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गाँधी मैदान में आयोजित ईद के नवाज में शामिल हुए नीतीश कुमार

पटना – सीएम नीतिश कुमार ने ईद की बधाई देते हुये सभी को एक दुसरे के प्रति आदर का भाव रखने और बिहार की तरककी को लेकर काम।करने की नसीहत दी है

वही उन्होंने कहा कि लागातर कोविड की वजह से गांधी मैदान में कार्यक्रम नही हो रहा था, लेकिन इसबार कार्यक्रम हो रहा है खुशी की बात है

हम खुद लगातार यहां आते है काफी खुशी मिलती है।

उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करके हुआ आस्था के महापर्व चैती’छठ’ का समापन

छठ अकेली ऐसी पूजा है, जिसमें उगते हुए और अस्त होते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। अस्त होता सूरज जहां आपको कालचक्र के बारे में बताता है तो वहीं उगता सूरज नई सोच और ऊर्जा का प्रतीक है और जीवन में आगे बढ़ने के लिए इन दोनों चीजों का होना बहुत ज्यादा जरूरी है। आपको बता दें कि आम से लेकर खास तक सभी ने पूरी श्रद्धा के साथ छठ पूजा की और अपने परिवार की खुशहाली के लिए सूर्य भगवान और छठ मैया से प्रार्थना की।

बगहा
आस्था के महापर्व चैती’छठ’ आज सुबह बगहा औऱ रामनगर छठ वर्ती महिलाओं ने उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया। श्रद्धालुओं ने सुबह-सुबह ही घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया। जिसके बाद उपवास रखने वाले व्रतियों ने छठ मैया का प्रसाद ग्रहण कर व्रत तोड़ा। आपको बता दें छठ पूजा करने का उद्देश्य जीवन में सूर्यदेव की कृपा और छठ मैया का प्रेम-आशीष पाना है। सूर्य की कृपा से आयु और आरोग्य की प्राप्ति होती है तो वहीं छठ मैया के आशीष से इंसान को सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

बेगूसराय
बेगूसराय में उगते सूर्य को अर्घ्य के साथ ही चार दिवसीय चैती छठ पर्व समाप्त हो गया। इस मौके पर बेगूसराय जिले के भी झमटिया गंगा घाटों पर छठ व्रतियों ने सूप के साथ  भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर पूजा का समापन किया।  चैती छठ व्रत को लेकर लोगों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है एवं छठ व्रतियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में लोग गंगा घाटों पर मौजूद हैं। जिले के कई पोखरों के साथ-साथ घरों पर भी लोगों ने लोक आस्था का पर्व चैती छठ को पूरे धूमधाम से मनाया। 4 दिनों तक चलने वाले इस छठ पर्व के अंतिम दिन उगते सूर्य की उपासना कर छठ पर्व का समापन हो गया। छठ व्रतियों ने घर परिवार समाज और देश की समृद्धि की कामना की है।

गया जिला के विभिन्न घाटों पर चैती छठ पूजा सम्पन हो गया, उगते हुए सूर्य का पूजा जल, दूध, धूप फल समर्पित कर किया गया।

रोसड़ा का एक ऐसा गांव जहां होती है अनोखी होली

राेसड़ा के भिरहा गांव की हाेली पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है। यहां वृंदावन की तर्ज पर लाेग हाेली का जश्न मनाते हैं। इस बार न कोरोना है और न ही कोई दूसरी बंदिश। पिछले दो साल यहां की होली पाबंदियों की भेंट चढ़ गई थी। लेकिन इसबार पूरे गांव में होली को लेकर काफी उत्साह देखने को मिला।

स्थानीय लोग बताते है कि 1935 में गांव के कई लोग होली देखने वृंदावन गए थे। वहीं की तर्ज पर यहां भी होली मनाने का निर्णय लिया गया। पहली बार 1936 में वृंदावन की तर्ज पर होली हुई। वर्ष 1941 में यह गांव तीन भागों पुरवारी टोल,पछियारी टोल और उतरवारी टोल में बंटकर होली मनाने लगा।

लोगो ने बताया कि आज भी इन्हीं तीन टोलों के बीच होली के आयोजन में श्रेष्ठता साबित करने की होड़ रहती है। होलिका दहन की संध्या से ही तीनों टोले में अलग-अलग सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। गांव में बड़े-बड़े तोरणद्वार बनाए गए है। रंग बिरंगे रोशनी से पूरा भिरहा गांव होली में भी दिखता है तीनों टोलों के तीनों मंदिर परिसर में रात भर नृत्य और संगीत का आयोजन किया गया है। दूर दराज से गायिका और नृत्यांगना को बुलाया गया था।

आज होली के दिन नृत्य का आनंद लेने के बाद सभी लोग फगुआ पोखर पँहुच रंग से घोलू हुए पानी मे कुर्ता फार होली खेला गया बिरहा गांव की होली को देखते आसपास के गांव के साथ-साथ दूरदराज के जिले के लोग भी पहुंचे हुए थे।

बिहार में एक ऐसा गांव है जहां लड़किया जनेऊ पहनती है

बिहार में एक गांव ऐसा भी है जहां लड़किया जनेऊ पहनती है । यह सूनने में थोड़ा अटपटा लगा रहा होगा लेकिन यह सच्चाई है । बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल के नावानगर प्रखंड में एक गांव है मणियां जहां प्रति वर्ष बसंत पंचमी के दिन लड़कियों का यज्ञोपवीत संस्कार कराया जाता है।

यह अनोखी परंपरा मणियां गांव स्थित दयानंद आर्य हाईस्कूल में प्रति वर्ष आयोजित होती है। इस स्कूल में पढ़ने वाली छात्राएं स्वेच्छा से जनेऊ धारण करती हैं। यहां जनेऊ धारण करने वाली छात्राएं रुढ़िवादी परंपरा को खत्म करने के साथ चरित्र निर्माण की शपथ लेती हैं। अभिभावकों का कहना कि इससे नारी शक्ति को बढ़ावा मिल रहा है।

परिवार व समाज का मिल रहा सहयोग
यज्ञोपवीत पहनने की मुहिम में लड़कियों को परिवार व समाज से भी भरपूर सहयोग मिल रहा है। पिछले साल आचार्य श्रीहरिनारायण आर्य और सिद्धेश्वर शर्मा के नेतृत्व में शिल्पी कुमारी, बसंती कुमारी, अनु कुमारी, नीतु कुमारी, खुशबू कुमारी एवं नीतु कुमारी सहित अन्य कई छात्राओं का उपनयन संस्कार किया गया था। इस बार भी बसंत पंचमी के दिन लड़कियों को जनेऊ पहनाने की तैयारी चल रही है। इस आयोजन को लेकर गांव में उत्‍सवी माहौल बना हुआ है।

विद्यालय के संस्थापक ने चलाई थी यह परंपरा
मणियां उच्च विद्यालय के संस्थापक और इसी क्षेत्र के छपरा गांव निवासी स्व. विश्वनाथ सिंह ने 1972 ई. में इस परंपरा की शुरुआत की थी। उन्होंने सर्वप्रथम अपनी पुत्रियों को जनेऊ धारण कराया था। उसके बाद फिर यह परंपरा चल पड़ी। तब से हर वर्ष यहां लड़‍कियों का यज्ञोपवीत संस्‍कार किया जाता है। स्व. सिंह आर्यसमाजी थे। मणियां के ग्रामीणों का कहना है कि गुरुजी का इसके पीछे मुख्य उद्देश्य था कि नारी शक्ति को श्रेष्ठ कराने से समाज का कल्याण हो सकता है।

मूर्तिपूजा का नहीं है प्रचलन
आचार्य सिद्धेश्वर शर्मा का कहना है, बसंत पंचमी के दिन विद्यालय की छात्र-छात्राएं हवनकुंड के समक्ष बैठकर आचार्य से श्रेष्ठ आचरण, आदर्श जीवन व सद्चरित्र का संस्कार ग्रहण करती हैं।

मकर संक्रान्ति को लेकर इस बार भी एक मत नहीं हैं विद्वान

मकर संक्रान्ति, 14 जनवरी, 2022 ई :

वर्ष भर में 12 राशियों की संक्रान्तियाँ होतीं हैं। इनमें मकर संक्रान्ति से छह महीने तक सूर्य उत्तरायण रहते हैं तथा कर्क राशि की संक्रान्ति से दक्षिणायन सूर्य आरम्भ होते हैं। उत्तरायण सूर्य में यज्ञ, देवप्रतिष्ठा आदि के लिए शुभ मुहूर्त होते हैं। ऐसी मान्यता है कि जबतक सूर्य उत्तरायण रहते हैं तब तक छह महीनों के लिए देवताओं का दिन रहता है तथा दक्षिणायन सूर्य के महीनों में देवताओं की रात रहती है। अतः मकर संक्रान्ति का यह दिन देवताओं के लिए प्रातःकाल माना जाता है। दिन भर में जो धार्मिक महत्त्व प्रातःकाल का होता है, वैसा ही महत्त्व मकर संक्रान्ति का भी वर्ष भर में होता है।

इस वर्ष दिनांक 14 जनवरी की रात्रि 8.34 मिनट पर संक्रमण हो रहा है। चूँकि संक्रमण काल रात्रि में भी हो सकता है; अतः धर्मशास्त्रियों ने संक्रमण काल के आधार पर पुण्यकाल तथा पुण्याह की व्यवस्था की है।

गणित-ज्योतिष के अनुसार संक्रान्ति के पहले या बाद 8 घंटा तक सूर्य का बिम्ब उस संक्रान्ति-बिन्दु पर रहता है। अतः संक्रमण-काल से 8 घंटा पहले अथवा बाद, जब भी उदित सूर्य मिलें, पुण्यकाल माना जायेगा। इस वर्ष रात्रि 8:34 बजे संक्रमण के पूर्व दिनांक 14 को हमें सूर्य-संक्रान्ति का बिम्ब प्राप्त होगा, अतः संक्रान्ति सम्बन्धी गणित के अनुसार भी 14 को ही मनाया जाना चाहिए।

मिथिला के सभी निबन्धकारों ने एकमत से निर्णय दिया है कि आधी रात से पहले यदि संक्रमण है, तो पुण्यकाल पूर्वदिन मध्याह्न के बाद होगा तथा वह पूरा दिन पुण्याह कहलायेगा। इन सभी प्रमाणों का संकलन कर म.म. मुकुन्द झा बख्शी ने ‘पर्वनिर्णय’ में यही व्यवस्था दी है। अतः मिथिला से प्रकाशित पंचाङ्ग में दिनांक 14 को मकर संक्रान्ति माना गया है।

निर्णयसिन्धु में कमलाकर भट्ट ने मकर-संक्रान्ति के सम्बन्ध में सभी मतों को उद्धृत कर दिया है, जिनमें माधव का मत है कि यदि रात्रि में संक्रमण हो तो दूसरे दिन पुण्यकाल माना जाए। किन्तु अनन्तभट्ट के अनुसार यदि आधी रात से पूर्व संक्रमण हो तो पूर्व दिन माना जाए। इस प्रकार कमलाकर में अपना कोई निर्णय नहीं दिया है। धर्मसिन्धुकार का मत है कि रात्रि के पूर्वभाग, परभाग अथवा निशीथ में संक्रमण हो तो दूसरे दिन पुण्यकाल होगा। इस मत से दिनांक 15 को मकर संक्रान्ति होगी।

इस विषय में कमलाकर भट्ट ने भी क्षेत्रीय परम्पराओं का महत्त्व दिया है, अतः धर्मशास्त्र के अनुसार जिनकी जो परम्परा है उस दिन मनाये

लेखक–आचार्य किशोर कुणात

पश्चिम में दिखे पूरब के रंग, अमेरिका में भारतीय-अमेरिकियों ने कुछ ऐसे की छठ पूजा

बिहार में मनाया जाने वाला छठ का त्योहार अमेरिका में भी मनाया गया। इस दौरान लोगों ने अस्थायी जलाशयों में पूजा की।
अमेरिका में मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के भारतीय-अमेरिकियों ने सूर्य भगवान की पूजा कर छठ पर्व मनाया।

सात समंदर पार बिखेर रहे छठ पूजा की अद्भुत छटा

महापर्व छठ बिहार की दहलीज से निकलकर विदेश में भी अद्भुत छटा बिखेर रहे हैं। अमेरिका के बोस्टन और बर्जीनिया में छठ पर्व को लेकर खासा उत्साह देखा जा रहा है।

अमेरिका के बोस्टन शहर छठ की गीत से गूंजा

विदेश में बसे बिहारियों का कहना है कि वे बाहर रहने गये हैं। लेकिन अपनी परंपरा और सूर्योपासना के पर्व छठ को कैसे भूल सकते हैं। सूर्य की महिमा पूरी दुनिया जान सके, यही उनका मकसद है।

अमेरिका के बर्जीनिया शहर छठ की गीत से गूंजा

कौन है छठी मैया

लोगों में एक आम जिज्ञासा यह रही है कि सूर्य की उपासना के इस महापर्व में सूर्य के साथ जिन छठी मैया की अथाह शक्तियों के गीत गाए जाते हैं, वे कौन हैं। ज्यादातर लोग इन्हें शास्त्र की नहीं, लोक कल्पना की उपज मानते हैं। लेकिन हमारे पुराणों में यत्र-तत्र इन देवी के संकेत जरूर खोजे जा सकते हैं।

एक पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य और षष्ठी या छठी का संबंध भाई और बहन का है। षष्ठी एक मातृका शक्ति हैं जिनकी पहली पूजा स्वयं सूर्य ने की थी। ‘मार्कण्डेय पुराण’ के अनुसार प्रकृति ने अपनी शक्तियों को कई-कई अंशों में विभाजित कर रखा है। प्रकृति के छठे अंश को ‘देवसेना’ कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी भी है। देवसेना या षष्ठी श्रेष्ठ मातृका और समस्त लोकों के बालकों की रक्षिका हैं। इनका एक नाम कात्यायनी भी है जिनकी पूजा नवरात्रि की षष्ठी तिथि को होती है। पुराणों में निःसंतान राजा प्रियंवद द्वारा देवी षष्ठी का व्रत करने की कथा है। छठी षष्ठी का अपभ्रंश हो सकता है। आज भी छठव्रती छठी मैया से अपनी संतानों के लंबे जीवन, आरोग्य और सुख-समृद्धि का वरदान मांगते हैं। शिशु के जन्म के छह दिनों बाद इन्हीं षष्ठी या छठी देवी की पूजा का आयोजन होता है जिसे छठी या छठिहार कहते हैं।

छठी मैया की इस परिकल्पना की एक आध्यात्मिक पृष्ठभूमि भी हो सकती है। अध्यात्म के अनुसार सूर्य की सात किरणों का मानव जीवन पर अलग – अलग प्रभाव पड़ता है। सूर्य की छठी किरण को आरोग्य और भक्ति का मार्ग प्रशस्त करने वाला माना गया है। संभव है कि सूर्य की इस छठी किरण का प्रवेश अध्यात्म से लोकजीवन में छठी मैया के रूप में हुआ हो।

लेखक –ध्रुव गुप्ता

स्त्री-शक्ति के प्रति सम्मान का नौ-दिवसीय आयोजन शारदीय नवरात्रि।

स्त्रीत्व का उत्सव !
स्त्री-शक्ति के प्रति सम्मान का नौ-दिवसीय आयोजन शारदीय नवरात्रि अवसर है नमन करने का उस सृजनात्मक शक्ति को जिसे ईश्वर ने सिर्फ स्त्रियों को सौंपा है। उस अथाह प्यार, ममता और करुणा को जो कभी मां के रूप में व्यक्त होता है, कभी बहन, कभी बेटी, कभी मित्र, कभी प्रिया और कभी पत्नी के रूप में।

दुर्गा पूजा, गौरी पूजा और काली पूजा वस्तुतः उसी स्त्री-शक्ति के तीन विभिन्न आयामों के सम्मान के प्रतीकात्मक आयोजन हैं। काली स्त्री का आदिम, अनगढ़, अनियंत्रित स्वरुप है जिस पर काबू करना पुरुष अहंकार के बस की बात नहीं। गौरी या पार्वती स्त्री का सामाजिक तौर पर नियंत्रित, गृहस्थ, ममतालु रूप है जो सृष्टि का जनन भी करती है और पालन भी। दुर्गा स्त्री के आदिम और गृहस्थ रूपों के बीच की वह स्थिति है जो परिस्थितियों के अनुरुप करूणामयी भी है, कभी संहारक भी।

कालान्तर में इन तीनों प्रतीकों के साथ असंख्य मिथक जुड़ते चले गए और इस आयोजन ने अपना उद्देश्य और अपनी अर्थवत्ता खोकर विशुद्ध कर्मकांड का रूप ले लिया। स्त्री के सांकेतिक रूप आज हमारे आराध्य बन बैठे हैं और जिस स्त्री के सम्मान के लिए ये तमाम प्रतीक गढ़े गए, वह पुरूष अहंकार के पैरों तले आज भी रौंदी जा रही हैं। जिस देश में सूअर, मगरमच्छ, उल्लूओ, बैलों और चूहों तक को देवताओं के अवतार और वाहन का दर्जा प्राप्त है, उस देश में स्त्रियों को सिर्फ इसलिए गर्भ में मार दिया जाता है कि वह कुल का दीपक नहीं, ज़िम्मेदारी है। इसलिए अपमानित किया जाता है कि उसने अपनी पसंद के कपडे पहन रखे हैं। इसलिए रौंद डाला जाता है कि उसने घर की दहलीज़ से बाहर क़दम रखने की कोशिश की।

स्त्रियों के प्रति हमारे विचारों और कर्म में विरोधाभास हमेशा से हमारी संस्कृति का बड़ा संकट रहा है। स्त्री एक साथ स्वर्ग की सीढ़ी भी रही है और नर्क का द्वार भी। घर की लक्ष्मी भी और ‘ताड़न’ की अधिकारी भी। मनुष्यता की जननी भी और मजे के लिए बिकने वाली देह भी। जबतक हम देवियों की काल्पनिक मूर्तियों की जगह जीवित देवियों का सम्मान करना नहीं सीख लेते, नवरात्रि के कर्मकांड का कोई अर्थ नहीं !

यह आयोजन तब सार्थक होगा जब पुरूष स्त्रियों के विरुद्ध हजारों सालों से जारी भ्रूण-हत्या, लैंगिक भेदभाव, बलात्कार, उत्पीडन और उन्हें वस्तु या उपभोग का सामान समझने की मानसिकता बदलें और स्त्रियां खुद भी अपने भीतर मौजूद काली, पार्वती और दुर्गा को पहचानने और आवश्यकता के अनुरूप उनका इस्तेमाल करना सीखे !

लेखक -ध्रुव गुप्ता

गुप्ता काल से शुरु हुआ है भारत में स्त्री शक्ति की पूजा

शक्ति-पूजा का अर्थ

प्राचीन काल से ही हिन्दू धर्म तीन मुख्य संप्रदायों में बंटा रहा है – विष्णु का उपासक वैष्णव, शिव का उपासक शैव और शक्ति का उपासक शाक्त संप्रदाय। दुनिया के सभी दूसरे धर्मों की तरह वैष्णव और शैव संप्रदाय जहां सृष्टि की सर्वोच्च शक्ति पुरुष को मानते हैं, शाक्तों की दृष्टि में सृष्टि की सर्वोच्च शक्ति स्त्री शक्ति है। देवी को ईश्वर के रूप में पूजने वाला शाक्त धर्म दुनिया का संभवतः एकमात्र धर्म है।

स्त्री-शक्ति की आराधना की शुरुआत कब और कैसे हुई, इस विषय पर इतिहासकारों में मतभेद है। ज्यादातर लोग शक्ति पूजा की परंपरा की शुरुआत इतिहास के गुप्त काल से मानते हैं जब ‘देवी महात्मय’ नाम के ग्रंथ की रचना हुई थी। दसवीं से बारहवीं सदी के बीच ‘देवी भागवत पुराण’ की रचना के बाद शाक्त परंपरा उत्कर्ष पर पहुंची थी। सच यह है कि स्त्री-शक्ति की पूजा की जड़ें प्रागैतिहासिक काल में ही मौजूद हैं। सिंधु-सरस्वती घाटी की सभ्यता में मातृदेवी की उपासना का प्रचलन था। खुदाई में उस काल की देवी की कई मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। ऋग्वेद के दसवें मंडल में भी वाक्शक्ति की प्रशंसा में एक देवीसूक्त मिलता है, जिसमें वाक्शक्ति कहती है – मैं ही समस्त जगत की अधीश्वरी तथा देवताओं में प्रधान हूं। मैं सभी भूतों में स्थित हूं। देवगण जो भी कार्य करते हैं वह मेरे लिये ही करते हैं। वेदों की कई अन्य ऋचाओं में अदिति का मातृशक्ति के रूप में वर्णन है जो माता, पिता, देवगण, पंचजन, भूत, भविष्य सब कुछ हैं। कालांतर में शक्ति पूजा की इस प्राचीन परंपरा के साथ असंख्य मिथक और कर्मकांड जुड़ते चले गए।

योगियों की शक्ति उपासना की पद्धति थोड़ी अलग है। वे शक्ति का अस्तित्व किसी दूसरी दुनिया या आयाम में नहीं, मानव शरीर के भीतर ही मानते हैं। रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से में कुंडलिनी शक्ति के रूप में। विभिन्न यौगिक क्रियाओं और ध्यान के माध्यम से इस शक्ति की ऊर्ध्व यात्रा शुरू कराई जाती है। जब यह शक्ति शरीर के छह चक्रों का भेदन करती हुई मष्तिष्क में स्थित सातवें चक्र में पहुंच जाती है तो योगी को असीम शक्ति और परमानंद की अनुभूति होती है।

मित्रों को स्त्री – शक्ति की उपासना के नौ-दिवसीय आयोजन नवररात्रि की शुभकामनाएं, इस आशा के साथ कि स्त्री-शक्ति की पूजा की यह गौरवशाली परंपरा स्त्रियों के प्रति सम्मान के अपने मूल उद्देश्य से भटककर महज कर्मकांड बनकर न रह जाए !

लेखक –ध्रुव गुप्ता

माँ दुर्गा डोली पर सवार होकर आयी है और हाथी पर सवार होकर लौटेगी।

आज से पूरा बिहार माँ दुर्गा के उपासना में डूब जायेगा आज मां दुर्गा डोली पर सवार होकर आयी है और हाथी पर सवार होकर लौटेगी इस बार शारदीय नवरात्र आठ दिन का ही होगा।

आज 7 अक्टूबर को कलश स्थापन होगा। चतुर्थ व पंचमी पूजा एक साथ होगी यह बदलाव पितृ पक्ष मेला की वजह से हुई है ।
इस बार चतुर्थी व पंचमी तिथि एक साथ होने से कुष्मांडा माता व स्कंदमाता की अराधना एक साथ होगी।

माता रानी डोली में सवार होकर आएगी। इस लिहाज से महिलाओं का वर्चस्व बढ़ेगा और मान सम्मान में वृद्धि होगी। लेकिन महामारी से लोग परेशान रहेंगे। शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि जब मां दुर्गा डोली पर सवार होकर आती है तो राजनीतिक उथल पुथल की स्थिति होती है। यह प्रभाव सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ सकता है। माता का डोली पर आना ज्यादा शुभ संकेत नहीं माना जाता। लेकिन माता का प्रस्थान हाथी पर होगा जिसे शुभ माना गया है। 15 अक्टूबर को नवरात्रि का पारण किया जाएगा और दशहरा पर्व भी मनाया जाएगा।

आज से शुरु हो गया विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला लेकिन इस बार सिर्फ पिंडदान का होगा कार्यक्रम

आज से विश्व प्रसिद्ध गया पितृपक्ष मेला फल्गु नदीं में स्नान के साथ ही शुरु हो गया है हलाकि इस बार भी कोरोना का असर मेले पर साफ दिख रहा है। बाहर के प्रदेशों से लोगों का इस बार भी आना कम ही हुआ है ।पिंडदान कर्मकांड अगले 17 दिनों तक यानि 6 अक्टूबर को अंतिम स्नान के साथ समाप्त हो जायेंगा हलाकि कर्मकांड से जुड़े पंडितों का कहना है कि दो तीन दिनों में पहले जैसा रोनक देखने को मिलेगा।


प्रशासन के सख्त निर्देश को देखते हुए इस बार कोविड-19 गाइडलाइन का अनुपालन करते हुए पिंडदान की प्रक्रिया संपन्न कराई जा रही है। मास्क, सैनिटाइजर व आपस में दूरी रखने की सलाह तीर्थयात्रियों को दिया जा रहा है। एक जगह पर तीर्थयात्रियों की भीड़ ज्यादा ना हो इस बात का भी ख्याल रखा जा रहा है।

विगत 2 सालों से कोरोना के कारण पिंडदान कर्मकांड बंद था, जिस कारण इस कार्य में लगे पंडित की आर्थिक स्थिति काफी खराब है। इस बार पितृपक्ष मेला की स्वीकृति नहीं दी गई, लेकिन पिंडदान कर्मकांड की स्वीकृति सरकार ने दी है, इससे लोगों को थोड़ी आस जगी है।

जिला पदाधिकारी अभिषेक सिंह ने कहा कि पितृपक्ष मेला नहीं लगेगा, लेकिन गया आने वाले पिंडदानियों को कर्मकांड करने से नहीं रोका जाएगा। उन पिंडदानियों को कोरोना गाइडलाइन के तहत कर्मकांड करना है और इसकी निगरानी भी की जाएगी। नगर आयुक्त सावन कुमार ने बताया कि मेला नहीं लगेगा, लेकिन पिंडदानियों के आगमन की संभावना को देखते हुए मेला क्षेत्र में सफाई की विशेष व्यवस्था की गई है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से कई स्थानों पर शिविर लगाकर कोरोना जांच व टीकाकरण किया जाएगा।

भगवान विश्वकर्मा के रूप में दिखे मोदी

बिहार में आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जन्मदिन अलग अलग अंदाज में मनाया गया है लेकिन जो BJP विधायक हरिभूषण बचौल ने जिस अंदाज में जन्मदिन की बधाई दी है वह खुब चर्चा में है ।

मधुबनी के विस्फी से विधायक बचौल मोदी का चेहरा भगवान ‌विश्वकर्मा की तस्वीर में लगाकर उन्हें अगरबत्ती दिखाते दिखे। 17 सितंबर को प्रधानमंत्री का जन्मदिन है और विश्वकर्मा जी का। उन्होंने इन दोनों अवसरों को एक साथ जोड़ दिया है।

बिस्फी स्थित अपने आवास पर उन्होंने तस्वीर को लगाकर फल, प्रसाद और फूल के साथ विधिवत पूजा की है। अगरबत्ती दिखाते हुए बचौल, मोदी शरणम् गच्छामि और मोदी नाम केवलम् का भी जाप कर रहे हैं।

फिलहाल हाईकोर्ट फिजिकल नहीं चलेंगा दशहरा के बाद होगा निर्णय

पटना हाईकोर्ट दशहरा के अवकाश के बाद 20 अक्टूबर, 2021को कोरोना की स्थिति का जायजा लेगा।इसके बाद पटना हाईकोर्ट प्रशासन फिजिकल कोर्ट प्रारम्भ करने के सम्बन्ध में निर्णय लेगा।साथ ही यह भी निर्णय लिया जाएगा कि फिजिकल कोर्ट की कार्यवाही किस हद तक संभव होगा और किस प्रकार चलाया जा सकेगा।

पिछले वर्ष मार्च से कोर्ट में मुकद्दमों की सुनवाई वर्चुअल मोड़ पर की जा रही हैं।अधिवक्ता संघो ने पटना हाईकोर्ट प्रशासन से फिजिकल कोर्ट शुरू करने का अनुरोध किया।लेकिन करोना महामारी को देखते हुए हाई कोर्ट प्रशासन ने फिजिकल कोर्ट नहीं शुरू किया।

4 जनवरी,2021से पटना हाईकोर्ट में करोना के लिए जारी दिशानिर्देश व सुरक्षा नियमों के तहत हाइब्रिड कोर्ट शुरू किया गया।इसमें प्रथम पाली में फिजिकल कोर्ट के माध्यम से मामलों की सुनवाई होती थी और द्वितीय पाली में ऑनलाइन सुनवाई होती थी।

लेकिन मार्च,2021मे करोना महामारी के फिर से बढ़ने के कारण अप्रैल,2021 से फिर मामलों की ऑनलाइन सुनवाई शुरू हुई,जो अबतक चल रही हैं।

इस बीच वकीलों और अधिवक्ता संघो ने कई बार फिजिकल कोर्ट शुरू करने के चीफ जस्टिस से मांग की।इस करोना महामारी काल में वकीलों और उनके साथ जुड़े स्टाफ की स्थिति काफी खराब हो गई।उन्हें गहरे आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा।बहुत सारे वकील अपने घर गांव चलें गए और उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।
एक ओर कोर्ट बंद होने से उनके आय का स्रोत खत्म हो गया,वहीं सरकार और बार कौन्सिल के द्वारा भी बहुत प्रभावी आर्थिक मदद नहीं।दी गई।

बिहार में एक मंदिर ऐसा जहाँ भाई बहन की पूजा होती है ,मुगल सिपाही से बहन की रक्षा करते जान गवा दिया

भारतीय समाज में रक्षाबंधन इतना महत्‍वपूर्ण त्‍योहार है कि इसे हिंदुओं के अलावा कई दूसरे मतों को मानने वाले परिवार भी मनाते हैं। इस पर्व को लेकर तमाम लोक कथाएं हैं किंवदंतियां हैं। यह पर्व भाई और बहन के प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। ऐसे मौके पर आपको बिहार के एक मंदिर की कहानी जानकर हैरानी हो सकती है, जहां भाई और बहन की बकायदा पूजा होती है। यह मंदिर है सिवान जिले के दारौंदा प्रखंड के भीखाबांध गांव में। यहां विशाल मेला लगता रहा है।

भीखाबांध स्थित भैया-बहिनी मंदिर भाई- बहन के अटूट प्रेम एवं विश्वास का प्रतीक है। यह मंदिर प्रखंड मुख्यालय से 12 किलोमीटर उत्तर एवं महाराजगंज अनुमंडल से चार किलोमीटर पूरब सिवान -पैगंबरपुर पथ के किनारे स्थित है।

इस मंदिर के बारे में बताया जाता है कि मुगल शासक काल में एक भाई अपनी बहन को राखी के मौके पर दो दिन पहले ही डोली में बिठाकर भभुआ (कैमूर) से अपने गांव ला रहा था। भीखाबांध गांव के समीप मुगल सिपाहियों ने डोली में बैठी दुल्‍हन को देखा तो उस की सुंदरता देखकर उनके मन में गलत भावना भर गई। सिपाहियों ने डोली को रोक कर बहन के साथ गलत हरकत करने का प्रयास करने लगे। इस पर भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए सिपाहियों से उलझ गया। कहा जाता है कि बहन अपने आप को असहाय महसूस करते हुए भगवान को याद की। उसी समय धरती फटी और भाई-बहन दोनों उसी में समा गए। डोली उठा रहे कुम्हारों ने वहां स्थित कुएं में कूद कर जान दे दी।

कहा जाता है कि इस घटना के दिनों बाद यहां एक ही स्थल पर दो वट वृक्ष निकले, जो कई बीघा जमीन पर फैल गए। ये वृक्ष ऐसे दिखाई देते हैं कि मानो लगता है कि एक-दूसरे की सुरक्षा कर रहे हों। यहां पूजा करने वालों की मनोकामनाएं पूरी होती गईं। इसके बाद यहां एक मंदिर का निर्माण हुआ। इसमें भाई-बहन के पेड़ की पूजा होती है। भाई-बहन सोनार जाति के होने के चलते सबसे पहले इन्हीं की जाति के लोगों द्वारा पूजा-अर्चना की जाती है।

हलाकि कोविड संक्रमण की वजह से यह मंदिर बंद है। बिहार में मंदिरों को खोलने की इजाजत अभी सरकार ने नहीं दी है। यहां कम श्रद्धालुओं की पहुंचने की उम्मीद है। ग्रामीणों ने बताया कि यहां अतिक्रमण के चलते वट वृक्ष कुछ कट्ठा में सिमट कर रह गया है। इस मंदिर की जीर्णोद्धार के लिए प्रशासनिक स्तर पर आज तक कुछ भी प्रक्रिया शुरू नहीं की गई। ग्रामीणों ने प्रशासन से इस मंदिर एवं वटवृक्ष की ऐतिहासिक धरोहर को बचाने की मांग की है।

जीविका दीदी ने कर दी कमाल भाई के हाथों में दीदी की बनी राखी से सजेंगी हाथ

कहते हैं रेशम के धागे की राखी का बड़ा महत्व होता है । पूर्णिया की दर्जनों जीविका दीदीयां इन दिनों मलबरी की खेती कर अपने हाथों से बेकार पड़े खराब कोकून से रेशम का धागा निकालकर आकर्षक राखियां बना रही है । इससे जहां उन्हें रोजगार मिल रहा है वहीं ये दीदीयां लोगों को रेशम की शुद्ध राखियां भी मुहैया करा रही है । पिछले साल 23 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मन की बात में धमदाहा के मलवरी की खेती कर आर्थिक उपार्जन करने वाले आदर्श जीविका समूह की सराहना की थी ।

पूर्णिया के धमदाहा अनुमंडल के अमारी कुकरन में आदर्श जीविका समूह समेत चार अन्य समूह की जीविका दीदीयां इन दिनों रेशम की राखी बना रही है । जीविका दीदी रीना कुमारी ने कहा कि पहले वे लोग खराब हो चुके कोकून को बेकार समझकर फेंक देते थे । लेकिन पिछले साल पटना के सरस मेला में उनलोगों ने देखा कि कुछ लोग किस तरह बेकार पड़े चीजों का इस्तेमाल कर अच्छा हैन्डीक्राफ्ट बना रहे हैं, तो उनलोगों के मन में भी कुछ नया करने की ललक जगी । इसके लिये उनलोगों ने पहले प्रशिक्षण लिया फिर पिछले साल कोरोना के समय अपने परिवार के साथ मिलकर 21 सौ राखियां बनायीं। इस तरह उन्हें कोरोना की मुश्किल घड़ी में तकरीबन 40 हजार रुपये की आमदनी हुई।

इस बार धमदाहा के पांच समूह की 40 जीविका दीदीयों ने बैठक कर राखी बनाने का काम शुरु किया । इस साल उनलोगों का लक्ष्य करीब पचास हजार राखियां बनाने का है और एक राखी की कीमत 15 रु. से 50 रु. तक तय किया गया है। उन्हें भरोसा है कि इससे उन्हें अच्छी आमदनी भी होगी और कुछ सकारात्मक पहल भी।

इस संदर्भ में डीएम राहुल कुमार ने बताया कि पूर्णिया की जीविका दीदीयां अच्छा काम कर रही हैं। धमदाहा की आदर्श मलवरी उत्पादक जीविका समूह की जीविका दीदीयों की प्रशंसा पिछले साल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी की थी । उन्होंने कहा कि धमदाहा की कई जीविका दीदीयां जहां रेशम की राखी के अलावे साड़ी समेत कई चीजें बना रही हैं वहीं कुछ जीविका दीदीयां मक्का उत्पादन और मक्का से सामग्री बनाकर आर्थिक उपार्जन कर रही है ।

पूर्णिया जीविका समूह की दीदियां लगातार अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए न सिर्फ प्रयास करती हैं बल्कि लगातार प्रशिक्षण ले कर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान भी बना रही है ।

बिहार में एक मंदिर ऐसा भी है जहाँ 11 शिवलिंग विराजमान है।

#एकादशरूद्र_शिव
बिहार का एक एेसा अनोखा शिवालय है जहां एक साथ ग्यारह शिवलिंग की पूजा की जाती है। यहां ग्यारह शिवलिंग एक साथ विराजमान है। जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर राजनगर प्रखंड क्षेत्र का मंगरौनी गांव प्राचीन काल से तंत्र विद्या के साधकों लिए प्रसिद्ध रहा है। इस गांव में प्राचीन शक्तिपीठ बूढ़ी माई मंदिर, भुवनेश्वरी देवी मंदिर अवस्थित हैं। माता भुवनेश्वरी मंदिर के बगल में ही अपने आप में अद्भुत एकादशरूद्र शिव विराजमान हैं।लगभग आठ फुट लंबे व पांच फुट चौड़ाई में बनी एक ही पीठिका (जलढरी) पर शिव के 11 रूपों के रूप में11 शिवलिंग स्थापित हैं। पड़ोसी देश नेपाल सहित राज्य व राज्य के बाहर से शिवभक्त एक ही पीठिका पर विराजमान इन 11 अद्भुत शिवलिंगों के दर्शन, पूजन को पुहंचते हैं। सावन माह में तो यहां की छटा ही निराली हो उठती है। इनके दर्शन मात्र से मन को पूर्ण शांति मिल जाती है।यह शिवालय श्रद्धालुओं की असीम श्रद्धा का केंद्र है। इसकी स्थापना 1954 ई. में बाबूसाहेब जगदीश नंदन चौधरी ने की थी। यहां कांची कामकोटि के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती व पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती भी आकर पूजा कर चुके हैं। इन शंकराचार्यों ने भी यहां की महिमा का भरपूर बखान किया था। मंदिर गुंबदनुमा है। परिसर में नेपाल के एक शिवभक्त द्वारा लकड़ी का बनाया दो मंजिला भवन है। हालांकि अब यह जीर्ण-शीर्ण हो चुका है। कहा जाता है कि पूर्व में इसमें तंत्र विद्या, ज्योतिष के शिक्षार्थी रहते थे। मंदिर से पूरब चातुश्चरण यज्ञ किया तालाब है।

11 Shivling Temple in Bihar

तालाब के पश्चिमी घाट के पीछे श्राद्ध स्थली है। ऐसी मान्यता है कि बहुत से गरीब लोग अपने पितरों का गया में श्राद्ध करने की इच्छा रहने के बाद भी नहीं जा पाते थे। उनके लिए यहां तंत्र विद्या से अभिसंचित श्राद्ध स्थली बनाई गई। यहां पिंडदान करने पर गया जाने जैसा फल मिलता है। शिवमंदिर के सामने पंडित मुनेश्वर झा जो तंत्र साधक थे द्वारा स्थापित भगवती भुवनेश्वरी एक मंदिर में विराजमान हैं।सावन में यहां हजारों की संख्या में शिव भक्त पहुंचते हैं। यहां बाबूबरही के पिपराघाट स्थित कमला, बलान व सोनी के संगम से जल लेकर कांवरिए आते हैं। कांवरियों की सुविधा के लिए सावन की प्रत्येक सोमवारीको चार बजे दिन तक जलाभिषेक की व्यवस्था रहती है। चार से साढ़े छह बजे तक षोडषोपचार पूजा की जाती है। बाबा भोलेनाथ का श्रृंगार नयनाभिराम होता है।

11 Shivling Temple in Bihar

ऐसे पहुंचें मंगरौनी

मधुबनी जिला मुख्यालय से लगभग पांच किमी की दूरी पर यह शिवालय है। आप मधुबनी रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से रिक्शा, ऑटो या निजी वाहन से मंदिर परिसर तक पहुंच सकते हैं। कहा-पुजारी आत्माराम ने ‘यहां आने वाले भक्तों की हरेक मनोकामना बाबा एकादशरूद्र पूरी करते हैं। इन शिवलिंगों के स्पर्श मात्र से मन को अद्भुत शांति मिलती है। महाशविरात्रि में मिथिला पंरपरा के अनुसार शिव-पार्वती विवाह का आयोजन होता है। यहां की परंपरा के अनुसार चार दिन तक विशेष विवाह श्रृंगार कादर्शन शिवभक्त करते हैं।चौथे दिन यह श्रृंगार हटा कर शिवलिंग की विशेषपूजा की जाती है। प्रत्येक सोमवार को होने वाले यहां के भंडारा में जो भोजन करता है वह पेट रोग से मुक्त हो जाता है। यहां एक साथ शिव के विभिन्न रूपों का दर्शन शिवभक्तों को अलौकिक आनंद देता है।’

सिवान में त्योहार

सिवान जिले में त्योहारों को बहुत उत्साह और उत्साह से मनाया जाता है सभी त्योहार बहुत रंगीन होते हैं और भाईचारे और सामाजिक एकता की भावना को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। “छठ पूजा” सिवान का एक बड़ा त्योहार है, जो लोगों के बीच असीम विश्वास से मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से एक हिंदू त्योहार है जिसे साल में दो बार मनाया जाता है। यह एक बार चैत्र के महीने में मिलता है, जो गर्मियों में है, और एक बार कार्तिक के महीने में, यह सर्दियों की शुरुआत के दौरान है। यह त्योहार सूर्य भगवान को खुश करने के लिए किया जाता है, जिसे स्थानीय तौर पर सूर्य षस्ठी कहा जाता है।