगे इसको लेकर के व्यवस्था की जाएगी इस चरण में बोगस मतदान नहीं हुए हैं।

नाव पर चढ़कर लोग वोट देने पहुंचे

अभी तक जो जानकारी मिल रही उसके अनुसार लगभग 60 प्रतिशत वोटिंग होने की खबर है ।

क्या खास रहा तीसरे चरण के चुनाव में–
1—58.9 प्रतिशत वोटिंग हुई है

2–कुल 200 लोगों को गिरफ्तार किया गया है

3–दरभंगा जिले के बहेड़ी प्रखंड की हावीडीह उत्तरी पंचायत के बसकट्टी गांव में बूथ संख्या 233 पर गड़बड़ी फैलाने के आरोप में पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया।

4—समस्तीपुर के उजियारपुर के वार्ड नंबर 8 में फिर से वोटिंग होगी

5– मुजफ्फरपुर के मुरौल में वार्ड नंबर 4 में दोबारा मतदान होगा

6–भोजपुर के जंगल महाल पंचायत के बूथ नंबर 112 पर दो प्रत्याशियों के समर्थकों के बीच झड़प हो गई। विवाद के बाद हुई मारपीट में 2 लोगों का सिर फटा गया।

7—समस्तीपुर –बूथ संख्या 244 पर हंगामा ,मतदाता और पुलिस कर्मी के बीच झड़प ,उजियारपुर प्रखंड के रामचन्द्रर पुर अन्हेल की घटना ।

इस बार भी महिलाए पुरुष से ज्यादा वोट दी है

8–हाजीपुर–जनदाहा प्रखंड के कजरी बुजुर्ग गाँव स्थित मतदान केन्द्र
संख्या 200 पर जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश सिंह कुशवाहा अपनी पत्नी के साथ अपने मताधिकार का किया प्रयोग ।

9–मुजफ्फरपुर-मुरौल के हरसिंहपुर लौतन बूथ संख्या-82 पर वैलेट पेपर में मिसप्रिंट के कारण तीन घंटे बाद शुरू हुआ मतदान ।

10–गोपालगंज जिले के भोरे के हुस्सेपुर पंचायत में मतदान के दौरान बवाल हुआ। यहां मतदान करने आए वोटरों ने BDO पर गाली-गलौज और धमकी देने का आरोप लगाया है। नाराज लोगों ने बूथ से BDO को खदेड़ दिया।

11—नवादा –वोट का किया बहिष्कार
रजौली में सिरोडाबर पंचायत की बूथ संख्या-162 पर वोट देने के लिए वोटर नहीं पहुंच रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि दो मुखिया प्रत्याशी के समर्थकों ने वोटिंग से पहले मारपीट की है। इसके विरोध में मतदान बहिष्कार कर दिया है।

12–बेतिया के सेमरी पंचायात के बूथ संख्या 305 पर बवाल। सेक्टर मजिस्ट्रेट की गाड़ी का लोगों ने तोड़ा शीशा।

13–भोजपुर के जगदीशपुर में गश्ती पार्टी की ओर से धनगाई थाने के समीप बसौना पंचायत की बूथ संख्या 49 के पास निवास करने वाले लोगों को घर में घुसकर पीटने के आरोप में लोगों ने तत्काल वोट डालना बंद कर दिया। आरा-बक्सर हाइवे पर धनगाई थाने के समीप सड़क जाम कर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

14–मुंगेर– जिले के संग्रामपुर प्रखंड के बूथ नंबर 35 एवं 43 पर EVM खराब होने की वजह से मतदान बाधित।
बक्सर के लखन डिहरा पंचायत के बूथ नंबर 2, 7, 8, 10 पर EVM पिछले 2 घंटे से खराब है।

15–बक्सर–
डुमरांव के मतदान केद्रों पर इस बार कोरोना की वैक्सीन भी देने की व्यवस्था कराई गई है।
दरभंगा–बहेड़ी के ग्राम पंचायत राज इनाई के बूथ संख्या 280 एवं 283 पर दो घंटे तक ईवीएम खराब रहने के कारण सुबह नौ बजे बजे के बाद शुरू हुई वोटिंग।

16—सुपौल–रानीगंज प्रखंड के छतियोना में पंचायत स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय छतियोना बूथ संख्या 312 में जिला परिषद सदस्य पद का ईवीएम मशीन में गड़बड़ी होने के कारण 7 बजे से ही मतदान बंद है।

भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति में बिहार को अच्छी खासी जगह मिली लेकिन सुशील मोदी का पर कतरा दिया गया

भाजपा ने आज पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की घोषणा की है ।80 सदस्यीय कार्यसमिति में बिहार से रविशंकर प्रसाद,गिरीराज सिंह ,भगीरथी देवी और नित्यानंद राय को जगह दी गयी है ,वही राधामोहन सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया है ।

विशेष आमंत्रित सदस्य के रुप में सांसद गोपाल जी ठाकुर,मंत्री मंगल पांडेय,पूर्व मंत्री प्रेम कुमार और पूर्व मंत्री नंद किशोर यादव को बनाया गया है । उप मुख्यमंत्री के नाते तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को पार्टी ने राष्ट्रीय कार्यसमिति में शामिल किया है। पूर्व उप मुख्यमंत्री के नाते सुशील मोदी को भी जगह दी गयी है।

प्रवक्ता की सूची बिहार से चार प्रवक्ताओं को जगह दी गई है। इसमें बिहार के उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन को राष्ट्रीय प्रवक्ता के नाते लिया गया है। वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी, एमएलसी व राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय मयूख के अलावा गुरु प्रकाश को राष्ट्रीय कार्यसमिति में पार्टी ने जगह दी है।

बिहार भाजपा संगठन से अब भूपेन्द्र यादव बाहर हो गए हैं। सह प्रभारी हरीश द्विवेदी को बिहार भाजपा का प्रभारी बना दिया गया है। अनुपम हजारा नई व्यवस्था में भी सह प्रभारी का जिम्मा संभालेंगे।

द्विवेदी यूपी के बस्ती संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में UP में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 12 रैलियों के प्रबंधन में हरीश द्विवेदी ने अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद से उनका भाजपा में लगातार कद बढ़ता गया और उन्हें बिहार भाजपा का प्रभारी बना दिया गया है। सह प्रभारी अनुपम हजारा ही होंगे। अनुपम हजारा पश्चिम बंगाल के हैं। कभी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खास रहे हजारा बेलापुर से तृणमूल कांग्रेस से सांसद रह चुके हैं। हालांकि, 2019 चुनाव में वो जाधवपुर से भाजपा के टिकट पर हार गए थे।

बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा में भी इंजीनियरों का रहा बोलबाला टांप 10 में सात इंजीनियर है

बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की 65वीं संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा का फाइनल रिजल्ट आज जारी हो गया। इसमें रोहतास के गौरव सिंह ने टॉप किया है। वहीं, दूसरे नंबर पर बांका की चंदा भारती रहीं है। जबकि, तीसरे नंबर पर नालंदा के वरुण कुमार ने जगह बनाई है।

टॉप 10 में दो लड़कियां हैं। लड़कियों में सेकेंड टॉपर अनामिका को ओवर-ऑल नौवां स्‍थान मिला है। टॉपर गौरव व सेकेंड टाँपर चंदा सहित टॉप 10 में सात इंजीनियर हैं।

BPSC टॉपर गौरव सिंह की मां शशि कुमारी उत्क्रमित मध्य विद्यालय में पंचायत शिक्षिका हैं। पिता स्व. मनोज कुमार सिंह एयरफोर्स में जॉब करते थे। बच्चों की कम उम्र में ही मनोज कुमार सिंह का देहांत हो गया था। टॉपर गौरव का दूसरा भाई अमन कुमार सिंह पंजाब के लुधियाना से इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई कर रहा है। वहीं, BPSC की सेकेंड टॉपर चंदा भारती बांका की रहने वाली हैं। वे गया बुडको में असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं। पिता विवेकानंद यादव गढ़वा में असिस्टेंट इंजीनियर हैं। मां का नाम कुंदन कुमारी है। चंदा भारती तीन भाई एक बहन हैं।
इंटरव्यू के लिए 1,142 अभ्यर्थियों को बुलाया गया था

इंटरव्यू के लिए 1,142 अभ्यर्थियों को बुलाया गया था, जिसमें से 1,114 अभ्यर्थी शामिल हुए थे। अनारक्षित वर्ग के पुरुष उम्मीदवारों के लिए कटऑफ 532, अनारक्षित वर्ग की महिला उम्मीदवारों के लिए कटऑफ 515, ईडब्ल्यूएस के लिए 530, ईडब्ल्यूएस (महिला) के लिए 504, एससी (पुरुष) के लिए 507 और एसटी (पुरुष) के लिए 495 मार्क्स रही है। बिहार सरकार के 14 विभागों में कुल 423 रिक्त पदों के लिए परीक्षा हुई थी, जिसमें से 422 उम्मीदवारों को सफल घोषित किया गया है। इस भर्ती का इंटरव्यू अगस्त में हुआ था।

हाईकोर्ट ने मुखिया हीरावली देवी को चुनाव लड़ने की दी अनुमति

पटना हाई कोर्ट ने कैमूर(भभुआ) जिले के लहदन ग्राम पंचायत राज की मुखिया रही हीरावती देवी को चुनाव लड़ने का आदेश दिया। जस्टिस विकास जैन की खंडपीठ ने हीरावती देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें मुखिया पद का चुनाव लड़ने की अनुमति दी।

साथ ही कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग और जिलाधिकारी कैमूर को सिंबल आवंटित करने का आदेश दिया। हीरावती देवी को आगामी 20 अक्टूबर को होने जा रहे चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने का भी आदेश दिया है।

इसके पूर्व कोर्ट ने मुखिया के पद पर निर्वाचन के लिये नामांकन पत्र को स्वीकार करने का आदेश दिया था। हीरावती देवी को पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव के आदेश से मुखिया के पद से 28 अक्टूबर, 2019 को हटा दिया गया था।
इस आदेश के विरुद्ध अपीलार्थी ने पटना हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर किया था, जोकि 8 मार्च, 2021 को खारिज हो गया था। इस रिट याचिका में दिए गए आदेश के विरुद्ध याचिकाकर्ता ने पटना हाई कोर्ट में ही अपील दायर किया था, जिस पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने यह आदेश को पारित किया।

राज्य सरकार के पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव द्वारा 20 अक्टूबर, 2019 को पारित उस आदेश को रद्द करने हेतु याचिका दायर की थी, जिसके जरिये उन्हें लोहदन पंचायत के मुखिया के पद से हटा दिया गया था।

अपीलार्थी के अधिवक्ता ने बताया कि मुखिया के ऊपर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने कथित रूप से लगभग 34 लाख रुपये का गबन किया था। इन्होंने प्रबंधन कमेटी के नाम से चेक जारी नहीं कर पंचायत सचिव के नाम से चेक जारी किया और पैसे का इस्तेमाल अपने लिये किया था। ये राशि मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना की थी।
किन्तु याचिकाकर्ता की जानकारी में जब यह बात आई तो इन्होंने ब्याज समेत पूरे पैसे को खाता में जमा करवा दिया। गबन की गई राशि पर कंपाउंड इनटरेस्ट लेने का भी आदेश दिया गया। अपीलार्थी ने इस राशि को भो खाता में जमा किया।

अपीलार्थी जनवरी, 2016 में मुखिया के तौर पर निर्वाचित हुए थी। पब्लिक फण्ड के गबन को लेकर स्पष्टीकरण भी पूछा गया था। बी डी ओ ने जिला पंचायत राज ऑफिसर को अपीलार्थी द्वारा पैसा जमा कर दिए जाने की सूचना भी दे दिया था।
इस मामले में अगली सुनवाई आगामी 21 अक्टूबर को होगी।

कन्हैया का कांग्रेस के साथ आना कांग्रेस और कन्हैया दोनों की जरुरत है

कन्हैया कुमार: बहुत कठिन है डगर पनघट की

न मैं वामपंथी हूँ और न ही काँग्रेसी हूँ, लेकिन मेरी नज़रों में वामपंथी या काँग्रेसी होना गुनाह नहीं है, उसी प्रकार जिस प्रकार भाजपायी और संघी होना गुनाह नहीं है। गुनाह है इनके कुकर्मों के खिलाफ आवाज़ न उठाना। इसी प्रकार, न व्यक्ति-केन्द्रित राजनीति में मेरा विश्वास है और न ही मैं किसी मुक्तिदाता की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। हाँ, दक्षिणपंथियों की विभाजनकारी राजनीति के ख़िलाफ़ हूँ, इसमें सन्देह की कोई गुँजाइश नहीं है। मेरी सहानुभूति लेफ़्ट के प्रति भी है और काँग्रेस के प्रति भी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं लेफ्ट या काँग्रेस की हर बात से सहमत हूँ, या फिर इन्हें निर्दोष मानता हूँ: सन्दर्भ चाहे मुस्लिम-तुष्टिकरण का हो, या फिर इनकी नकारात्मक राजनीति का। आलोचनात्मक विवेक के बिना समर्थन या विरोध मुमकिन नहीं है। यही स्थिति कन्हैया के सन्दर्भ में भी है। मेरा यह मानना है कि जब मुद्दों और समस्याओं को रोमांटिसाइज़ किया जाता है या फिर राजनीति में मुद्दों की जगह व्यक्ति एवं व्यक्तित्व को अहमियत दी जाती है, तो समस्याओं के समाधान की संभावना धूमिल पड़ती चली जाती है।

यही भूल भारतीय जनमानस ने सन् 1977 में की थी, और यही भूल 1989 में दोहरायी गयी। यही चूक अन्ना आन्दोलन के दौरान हुई और यही चूक वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सन्दर्भ में हुई। यही चूक सन् 2019 में कन्हैया कुमार के संदर्भ में वामपंथियों से हुई, और यही चूक आज कन्हैया कुमार के काँग्रेस में प्रवेश से उत्साहित काँग्रेसजन या कन्हैया-समर्थक कर रहे हैं। सच तो यही है कि वामपंथ और कन्हैया कुमार एक दूसरे को सँभाल नहीं पाए, और परिणाम सामने है, कन्हैया कुमार का काँग्रेस के पक्ष में खड़ा होना। यह स्थिति काँग्रेस के लिए बेहतर है क्योंकि उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, उसे पाना-ही-पाना है, थोडा ज्यादा या फिर थोडा कम। यह स्थिति कन्हैया कुमार के लिए बेहतर हो सकती है और बेहतर प्रतीत हो रही है, पर कितनी बेहतर होगी, यह भविष्य के गर्भ में छुपा है जिसे आने वाला समय बताएगा। पर, वामपंथ और विशेष रूप से सीपीआई के लिए यह स्थिति किसी त्रासदी से कम नहीं है। रही बात मुझ जैसों की, तो उन्हें पता था की देर-सबेर यह तो होना ही था। पिता के श्राद्ध में बाल मुंडवाने से इनकार और चुनाव के वक़्त मंदिर में मत्थे टेकना, नोटबन्दी के समय माँ को लाइन में लगवाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना और खुद चुनावी लाभ के लिए माँ के इस्तेमाल की हरसंभव कोशिश, युवाओं की ऐसी टोली को तैयार करना जो उनके प्रति वफादार हो: ये तमाम बातें ऐसी आशंकाओं को जन्म ही नहीं दे रहे थे, बल्कि उसे पुष्ट भी कर रहे थे।

काँग्रेस में शामिल होने का निर्णय गलत नहीं:

सबसे पहले मैं यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि ‘अपने भविष्य को लेकर चिन्तित’ कन्हैया का काँग्रेस में शामिल होने का निर्णय गलत नहीं है। हाँ, अब वह आदर्शों, मूल्यों और सिद्धांतों की राजनीति का दावा नहीं कर सकता है। मेरी नज़रों में तो पहले भी नहीं कर सकता था। लेकिन, उसका काँग्रेस में जाना निस्संदेह जनवादी आन्दोलन के लिए एक झटका है, ऐसा झटका जिससे संभल पाना आसान नहीं होगा। यह उसके लिए एक सपने के टूटने की तरह है जिसकी कसक लम्बे समय तक बनी रहेगी। पर, अगर वामपंथ इस घटना को सकारात्मक नज़रिए से ले, तो यह उसके लिए आत्ममूल्यांकन का अवसर भी है कि क्या उसने अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता पर व्यक्ति को तरजीह देकर सही किया था। ऐसे हज़ारों-लाखों कन्हैया फ़ील्ड में सक्रिय रहते हुए जनवादी आन्दोलन को मज़बूती दे रहे हैं। मेरी नज़रों में उनकी अहमियत और उनकी उपलब्धियाँ कन्हैया से कहीं अधिक मायने रखती हैं। हाँ, यह ज़रूर है कि वे कन्हैया की तरह ‘मीडिया-डार्लिंग’ नहीं हैं।

कन्हैया कुमार की ज़रुरत:

हर राजनीतिक दल की अपनी विशिष्ट संरचना और विशिष्ट प्रकृति होती है। जिस प्रकार संघ-परिवार के बिना भाजपा की कल्पना नहीं की जा सकती है और नेहरु-गाँधी परिवार के बिना काँग्रेस की परिकल्पना नहीं की जा सकती है, ठीक उसी प्रकार वामपंथी दलों की भी अपनी विशिष्ट प्रकृति है। एक तो यह उन अपवाद राजनीतिक दलों में है जिसमें आतंरिक लोकतंत्र मौजूद है और जहाँ पार्टी संगठन में सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़कर ऊपर जाना होता है; और दूसरे पार्टी-संगठन बुज़ुर्ग वहाँ पर भी कुण्डली मारकर बैठे हुए हैं। जहाँ तक बेगूसराय की बात है, तो सीपीआई अब भी बिहार में कहीं पर बची हुई है और थोड़ा-बहुत प्रभाव रखती है, तो बेगूसराय में। वहाँ ट्रेड यूनियन भी मज़बूत है, और यह पार्टी की आय का प्रमुख स्रोत भी है जिस पर वामपंथी नेताओं की नज़र है।

यद्यपि पार्टी ने कन्हैया कुमार को एडजस्ट करने की हर संभव कोशिश की और उसकी महत्वाकांक्षाओं को तुष्ट करने का प्रयास करते हुए पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में स्थान भी दिया, तथापि कन्हैया कुमार की अपेक्षाओं पर खरा उतर पाने में वह असफल रही। इसका महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि बेगूसराय के बुज़ुर्ग वामपंथी कन्हैया कुमार को वाकओवर देने के लिए तैयार नहीं थे, और कन्हैया कुमार फ्रीहैंड से कम पर मानने के लिए तैयार नहीं। अगर कन्हैया ने लोकसभा-चुनाव के समय उन्हें और पार्टी के कैडरों को साइडलाइन करने की हरसंभव कोशिश की, तो उन्होंने भी कन्हैया कुमार की हार को सुनिश्चित करने में कहीं कोर-कसर नहीं उठा रखा। दोनों के बीच यह अदावत विधानसभा-चुनाव के दौरान देखने को मिली। हालात यहाँ तक पहुँच गए कि न तो कन्हैया पार्टी एवं उसके बुजुर्गों के साथ सहज रह गए और न ही पार्टी एवं उसके बुजुर्ग कन्हैया कुमार के साथ।

दूसरी बात यह कि कन्हैया ने आरम्भ से ही ऐसा लाइन लिया जो गैर-वामपंथी विपक्ष के साथ सहज महसूस कर सके और उसका स्टैंड गैर-वामपंथी विपक्ष के लिए असहज करने वाला न हो। इसे इस बात से भी बल मिला कि पिछले चुनाव के दौरान कन्हैया को अक्रॉस द पार्टी लाइन जाकर सहयोग एवं समर्थन मिला। साथ ही, कई लोगों को व्यक्तिगत रूप से कन्हैया को कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन वामपंथी दल से उसकी उम्मीदवारी के कारण उन्होंने कन्हैया को समर्थन देने और उसके लिए वोट करने से परहेज़ किया। इससे कन्हैया कुमार को यह लगा कि अगर वह सीपीआई का उम्मीदवार न होकर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ता, तो जीत सकता था। अब यह बात अलग है कि यह खुशफहमी ऐसी स्थिति पैदा होने पर टिक पाती अथवा नहीं, लेकिन इससे इतना तो स्पष्ट हो ही गया कि कन्हैया कुमार को एक बड़े प्लेटफ़ॉर्म की तलाश है। जैसे ही इसके लिए उपयुक्त समय और उपयुक्त अवसर आया, कन्हैया कुमार सीपीआई का दामन छोड़कर काँग्रेस के नाव पर सवार हो गए। इससे इतना तो हो ही जाएगा कि कन्हैया कुमार को एक बड़ा प्लेटफ़ॉर्म मिल जाएगा जहाँ से निकट भविष्य में शायद राज्यसभा का रास्ता भी खुले और काँग्रेस के प्रवक्ता के रूप में वे मीडिया कवरेज भी हासिल कर पाने में सफल हों। राजनीतिक भविष्य को लेकर जो अनिश्चितता उन्हें परेशान कर रही है और सत्ता का एक डर, जो उनके अन्दर कहीं गहरे स्तर पर विद्यमान है, वह डर दूर होगा अलग से।

वामपंथियों को लुभाता रहा है काँग्रेस:

ऐसा नहीं है कि यह स्थिति बेगूसराय में ही देखने को मिलती है। इस सन्दर्भ में वामपंथियों का लम्बा-चौड़ा इतिहास है। काँग्रेस तो वामपंथियों की सहोदर ही है। वामपंथियों का प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन उसे हमेशा मिलता रहा है, और जेएनयू के वामपंथियों की तो काँग्रेस आश्रय-स्थली ही रही है। जैसा कि पुष्परंजन जी अपने आलेख ‘हिटलर के मुल्क में मार्क्सवादियों की जीत’ में लिखते हैं। सन् (1975-76) में जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे देवी प्रसाद त्रिपाठी ने एसएफआई से काँग्रेस और फिर काँग्रेस से एनसीपी तक की यात्रा तय की, तो जेएनयू में एसएफआई राजनीति से निकले डॉ. उदितराज (पूर्व नाम रामराज) ने भाजपा होते हुए काँग्रेस तक की यात्रा। इसी प्रकार चाहे शकील अहमद ख़ान (1992-93) की बात करें, या बत्ती लाल बैरवा की, या फिर नासिर अहमद की, इन लोगों ने जेएनयू के भीतर एसएफआई की राजनीति करते हुए अध्यक्ष के रूप में जेएनयू छात्रसंघ को नेतृत्व प्रदान किया, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में इन्होंने काँग्रेस का दमन थामते हुए अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने का काम किया। वहाँ वैचारिक प्रतिबद्धता इन्हें ऐसा करने से रोक नहीं पायी। अब, सवाल यह उठता है कि जब अल्ट्रा लेफ्ट सोच वाली आइसा से जेएनयू छात्रसंघ-अध्यक्ष रहे संदीप सिंह (2007-08) और मोहित के. पाण्डेय काँग्रेस में जा सकते हैं, तो कन्हैया कुमार तो फिर भी एआईएसएफ, जो वामपंथी संगठनों में सबसे अधिक उदारवादी सोच वाला छात्र संगठन है जो सीपीआई से सम्बद्ध है, से जुड़े रहे हैं।

काँग्रेस की ज़रुरत:

दरअसल, अगर काँग्रेस ने कन्हैया को प्राथमिकता दी है, तो इसका कारण यह है कि वह कन्हैया कुमार की मोदी-विरोधी छवि, उनकी वाकपटुता, पढ़े-लिखे युवाओं के बीच उसके क्रेज़ और उसकी अखिल भारतीय अपील को भुनाना चाहती है। साथ ही, कन्हैया कुमार के आने से काँग्रेस को नयी पीढ़ी का ऐसा नेता मिलेगा जिसकी मास-अपील है और जिसके सहारे काँग्रेस बिहार में अपने मृतप्राय संगठन में जान फूँकना चाहती है। इतना ही नहीं, काँग्रेस कन्हैया कुमार के सहारे एक बार फिर से सवर्ण मतदाताओं पर नज़र गराए हुए है और उसे लगता है कि पिछले तीन दशकों से हाशिये पर खड़े सवर्ण समुदाय के लिए कन्हैया कुमार उनके राजनीतिक वर्चस्व की पुनर्स्थापना में सहायक साबित हो सकते हैं। इससे ऐसा लगता है कि काँग्रेस बिहार में अपने रिवाइवल को लेकर गम्भीर है, लेकिन उसकी दुविधा महागठबंधन की ज़रुरत और काँग्रेस एवं कन्हैया कुमार को लेकर राजद के रवैये को लेकर है।

काँग्रेस देश की ज़रुरत:

मैं कन्हैया की इस बात से सहमत हूँ, यह कहना तो उचित नहीं है क्योंकि मैं ये बातें लम्बे समय से कह रहा हूँ। मेरा मानना है कि “देश को बचाने के लिए काँग्रेस को बचाना होगा।” जब मैं ऐसा कहता हूँ, तो मेरे लिए काँग्रेस एक राजनीतिक दल नहीं होता। अपनी तमाम कमियों के बावजूद, मेरे लिए काँग्रेस भारतीय सांस्कृतिक चिन्तन परम्परा का प्रतिनिधित्व करती है, उस सांस्कृतिक चिन्तन परम्परा का, जिसके केन्द्र में सहिष्णुता और समन्वय का भाव मौजूद है, जो भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता के प्रति संवेदनशील है तथा जो अपनी मूल प्रकृति में समावेशी है। आज सत्ता-प्रायोजित असहिष्णुता और उसकी पृष्ठभूमि में भारतीय समाज एवं राजनीति के साम्प्रदायीकरण ने भारतीय समाज एवं संस्कृति की विविधता के समक्ष ऐसे चुनौतियाँ उपस्थित की हैं जो राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता पर भी भरी पड़ सकती है। ऐसी स्थिति में इस सोच के खिलाफ ज़ंग किसी भी देशभक्त की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

विचारधारा की राजनीति के भ्रम से मुक्त हो वामपंथ:

कन्हैया कुमार के इस निर्णय से वामपंथी सकते में हैं, और आलम यह है कि उन्होंने कन्हैया के विरुद्ध मोर्चा तक खोल दिया है। उसे समझौतावादी से लेकर अवसरवादी तक साबित करने की हरसंभव कोशिश हो रही है। वामपंथियों को अगर इस बात की गलतफहमी हो कि वे और उनकी विचारधारा से जुड़े लोग ‘विचारधारा की राजनीति’ करते हैं, वे इस गलतफहमी को अपने दिमाग से बाहर निकल दें। इस प्रकार की सोच अतिवाद की ओर ले जाती है। इसी सोच का परिणाम है कि जब बेगूसराय के रास्ते कन्हैया कुमार का राजनीति में प्रवेश हुआ, तो उन्होंने कन्हैया के चरित्र एवं व्यक्तित्व को रोमांटिसाइज़ करते हुए उसे ‘मोदी के वामपंथी अवतार’ में तब्दील ही कर दिया और मुद्दों को दरकिनार करते हुए व्यक्ति-केन्द्रित राजनीति की दिशा में ठोस पहल की; और अब जब कन्हैया कुमार वामपंथ का दामन छोड़कर काँग्रेस में शामिल हो चुका है, तो उसे खलनायक साबित करने की हरसंभव कोशिश की जा रही है। आखिर इस बात की अनदेखी क्यों की जा रही है कि आज के दौर की राजनीति विचारधारा से परे जा चुकी है, और जो भी लोग विचारधारा की राजनीति कर रहे हैं, वे या तो हाशिये पर धकेले जा चुके हैं या धकेले जा रहे हैं। यह खुद वामपंथी राजनीति की भी वास्तविकता है, अन्यथा शत्रुघ्न प्रसाद सिंह की अनदेखी कर लोकसभा-चुनाव,2014 में राजेन्द्र प्रसाद सिंह और लोकसभा-चुनाव,2019 में कन्हैया कुमार को उम्मीदवार नहीं बनाया जाता। क्या यह सच नहीं है कि शत्रुघ्न बाबू की जगह राजो दा को टिकट दिलवाने में सूरजभान, शत्रुघ्न बाबू के साथ उसकी प्रतिद्वंद्विता और उसकी धन-बल की राजनीति की अहम् भूमिका रही? क्या यह सच नहीं है कि पिछले चुनाव में सीपीआई कैडर की उपेक्षा करने की कन्हैया कुमार को खुली छूट दी गयी? खुद बेगूसराय की राजनीति में भोला बाबू और सुरेन्द्र मेहता जैसे लोगों ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए सीपीआई का दामन नहीं छोड़ा? क्या यह सच नहीं है कि हालिया सम्पन्न बिहार विधानसभा-चुनाव में मटिहानी से सीपीएम उम्मीदवार राजेन्द्र प्रसाद सिंह की हार में पूर्व सीपीआई विधायक राजेन्द्र राजन जी के चकवार-प्रेम और बछवाड़ा से सीपीआई उम्मीदवार अवधेश राय की हार में सीपीएम के रामोद कुँवर के भाजपा उम्मीदवार सुरेन्द्र मेहता के प्रति प्रेम की अहम् भूमिका रही? उस समय तो वैचारिक प्रतिबद्धता का ख्याल नहीं रहा। अब सवाल यह उठता है कि यह दोगलापन कब तक चलेगा कि जब तक कोई सीपीआई में है, तो उदार, धर्मनिरपेक्ष एवं प्रगतिशील है; और अगर किसी दूसरे दल में, तो प्रतिक्रियावादी, समझौतावादी और कम्युनल?

बदलते परिवेश और बदलती सोच को समझने की ज़रुरत:

दरअसल, वामपंथी विचारधारा से काँग्रेस की निकटता और उसके भीतर पारंपरिक रूप से मज़बूत सेंटर लेफ्ट की मौजूदगी, जो पिछले तीन दशकों के दौरान कमजोर पड़ी है, अपनी भूलों के कारण वामपंथ का निरन्तर कमजोर पड़ते चला जाना, वामपंथी दलों पर बुजुर्गों के वर्चस्व के कारण युवाओं के सीमित स्पेस, छात्र नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और इसकी पृष्ठभूमि में अखिल भारतीय उपस्थिति एवं प्रभावशीलता के कारण काँग्रेस में बेहतर राजनीतिक भविष्य की सम्भावना इस प्रवृत्ति को उत्प्रेरित करती है। वामपंथी दलों को भी इस सच्चाई को स्वीकारना होगा और यह तब तक संभव नहीं है जब तक कि वे बदलते हुए हालात और बदलती हुई सोच को समझने के लिए तैयार नहीं हो जाते। उन्हें समाज में मूल्यों एवं वैचारिकता के क्षरण को भी समझना होगा और इस बात को भी समझना होगा कि प्रबल राजनीतिक महत्वाकांक्षा के शिकार युवा अपनी बारी की प्रतीक्षा नहीं कर सकते। उनके पास समय नहीं है और उन्हें कम समय में बहुत कुछ हासिल करना है। वे विचारधारा के नाम पर अपनी भविष्य की संभावनाओं से समझौता करने के लिए तैयार नहीं हैं। इन सबके मूल में मौजूद है वह दबाव, जो पिछली तीन दशकों के दौरान पूँजीवादी उपभोक्तावादी संस्कृति के बढ़ते हुए वर्चस्व के कारण सृजित हुआ है और जिसने भारतीय समाज के पारंपरिक मूल्यों और नैतिकताओं को तहस-नहस कर दिया है। इतना ही नहीं, वामपंथ को लोचशीलता प्रदर्शित करते हुए सत्ता की राजनीति की बजाय दबावकारी समूह की राजनीति को प्राथमिकता देनी चाहिए, और उन लोगों एवं उन दलों को भी भरोसे में लेना चाहिए जिनकी प्रतिबद्धता भले ही वामपंथी विचारधारा के प्रति नहीं है, पर जो वामपंथी सरोकारों से इत्तफाक रखते हैं। इस मोर्चेबन्दी को मज़बूत करते हुए वामपंथ को सड़क की राजनीति पर और अधिक फोकस करना चाहिए क्योंकि एक तो अन्य गैर-भाजपा दल सुविधाभोगी होने के कारण सड़क की राजनीति भूल चुके हैं और दूसरे, डॉ. लोहिया ने कहा है: “जब सड़कें सूनी हो जाती हैं, तो संसद आवारा हो जाती है।” तमाम सीमाओं के बावजूद वामपंथ की खासियत इस बात में है कि यह कैडर-आधारित पार्टी है और इसके अधिकांश कैडर, कुछ हद तक वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध होने के साथ-साथ सड़क की राजनीति में विश्वास करते हैं। ऐसी स्थिति में नियति ने भारतीय वामपंथियों पर ऐतिहासिक दायित्व के निर्वाह की जिम्मेवारे सौंपी है जिससे वे मुँह नहीं मोड़ सकते हैं।

बहुत कठिन है डगर पनघट की:

जहाँ तक कन्हैया कुमार के राजनीतिक भविष्य का प्रश्न है, तो कन्हैया के लिए आगे का रास्ता आसान नहीं होने जा रहा है। इसका कारण यह है कि उन्होंने वामपंथी दलों की अदावत मोल ली है जिसके लिए शायद वामपंथी उन्हें माफ़ नहीं करें, और इसकी कीमत देर-सबेर उन्हें चुकानी पड़ सकती है। लेकिन, इस पूरी प्रक्रिया में कन्हैया ने अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता गँवाते हुए अपनी राजनीतिक पूँजी को दाँव पर लगाया है। इस क्रम में उनकी छवि अवसरवादी राजनेता वाली बनी है और इसके कारण यह सन्देश गया है कि वे भी अन्य राजनीतिज्ञों की तरह ही हैं। इसके कारण वे लोग उनसे दूर छिटकेंगे जो राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से मुक्त रहते हुए वैकल्पिक संभावनाओं की पड़ताल कर रहे थे।

टिपिकल राजनीतिज्ञ हैं कन्हैया कुमार:

यह कहने, कि कन्हैया कुमार टिपिकल राजनीतिज्ञ बनने की ओर अग्रसर हैं, की तुलना में यह कहना कहीं अधिक उचित है कि कन्हैया कुमार में आरम्भ से ही टिपिकल राजनीतिज्ञ के लक्षण मौजूद रहे हैं। अगर ऐसा नहीं होता, तो शायद जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में उनकी जीत ही संभव नहीं हो पाती। सन् 2016 में ही क़रीब जेएनयू वाली घटना के 6-7 माह बाद बाप्सा के नौ सदस्यों को, जो दलित समुदाय से आते थे, को जेएनयू से निलम्बित किया गया था, कन्हैया सहित तमाम तथाकथित प्रगतिशील और उदारवादी ताक़तों ने निलम्बन के मसले पर उनका साथ देने से इनकार करते हुए ‘जय भीम, लाल सलाम’ नारे को ‘सार्थक’ बनाया। कुछ ऐसे ही हालात बेगूसराय में दिखे, जब पूर्व एमएलसी उषा साहनी को कोई पूछने वाला तक नहीं था, जबकि वे उस सभा में सीपीआई की वरिष्ठतम नेत्री थीं और उस सेमीनार में प्रमुख वक्ता के रूप में कन्हैया कुमार मंच पर विराजमान थे। लोकसभा-चुनाव के बाद होने वाली हिंसा में तीन वामपंथी कार्यकर्ताओं की हत्या हुई, लेकिन कन्हैया कुमार ने मृतकों के घर जाकर उनके प्रति संवेदना प्रकट करने की आवश्यकता नहीं महसूस की। ये सारे प्रकरण एक दौर में रूमानी नायक में तब्दील हो चुके कन्हैया कुमार के टिपिकल राजनीतिज्ञ होने की ओर इशारा करते हैं।

कन्हैया की समस्या:

श्याम विज सही ही लिखते हैं, “लोग कहते हैं कि कन्हैया कुमार महत्वाकांक्षी है, लेकिन मुझे यह लगता है कि कन्हैया कुमार की समस्या यही है कि वह महत्वाकांक्षी नहीं है।” अगर कन्हैया कुमार महत्वाकांक्षी होते, तो इससे देश एवं समाज का भी भला होता, और खुद उनका भी भला होता। दरअसल, कन्हैया की समस्या यह है कि उसकी महत्वाकांक्षा का दायरा अत्यन्त सीमित है। वह येन-केन-प्रकारेण संसद तक पहुँचने की चाह रखता है, उससे अधिक कुछ नहीं; जबकि उसके सामने खुला मैदान है। लेकिन, इसके लिए उसे मीडिया की चकाचौंध से और इसके द्वारा मिलने वाली सस्ती लोकप्रियता की चाह से मुक्त होना होगा। उसे व्हाट्स एप्प, फेसबुक और ट्वीटर की मायावी दुनिया से बाहर निकलकर ज़मीन पर उतरकर राजनीति करनी होगी, अपने कोम्फोर जोन से बाहर निकलना होगा और अनकम्फर्ट जोन में प्रवेश के लिए तैयार होना होगा। लेकिन, अबतक इसके लक्षण दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ते हैं। अबतक उसने बने-बनाये प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल किया है, हर वह काम किया है जो मीडिया में फुटेज दिला सके और इस काम में उसे सवर्णवादी मीडिया का पूरा-पूरा साथ मिला है। यहाँ तक कि उसने उस मूल एजेंडे से समझौते भी किए हैं और उन लोगों की अनदेखी करते हुए उनकी उपेक्षा की है, उनका तिरस्कार तक किया है जो संघर्ष के दिनों में उसके साथी रहे हैं और जिन्होंने उस समय उसका साथ दिया जिस समय कन्हैया कुमार के साथ लोग खड़े होने से परहेज़ कर रहे थे। जेएनयू से लेकर बेगूसराय तक, एआईएसएफ से लेकर सीपीआई तक के उसके साथी एवं कैडर इसके साक्षी हैं।

एर्रोगेंस से मुक्ति पाने की ज़रुरत:

इतना ही नहीं, कन्हैया कुमार की छवि भी उनकी मुश्किलों को बाधा रही है। दिल्ली से बेगूसराय और पटना तक, छात्र-जीवन से राजनीतिक जीवन तक कन्हैया के एर्रोगेंस की किस्से सुने जा सकते हैं। दरअसल, कन्हैया जितना डिजर्व करता था, उसे उससे कहीं बहुत अधिक मिला। वह अपनी इस सफलता को पचा नहीं पा रहा है। इसने उसे एर्रोगेंट बनाया, और उस एर्रोगेंस के कारण उसने बहुत कम समय में अपने दोस्तों और शुभचिंतकों को खोया है। आज कन्हैया के प्रति सहानुभूति एवं समर्थन रखने वालों को सुदर्शन की ‘हार की जीत’ कहानी के बाबा भारती की बात याद आ रही होगी, और एक ही प्रश्न उनके मानस-पटल पर बार-बार कौंध रहा होगा: ‘अब कोई किसी ‘कन्हैया’ पर कैसे विश्वास करेगा? अब इस तरह से विश्वास करना मुश्किल होगा।”

मुस्लिम-परस्त छवि से छुटकारा पाने की चुनौती:

अबतक कन्हैया की छवि प्रो-मुस्लिम की रही है, और उन्होंने बेगूसराय चुनाव के दौरान जो रवैया अपनाया, उससे उनकी यह छवि और भी अधिक मज़बूत हुई है। उनकी इस छवि को मज़बूत करने में उनके विरोधियों की भी अहम् भूमिका रही, और सीएए-एनआरसी-एनपीआर के मसले पर होने वाले आन्दोलन में उनकी सक्रियता ने इसे और अधिक पुष्ट किया है। उन्हें ये बातें समझनी होंगी कि सिर्फ मुसलमानों एवं दलितों के भरोसे बैठे रहने से कुछ नहीं मिलने वाला है। दलित वोटबैंक के तो पहले से ही कई दावेदार हैं, और अब तो यह बिखर चुका है। रही बात मुस्लिम वोटबैंक की, तो दक्षिणपंथी हिंदुत्व के उभार, इसके कारण मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के द्वारा मुस्लिम उम्मीदवारों को उम्मीदवार बनाने से परहेज़, समाज एवं राजनीति में मुस्लिमों के हाशिये पर चले जाने के अहसास और इसकी पृष्ठभूमि में ओवैसी के राजनीतिक उभार के कारण आने वाले समय में उसमें भी बिखराव आने जा रहा है। आने वाले समय में उन्हें ज़मीनी स्तर पर राजनीति करते हुए अपना जनाधार भी विकसित करना होगा और काँग्रेस संगठन को मजबूती प्रदान करते हुए बिहार में मृतप्राय काँग्रेस में जान भी फूँकनी होगी, अन्यथा वे इतिहास के बियाबान में कहाँ खो जायेंगे, पता भी नहीं चलेगा। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि वे राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दें, और इस बात को पुष्ट करें कि उन्होंने अपनी पिछली गलतियों से कुछ सीखा भी है। काँग्रेस में जाने का निर्णय उनकी राजनीतिक परिपक्वता की ओर भी इशारा करता है और इस बात की ओर भी कि वे फूँक-फूँक कर कदम रख रहे हैं, लेकिन इसी दौरान उन्होंने ऐसे काम भी किये हैं जो उनकी राजनीतिक परिपक्वता पर सवालिया निशान लगते हैं। अब, जब कन्हैया काँग्रेस के साथ जुड़कर अपनी नयी राजनीतिक पारी शुरू करने जा रहे हैं, उन्हें इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए कि वे अब राजनीति के नौसिखुआ नहीं हैं।


इतना ही नहीं, समस्या कन्हैया कुमार की छवि, उसके रवैये और उसकी कार्यशैली के कारण भी है। पहली बात यह कि कन्हैया कुमार की कम्युनिस्ट पृष्ठभूमि, ‘जय भीम, लाल सलाम’ का नारा और उनकी मुस्लिम-परस्त छवि इसमें बाधक बन सकती है। इतना ही नहीं, बड़े सलीके से उनकी सवर्ण-विरोधी छवि और हिन्दू-विरोधी छवि भी निर्मित की गयी। उसके पिता के श्राद्ध में बाल नहीं मुंडवाने को मुद्दा बनाया गया। लोकसभा-चुनाव के समय कोरई गाँव की घटना को अंजाम दिया गया और इसका इस्तेमाल उन्हें सवर्ण-विरोधी साबित करने के लिए किया गया। पिछले लोकसभा-चुनाव में यही छवि बेगूसराय से कन्हैया कुमार की जीत में बाधक बनी थी। दूसरी बात यह कि सीपीआई का सदस्य रहते हुए कन्हैया कुमार ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे ऐसा लगता हो कि संगठन को मजबूती प्रदान करने में उसकी कोई रूचि है, जबकि उसके पास इसके बेहतर अवसर उपलब्ध थे। तीसरी बात यह कि कन्हैया कुमार अहमन्यता के शिकार हैं, और इसी कारण उन्हें यह लगता है कि उनका मुकाबला सिर्फ और सिर्फ मोदी से है। यह अहसास उन्हें ज़मीनी स्तर की राजनीति से दूर रख रहा है जिसके बिना न तो कन्हैया कुमार की महत्वाकांक्षा पूरी हो सकती है और न ही वे काँग्रेस की अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हैं। अब देखना यह है कि कन्हैया कुमार कहाँ तक पूर्व की अपनी गलतियों से सीखते हुए राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देते हैं और अपनी राजनीतिक स्थिति को मज़बूत करने की कोशिश करते हैं? इसकी अपेक्षा तो नहीं के बराबर है, पर तब तक कन्हैया को उनके उज्ज्वल राजनीतिक भविष्य के लिए शुभकामनाएँ तो दी ही जा सकती हैं।

लेखक –कुमार सर्वेश

तीसरे चरण के चुनाव से पहले ही 3 हजार से अधिक उम्मीदवार हुए निर्वाचित नक्सल प्रभावित मतदान केन्द्रों पर रहेंगी विशेष नजर

बिहार पंचायत चुनाव में तीसरे चरण का कल मतदान है शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग की माने तो इस बार फुलप्रुफ व्यवस्था है।इभीएम और बेवकास्ट के साथ साथ थम जांच मशीन पर इस बार विशेष नजर रखी जा रही है । कल वोटिंग सुबह 7 बजे से शाम 5 तक होगी। तीसरे चरण में कुल 23 हजार 128 पदों के उम्मीदवार अपने किस्मत आजमायेंगे। इन पदों के लिए 81616 उम्मीदवार मैदान में हैं । इनमें 43061 महिला उम्मीदवार मैदान में है तो 38555 पुरूष मैदान में हैं। तीसरे चरण में कुल 57 लाख 98 हजार, 379 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इसके लिए 6646 भवनों में 10529 मतदान केन्द्र बनाये गए हैं ।

नक्सल प्रभावित पंचायत की सुरक्षा को लेकर विशेष सुरक्षा का दावा

हलाकि इस बार नक्सल प्रभावित पंचायत में भी चुनाव है जिसको देखते हुए
राज्य निर्वाचन आयोग ने 445 मतदान भवन नक्सल प्रभावित इलाकों के सभी मतदान केंद्रों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए है। शांतिपूर्ण, भय मुक्त, मतदान केंद्रों की सुरक्षा, EVM की सुरक्षा के लिए बिहार पुलिस के कुल 35616 अफसर और जवानों को लगाया गया है। इनमें जिला पुलिस के साथ-साथ BSMP, SAP और होमगार्ड की टीम शामिल है।

चुनाव से पहले ही हजारों उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं

राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार तीसरे चरण में 3144 प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हो चुके हैं । सबसे अधिक 3020 पंच निर्विरोध निर्वाचित हो गए हैं । इसी तरह से पंचायत समिति सदस्य के 3 पदों पर भी निर्विरोध निर्वाचन हो गया है। ये निर्वाचन तीसरे चरण के 35 जिलों के 50 प्रखंडों में हुआ है। इन सीटों पर 8 अक्टूबर को मतदान होना है ।वोटिंग से पहले प्रथम चरण की सीटों पर रिजल्ट जारी

ग्राम पंचायत सदस्य पद के लिए 118, पंच पद के लिए 3020, मुखिया पद के लिए 2, पंचायत समिति सदस्य पद के लिए 3, ग्राम कचहरी सरपंच पद के लिए 1 पद शामिल है। तीसरे चरण में 186 पद खाली रह गए हैं यहां कोई प्रत्याशी दावेदारी नहीं किया है। इसमें ग्राम पंचायत सदस्य पद के लिए 7, पंच पद के लिए 176 और ग्राम कचहरी सरपंच पद के लिए 3 पद शामिल है। आयोग का कहना है कि इन पदों पर किसी भी प्रत्याशी ने दावेदारी नहीं की है। तीसरे चरण में कुल 186 पद खाली रह गए हैं यानी यहां किसी ने भी नामांकन नहीं किया। इनमें सबसे अधिक पंच पद 176 हैं।

बिहार पुलिस के कार्यशैली पर उठा सवाल रुपा और उसकी माँ की आत्महत्या के लिए कौन है जिम्मेवार

आत्महत्या जैसी घटना ना तो मीडिया के लिए कोई खबर है और ना ही समाज के पास वक्त है उस पर मंथन करने को,हां सुशांत सिंह राजपूत जैसे लोग आत्महत्या कर लेते हैं तो उस पर महीनों चर्चाए जरुर होती है ।लेकिन आज हम आपको बिहार की एक बेटी की आत्महत्या की वजह को लेकर आप से बात करना चाहते हैं शायद आपको उबाऊ लगे क्यों कि बिहार की वो बेटी ना तो कोई सेलिब्रिटी है ना ही यूपीएसपी की परीक्षा पास कि है।

पता नहीं क्यों जब से बिहार की उस बेटी का सुसाइड नोट पढ़ा हूं मैं ठीक से सो नहीं पा रहा हूं बार बार उसके सुसाइड नोट का हर एक शब्द सिस्टम और समाजिक मर्यादओं के सामने लाचार एक बिहारी और भारतीय का चेहरा मेरे आंखों के सामने नाचने लगता है।

पहले मां बेटी के सुसाइड करने का मजमून क्या है जरा इस पर चर्चा कर लेते हैं फिर बात सुसाइड नोट की होगी ,हुआ ऐसा है कि छपरा के मढ़ौरा में सोमवार को इसरौली पेट्रोल पंप के पास बाइक सवार पांच अपराधियों ने हथियार के बल पर कैशवैन से 40 लाख रुपए लूट लिया था ।

लूट की घटना के बाद सारण पुलिस को एक सीसीटीवी फुटेज मिला जिसके आधार पर घटना के बाद भाग रहे अपराधियों के मोटरसाइकिल का नम्बर पता चला उसी आधार पर पुलिस ने भेल्दी थाना क्षेत्र के खारदरा में अपराधी सोनू पांडेय के घर छापा मारा जहां से पुलिस को लूट की घटना में उपयोग किये गये मोटरसाइकिल के साथ साथ से छह लाख रुपए और एक देशी पिस्टल बरामद किया हलाकि सोनू घर पर मौजूद नहीं था लेकिन अवैध हथियार मिलने की वजह से पुलिस सोनू के पिता चंदेश्वर पांडेय को गिरफ्तार कर लिया।

गिरफ्तारी के दौरान पुलिस ने सोनू के पिता के साथ जिस तरीके मारपीट गाली गलौज और पत्नी और बेटी के सामने जलील किया उससे आहत होकर सोनू की मां और बहन ने आत्महत्या कर लिया ।हलाकि पुलिस ने सोनू के पिता के साथ जो व्यवहार किया उसमें अस्वभाविक कुछ भी नहीं है जिसको लेकर सिस्टम पर सवाल खड़े किये जा सके पुलिस तो ऐसा करती ही है इसमें ऐसा क्या है जो मां बेटी सुसाइड कर ली, लेकिन रुपा ने सुसाइड नोट के सहारे जो सवाल खड़े की है वह सवाल संकेत है आज की युवा पीढ़ी की सोच कितनी दूर तलक चली गयी और सिस्टम कहां पीछे छुट गया है इतना ही नहीं सवाल बिहार के युवक से भी जो चंद पैसे के लिए किस तरीके से गलत कदम उठा रहे हैं और उसका असर एक संवेदशील परिवार पर क्या पड़ रहा है ।

सुसाइड नोट में रुपा ने लिखा है भाई के कुकृत्य के कारण जिस तरीके से पुलिस हमलोगों के सामने पापा को जलील किया है ऐसी स्थिति में अब जिंदा रहने का कोई मतलब नहीं रहा गया है।

मेरे मां-बापा हमेशा से चाहते थे कि उनका बेटा और बेटी भविष्य में कुछ अच्छा काम करें लेकिन अफसोस उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। हम लोग गरीब जरूर हैं लेकिन गलत नहीं है और मेरे पापा हमेशा से हम सबको एक ही बात समझाते हैं कि बेटा मर जाना मगर कभी गलती ना करना। मेरे पापा बहुत बदनसीब हैं मेरे पापा का सपना पूरा ना हो सका।

रुपा ने सुसाइड नोट में आगे लिखा है कि मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि मेरे पापा को गलत ना समझें। प्लीज प्लीज प्लीज मेरे पापा खुद हमेशा सोनू से इस सब के कारण नाराज रहते थे। पापा हम आप की यह हालत नहीं देख सकते। हम कभी नहीं सोचे थे कि कोई आप पर ऐसे हाथ उठाए पर ऐसा हुआ। पुलिस किसी का सम्मान और दर्द नहीं समझती ऐसे में पापा मेरे जिंदा रहने का कोई मतलब नहीं है मां को भी साथ ले जा रहे हैं ।

रुपा तो चली गयी इस दुनिया से लेकिन हमारे आपके सामने कई सावल छोड़ गयी है एक मध्यवर्गीय परिवार के लिए आज भी मर्यादा और परिवार का इज्जत कितना मायने रखता है ऐसे में पुलिस को अपने कार्यशैली में बदलाव लाने कि जरुरत है नहीं तो आने वाले समय में इस तरह की कई घटनाए घट सकती है ।

बेटा अपराधी है तो बाप कहां से गुनहगार हो गया ।सोनू के कृत्य की सजा उसका परिवार क्यों भुगते छपरा एसपी को सोनू की मां और बहन की आत्महत्या करने को लेकर जिम्मेवारी तय करनी चाहिए इतना ही नहीं रुपा को इस दुनिया को छोड़ने की जो वजह रही है उस वजह के सहारे पुलिस के कार्यशैली में क्या सुधार लाया जा सकता है उस पर मुख्यमंत्री से लेकर डीजीपी तक को विचार करनी चाहिए।

बिहार में सरकार आपके द्वारा और पंचायती राज व्यवस्था से नक्सली मुख्यधारा में लौटने लगे हैं।

लाल इलाके में टूट रहा नक्सलियों का मिथक,
जिसके भय से कभी इलाके के लोग वोट डालने नहीं जाते थे
आज वही जनता के चौखट पर जाकर पंचायत के विकास वोट मांग रहा है

जी है हम बात कर रहे हैं बिहार में कभी नकस्लियों का गढ़ रहा झारखंड राज्य के सीमा से सटे गया जिले के बाराचट्टी थाना क्षेत्र के दक्षिणी इलाके पतलुका पंचायत का जहां 1990 के बाद कभी किसी ने वोट नहीं डाला ।चुनावों के दौरान नक्सलियों के वोट वहिष्कार के नारे का पूरी तौर पर पालन होता था। डर से लोग वोट डालने नही जाते थे और उम्मीदवार इस इलाके में प्रवेश करने की हिम्मत नहीं जुटाते थे। यही वह इलाका है जहां आपात स्थिति में लैंड हुये बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष वेंकैया नायडू का हेलीकॉप्टर नक्सलियों ने फूंक दिया था।

परंतु अब स्थितियां बदल चुकी है। यहां के मतदाता विकास के लिए बढ़-चढ़ कर मतदान करने की बात कह रहे हैं। उम्मीदवार भी निडर होकर जनसंपर्क अभियान चला रहे हैं। जहां खून खराबा का माहौल था वहां अब विकास की बात हो रही है। मुख्यधारा में लौटे कई नक्सली इस पंचायत चुनाव में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हिस्सा ले रहे हैं।

पूर्व नक्सली नंदा सिंह बताते हैं कि जितने वर्षों तक उन्होंने बंदूक उठाये रखा वह उनके जीवन का वो काला अध्याय था। अब वे समझ चुके हैं कि बंदूक से बदलाव सम्भव नही है। क्षेत्र के विकास के लिए वे चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा ले रहे हैं। अब वे लोकतंत्र में विश्वास जता रहे हैं और ग्रामीणों के बीच घूम-घूम कर जनसंपर्क अभियान चलाकर वोट मांग रहे हैं। ताकि मौका मिलने पर क्षेत्र का विकास कर सकें।यह स्थिति नक्सल प्रभावित गया जिले का ही नहीं है बिहार के अधिकांश नक्सल प्रभावित जिलों में पंचायती राज व्यवस्था के लालू होने के बाद चीजे बदल गयी है नक्सली या तो खुद चुनाव लड़ रहे हैं या उनके समर्थक चुनाव लड़ रहे हैं इतना ही नहीं विरोध में अगर उम्मीदवार चुनावी मैदान में है भी तो उसके साथ किसी भी तरह का हिंसक घटना ना घटे इसके लिए नक्सली खुद चुनाव प्रचार के दौरान खास सतर्कता बरतता है ।

आप भी सुनिए क्या कहता है नक्सली

पेट्रोल और डीजल केन्द्र सरकार सात वर्ष में 14 लाख करोड़ का कमाई किया है

पाँच साल में सरकार को क़रीब चौदह लाख करोड़ रुपये पेट्रोल और डीज़ल पर लगने वाले सभी प्रकार के टैक्स से मिले हैं। विवेक कॉल का डेक्कन हेरल्ड में छपा लेख पढ़ सकते हैं। आख़िर केंद्र सरकार पेट्रोल और डीज़ल का दाम क्यों बढ़ाए जा रही है? जब चुनाव होते हैं तब दाम का बढ़ना कैसे रुक जाता है? क्या आप यह नहीं समझ रहे कि हर दिन आपकी जेब से सरकार कितना पैसा निकाल रही है? इससे बेहतर होता कि आयकर ही ले लेती है। पाँच लाख तक की आमदनी को टैक्स से माफ़ी देकर सरकार ने कोई तीर नहीं मारा था। इतने कम कमाने वालों से टैक्स के नाम पर मिलता ही क्या लेकिन कारपोरेट का टैक्स कम कर सरकार ने दूसरे रास्ते से भरपाई का रास्ता निकाल लिया है। पेट्रोल डीज़ल पर टैक्स लगा कर। आज भी दाम बढ़े हैं। धर्म की राजनीति का यह सबसे सफल प्रदर्शन है। धर्म लोगों का नागरिक विवेक नष्ट कर देता है। अब सरकार लोगों के शरीर से ख़ून भी चूस लें तो लोग कहेंगे कि धार्मिक सुरक्षा और पहचान के लिए ये कुछ भी नहीं ।

आज दिल्ली में पेट्रोल 103.24 रुपये प्रति लीटर और डीज़ल 91.77 रुपये प्रति लीटर हो गया। मुंबई में पेट्रोल 109.25 रुपये प्रति लीटर और डीज़ल 99.55 रुपये प्रति लीटर हो गया।

आर्थिक मोर्चे पर फेल सरकार के पास कोई रास्ता नहीं बचा है। आपके बौद्धिक मोर्चे पर फेल हो जाने का लाभ उठाएँ और जेब से पैसे निकाल ले। धर्म की विजय हो।

लेखक –रवीश कुमार

मत्स्य पालकों के बीच डॉल्फिन के बचाव हेतु जागरूकता कार्यक्रम का हुआ आयोजन

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार के द्वारा दिनांक 6 अक्टूबर को’ एन आई टी घाट, पटना में मत्स्य पालकों के बीच डॉल्फिन के बचाव हेतु जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसका उद्घाटन ‘‘श्री नीरज कुमार सिंह’’, माननीय मंत्री, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार सरकार के कर-कमलों द्वारा किया गया। उक्त अवसर पर श्री दीपक कुमार सिंह, प्रधान सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार सरकार उपस्थित रहे।

जागरूकता कार्यक्रम के साथ , मत्स्य पालकों के बच्चों के बीच खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया गया। साथ ही उनके प्रोत्साहन हेतु, उनके बीच पुरुस्कार भी वितरित किया गया।

माननीय मंत्री ने अपने संबोधन में लोगों से डॉल्फिन के बचाने को अपील की, उन्होंने कहा कि हमारी और आपकी आपसी समझ और समन्वय से ही इनका बचाव करना सुलभ होगा। आपको बिहार सरकार,इस कार्य के लिए प्रोत्साहित करती रहेगी। साथ ही आपके जीवकोपार्जन में किसी प्रकार की दिक्कत न हो उसका भी उपाय हम करेंगे।

आप सबों से मेरी यह गुजारिश है कि कृपया इसके बचाव में जो बन पड़े कीजिए, साथ ही लोगों को भी अपने से जोड़ जागरूक कीजिए। आज आपके बच्चों ने अपनी बेहतर कला का प्रदर्शन किया और डॉल्फिन को बचाने में अपनी समझ को दर्शाया, यह अत्यंत ही सराहनीय है। मैं आप सभी का आभारी हूं, जो आज आप कर रहे हैं, वह हमारा बेहतर कल में दिखेगा।

प्रधान सचिव ने लोगों से गंगा को स्वच्छ रखने और इसे प्रदूषित न करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यह धरती सभी की है जिस पर मानवों के साथ अन्य सभी जीव जंतुओं और जलीय जीवों का अधिकार है। कृपया इसे बचाया जाए, जिससे जैव विवधता और पारिस्थिति तंत्र संतुलित रहे। मुख्य वन्य प्राणी प्रतिपालक और डॉल्फिन मैन प्रोफेसर आर के सिन्हा ने भी अपने विचार रखे।

इस अवसर पर श्री आशुतोष, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (Hoff) बिहार, श्री प्रभात कुमार गुप्ता, श्री गोपाल शर्मा, अंतरिम प्रभारी, राष्ट्रीय डाॅल्फिन शोध केन्द्र, पटना के साथ श्री शशिकांत कुमार DFO, Park पटना, DFO Patna उपस्थित रहे।

बिहार के 40 अस्पतालों में दीदी की रसोई से रोगी तक पहुंच रहा खाना

पटना। स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने बताया कि अस्पतालों में दीदी की रसोई खुलने से मरीजों को बेहतर इलाज के साथ-साथ स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन भी मिल रहा है। दीदी की रसोई से मरीजों के अलावे परिजनों को भी काफी सहूलियत हो रही है। रसोई में जीविका दीदियों द्वारा बना शुद्ध भोजन मरीजों को दिया जाता है।

दीदी की रसोई में मरीजों को मुफ्त तथा उनके परिजनों को उचित मूल्य पर गुणवत्तापूर्ण भोजन दिया जा रहा है। राज्य के 40 अस्पतालों में दीदी की रसोई से मरीजों और उनके परिजनों तक खाना परोसा जा रहा है, जहां स्वच्छता और शुद्धता का पूरा खयाल रखा जाता है।

श्री पांडेय ने कहा कि पहले चरण में पूरे राज्य में 74 दीदी की रसोई खोले जाने हैं। इसमें जिला और अनुमंडलीय अस्पताल मिलाकर अभी तक 40 जगहों पर दीदी की रसोई चालू है। बीते अगस्त को राज्य के 28 अस्पतालों में इसकी शुरुआत की गई है।

राज्य में अभी अरवल, पूर्वी चंपारण, बेगूसराय, कैमूर, खगड़िया, भोजपुर, नालंदा, भागलपुर, जमुई, सुपौल, बांका, कटिहार, नवादा, अररिया, मुजफ्फरपुर, लखीसराय, किसनगंज, मधेपुरा, औरंगाबाद, समस्तीपुर, पटना, मुंगेर, मधुबनी, गोपालगंज, गया, दरभंगा, वैशाली, बक्सर, शेखपुरा, पूर्णिया, शिवहर और सहरसा में दीदी की रसोई संचालित हो रहे हैं। इसमें जिला अस्पताल और अनुमंडलीय अस्पताल दोनों शामिल है।

श्री पांडेय ने बताया कि राज्य के मरीजों को बेहतर और त्वरित स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने के लिए स्वास्थ्य विभाग का सतत प्रयास जारी है। अस्पतालों में दीदी की रसोई शुरू हो जाने से मरीजों के परिजनों को भी काफी राहत मिली है। नाश्ता एवं भोजन के लिए अस्पताल में भर्ती मरीजों के परिजनों को नाश्ता एवं भोजन के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़ता है। अब अस्पताल में ही उन्हें विभिन्न वेरायटी का भोजन सस्ते दर पर उपलब्ध हो जाता है, जिससे संतुष्टि भी मिलती है और पैसे की भी बचत होती है।

पुलिस की यातना से आहत मां बेटी ने की आत्महत्या पुलिस मुख्यालय ने दिया जांच का आदेश

छपरा के मढ़ौरा से एक ऐसी खबर आयी है जहां अपराधी भाई के कृत्य और पुलिस की गुंडागर्दी से आहत होकर मां बेटी ने सुसाइड कर लिया है, हुआ ऐसा है कि सोमवार को मढ़ौरा के इसरौली पेट्रोल पंप के पास बाइक सवार पांच अपराधियों ने हथियार के बल पर कैशवैन से 40 लाख रुपए लूट लिया लूट की घटना के बाद सारण पुलिस को एक सीसीटीवी फुटेज मिला था जिसके आधार पर घटना के बाद भाग रहे अपराधियों के मोटरसाइकिल का नम्बर पता चल गया था उसी आधार पर पुलिस ने भेल्दी थाना क्षेत्र के खारदरा में अपराधी सोनू पांडेय के घर छापा मारा जहां से पुलिस को लूट की घटना में उपयोग किये गये मोटरसाइकिल के साथ साथ से छह लाख रुपए और एक देशी पिस्टल मिला हलाकि सोनू घर पर मौजूद नहीं था लेकिन अवैध हथियार मिलने की वजह से पुलिस सोनू के पिता चंदेश्वर पांडेय को गिरफ्तार कर लिया।

गिरफ्तारी के दौरान पुलिस ने सोनू के पिता के साथ अमानवीय व्यवाहर किया उससे आहत होकर सोनू की मां और बहन ने आत्महत्या कर लिया है ।

पुलिस सोनू के बहन का एक सुसाइड नोट बरामद किया है सुसाइड नोट में भाई के कुकृत्य के कारण जिस तरीके से पुलिस हमलोगों के सामने पापा को जलील किया है ऐसी स्थिति में अब जिंदा रहने का कोई मतलब नहीं रहा गया है।

मेरे मां-बापा हमेशा से चाहते थे कि उनका बेटा और बेटी भविष्य में कुछ अच्छा काम करें लेकिन अफसोस उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। हम लोग गरीब जरूर हैं लेकिन गलत नहीं है और मेरे पापा हमेशा से हम सबको एक ही बात समझाते हैं कि बेटा मर जाना मगर कभी गलती ना करना। मेरे पापा बहुत बदनसीब हैं मेरे पापा का सपना पूरा ना हो सका।

रुपा ने सुसाइड नोट में आगे लिखा है कि मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि मेरे पापा को गलत ना समझें। प्लीज प्लीज प्लीज मेरे पापा खुद हमेशा सोनू से इस सब के कारण नाराज रहते थे। इसमें उसका भी कोई कसूर नहीं है जब वह सही था तब उसे विनोद पांडे की बेटी ने अपने प्यार के जाल में फंसा लिया और उसे अपने साथ भागने को मजबूर कर दिया। तब सोनू उस समय तो चला गया लेकिन उसके बाद हम लोगों की इज्जत का कचरा किया। विनोद के पूरे परिवार के कारण वह और बिगड़ गया। पापा हम आप की यह हालत नहीं देख सकते। हम कभी नहीं सोचे थे कि कोई आप पर ऐसे हाथ उठाए पर ऐसा हुआ। पुलिस किसी का दर्द नहीं समझती।

इस बीच बिहार न्यूज पोस्ट द्वारा सवाल खड़े किये जाने पर एडीजी जितेन्द्र गंगवार ने कहा कि इस मामले की अलग से जांच कराई जायेंगी और दोषी पुलिस पदाधिकारियों पर एफआईआर दर्ज किया जायेंगा ।