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जातीय जनगणना को लेकर बिहार की सियासी पारा चढ़ा बीजेपी समझौते के मूड में नहीं ।

जातीय जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार द्वारा दायर हलफनामा को लेकर बिहार की सियासत में तुफान आ गया है कल नेता प्रतिपंक्ष तेजस्वी यादव इस मामले को लेकर देश के 30 बड़े राजनीतिज्ञों को पत्र लिख कर समर्थन मांगा था ।
वही आज मैदान में खुद नीतीश कूद पड़े हैं नक्सल प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्री के साथ गृहमंत्री की बैठक में भाग लेने पहुंचे नीतीश कुमार ने आज बैठक समाप्ति के बाद बैठक को लेकर पूछे गये सवालों को नजरअंदाज करते हुए बेहद तल्ख लहजे में कहा कि बिहार के सभी दलों के लोगों ने जातीय जनगणना कराने की मांग की है. केंद्र सरकार फिर से ठीक ढ़ंग से इस पर विचार करें।

उन्होंने जातीय जनगणना को देशहित में बताया.मुख्यमंत्री ने केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामा को लेकर कहा कि वे आर्थिक और समाजिक गणना को लेकर है. इसमें जातीय जनगणना को नहीं जोड़िए. सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि मैं चाहता हूं कि केंद्र सरकार इस पर ठीक ढ़ंग से विचार करें और ये देशहित का मामला है।

CM ने कहा कि 2011 में जो जातीय जनगणना हुई थी, वो जातीय जनगणना थी ही नहीं। वो आर्थिक आधारित जातीय जनगणना थी, जिसमें कई गलतियां थीं, इसलिए उसे प्रसारित नहीं किया गया था। केंद्र सरकार अगर सबका विकास चाहती है तो जातीय जनगणना कराए। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर एक बार फिर मिलकर सभी बातों को साफ कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम राज्य स्तर पर अपने सभी दलों के साथ एक बार फिर से मीटिंग कर इस पर विचार करेंगे।

नीतीश कुमार के इस बयान के थोड़ी देर बाद ही बिहार बीजेपी के सीनियर नेता सुशील मोदी ने जातीय जनगणना को लेकर नीतीश कुमार के मांग को खारिज करते हुए कहा कि तकनीकी व व्यवहारिक तौर पर केंद्र सरकार के लिए जातीय जनगणना कराना सम्भव नहीं है। इस बाबत केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। मगर राज्य अगर चाहे तो वे जातीय जनगणना कराने के लिए स्वतंत्र है।

श्री मोदी ने कहा कि 1931 की जातीय जनगणना में 4147 जातियां पाई गई थीं, केंद्र व राज्यों के पिछड़े वर्गों की सूची मिला कर मात्र 5629 जातियां है जबकि 2011 में कराई गई सामाजिक-आर्थिक गणना में एकबारगी जातियों की संख्या बढ़ कर 46 लाख के करीब हो गई। लोगों ने इसमें अपना गोत्र,जाति, उपजाति,उपनाम आदि दर्ज करा दिया। इसलिए जातियों का शुद्ध आंकड़ा प्राप्त करना सम्भव नहीं हो पाया।

यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है, लोगों को कोर्ट के फ़ैसले का इंतजार करना चाहिए या जो राज्य चाहे तो वहां अपना पक्ष रख सकते हैं।

जातीय जनगणना का मामला केवल एक कॉलम जोड़ने का नहीं है। इस बार इलेक्ट्रॉनिक टैब के जरिए गणना होनी है। गणना की प्रक्रिया अमूमन 4 साल पहले शुरू हो जाती है जिनमें पूछे जाने वाले प्रश्न,उनका 16 भाषाओं में अनुवाद, टाइम टेबल व मैन्युअल आदि का काम पूरा किया जा चुका है। अंतिम समय में इसमें किसी प्रकार का बदलाव सम्भव नहीं है।

नीतीश कुमार के बयान के बाद सुशील मोदी का जातीय जनगणना के मांग को पूरी तरह खारिज करने के साथ ही यह तय हो गया कि आने वाले समय में जातीय जनगणना को लेकर बीजेपी और नीतीश के बीच तल्खी बढ़ेगी क्यों कि मांझी और सहनी पहले ही बगावत के मूड में है वही तेजस्वी जिस तरीके से जातीय जनगणना को लेकर नीतीश पर दबाव बना रहे हैं ऐसे में आने वाले समय में बिहार की सियासत किसी और दिशा की और मूड़ जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। क्यों कि नीतीश कुमार जातीय जनगणना को लेकर जितने आगे बढ़ गये वहां से वापसी उनके लिए आत्मघाती हो सकता है ।

इस बीच लालू प्रसाद की बेटी डॉ. रोहिणी आचार्या ने एक ट्टीट करके नीतीश पर सीधे हमला बोला है उन्होंने कहा है कि ‘ बीजेपी का जो यार है.. जातीय जनगणना का विरोधी नीतीश कुमार है’। उन्होंने आगे लिखा है- ‘ भ्रम के जाल में उलझा, नीतीश कुमार कुर्सी का भूखा है।’ डॉ. रोहिणी ने लिखा है कि- ‘ओबीसी समाज के हितों का दुश्मन बीजापी का यार नीतीश कुमार है।’ऐसे में बिहार की सियासी फिजा एक बार फिर गर्माने लगा है ।

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